'चन्द्रकांता' के 'चुनारगढ़ के किले' की आखिर आज भी क्यों होती है चर्चा, बेहद समृद्ध इतिहास का रहा है गवाह

Chunargarh Fort: उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के चुनार में तमाम किवदंतियों एवं लोककथाओं को अपने में समेटे चुनारगढ़ के किले की उपेक्षा हो रही है जिसके चलते वो अपनी बेहाली पर खामोशी से दुख जता रहा है।

Chunargarh Fort News
मुगल बादशाह हुमायूँ और अफगान सरदार शेरशाह के बीच हुए युद्धों में इस किले का विशेष महत्व रहा है 
मुख्य बातें
  • Mirzapur के चुनार में स्थित चुनार किला कैमूर पर्वत की उत्तरी दिशा में स्थित है
  • हिंदू काल के भवनों के अवशेष अभी तक इस किले में हैं
  • इस प्रसिद्ध किले का पुनर्निर्माण शेरशाह सूरी द्वारा करवाया गया था

राजा भर्तहरी की तपोस्थली व हिन्दी के पहले उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री की तिलिस्म स्थली चुनारगढ़ (Chunargarh) का जिक्र अब भी प्रमुखता के साथ होता रहता है वजह है इसका बेहद समृद्धशाली इतिहास, ये दीगर बात है कि इस किले (Chunargarh Fort) की उपेक्षा हो रही है गढ़ की दीवारें, प्राचीरें और बुर्ज शताब्दियों से समय के निर्मम थपेड़ों की चोट झेलते-झेलते अब जर्जर हो चुकी है और वो अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है इस बात से लोग परेशान हैं कि सरकार को किले के रखरखाव पर और ध्यान देने की आवश्यकता है।

मिर्जापुर (Mirzapur) के चुनार में स्थित चुनार किला कैमूर पर्वत की उत्तरी दिशा में स्थित है। यह गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा है। यह दुर्ग गंगा नदी के ठीक किनारे पर स्थित है। यह किला एक समय हिंदू शक्ति का केंद्र था। हिंदू काल के भवनों के अवशेष अभी तक इस किले में हैं, जिनमें महत्वपूर्ण चित्र अंकित हैं। इस किले में आदि-विक्रमादित्य का बनवाया हुआ भतृहरि मंदिर है जिसमें उनकी समाधि है किले में मुगलों के मकबरे भी हैं।

तमाम शासकों का रहा है आधिपत्य

उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद इस किले पर 1141 से 1191 ई. तक पृथ्वीराज चौहान, 1198 में शहाबुद्दीन गौरी, 1333 से स्वामीराज, 1445 से जौनपुर के मुहम्मदशाह शर्की, 1512 से सिकन्दर शाह लोदी, 1529 से बाबर, 1530 से शेरशाहसूरी और 1536 से हुमायूं आदि शासकों का अधिपत्य रहा है। शेरशाह सूरी से हुए युद्ध में हुमायूं ने इसी किले में शरण ली थी।

किले का पुनर्निर्माण शेरशाह सूरी द्वारा करवाया गया

इस प्रसिद्ध किले का पुनर्निर्माण शेरशाह सूरी द्वारा करवाया गया था। इस किले के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें मौजूद है। यहां से सूर्यास्त का नजारा देखना बहुत मनोहारी प्रतीत होता है। कहा जाता है कि एक बार इस किले पर अकबर ने कब्‍जा कर लिया था। उस समय यह किला अवध के नवाबों के अधीन था।

किले में सोनवा मण्डप, सूर्य धूपघड़ी और विशाल कुंआ मौजूद है।मुगल बादशाह हुमायूँ और अफगान सरदार शेरशाह के बीच हुए युद्धों में इस किले का विशेष महत्व रहा है। 1539 ई. में शेरशाह ने इसपर अधिकार कर लिया, फिर अकबर के शासनकाल में 1585 ई. में इसपर पुन: मुगलों का अधिकार हो गया।

17वीं शताब्दी में यह किला अवध के नवाब के अधिकार में रहा, जिनसे तीव्र और दीर्घकालीन अवरोध के बाद १७६३-६४ में इस को अंग्रेजों ने जेनरल कार्नाक के सेनापतित्व में छीन लिया। इसके बाद सितंबर, १७८१ में इसके संबध में एक संधिपत्र पर अवध के नवाब तथा हेंस्टिंग्ज ने हस्ताक्षर किए। 

काफी समय तक इसका सैनिक महत्व बना रहा

कंपनी के शासनकाल में सीमा पर स्थित होने के कारण काफी समय तक इसका सैनिक महत्व बना रहा। वारेन हेस्टिंग्ज का यह अत्यंत प्रिय निवासस्थान था। कंपनी ने चुनार का उपयोग अपन सेनाओं के वृद्ध तथा रोगी सैनिकों को बसाने के लिये किया था। यूरोपीय लोगों का निवासस्थान होने के चिह्न अभी तक कब्रगाह और गिरजाघर के रूप में वर्तमान हैं।

चुनार किले में भर्तृहरि की समाधि, समाधि के सम्बन्ध में बाबर का हुक्मनामा, औरंगजेब का हुक्मनामा, सोनवा मण्डप, शेरशाह सूरी का शिलालेख, अनेक अरबी भाषा में लिखे शिलालेख, आलमगीरी मस्जिद, बावन खम्भा व बावड़ी, जहांगीरी कमरा, रनिवास, मुगलकालीन बारादरी, तोपखाना व बन्दी गृह, लाल दरवाजा, वारेन हेस्टिंग का बंगला, बुढ़े महादेव मन्दिर इत्यादि किले के उत्थान-पतन की कहानियाँ कहती हैं।
फोटो साभार- Wikipedia

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