नई दिल्ली : दुनियाभर में आज (21 जून) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के साथ-साथ विश्व संगीत दिवस भी मनाया जा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य संगीत के प्रति लोगो को प्रोत्साहित करना होता है। संगीत कोई सीमा नहीं जानता तो इसका जादू मरते इंसान को भी खुशी का लम्हा दे जाता है। संगीत मानव जगत को ईश्वर का अनुपम उपहार है, जो दिलों को सुकून, शांति और खुशी देता है। विश्व संगीत दिवस पर पढ़िये ऐसी ही एक कविता :
'कभी सुना है संगीत,
झर- झर झरते झरने का,
कल- कल करती नदियों का,
टप- टप करती बूँदों का,
कुहू- कुहू करती कोयल का,
गरजते बादलों का,
रम्भाती गायों का,
पिटते लोहे से भी निकलते
संगीत को क्या महसूस किया है,
दुःख में भी निकलता है संगीत,
तभी तो जितने सुन्दर गीत लिखे गए,
सब भरे हैं दर्द से,
जो जा टकराते हैं,
सीधे हृदय से,
प्रकृति की हर चीज में,
लय है, ताल है,
संगीत है,
बस तादात्म्य बिठाना होगा,
प्रकृति के साथ,
जीवन भी तो एक संगीत है,
जो चलता है-
अपनी ही लय- ताल में,
हाँ, इसमें कैसे स्वर होंगे प्रकट,
ये निर्भर है,
हमारे परिश्रम पर,
सच्चाई के रास्ते पर,
चलने वाले सोते हैं
अक्सर मीठी नींद,
क्योंकि उनके जीवन से
निकलने वाली मधुर लहरियाँ,
देती हैं उन्हें सुकून,
महसूस कीजिए,
उस दिव्य संगीत को,
अपनी साँसों में,
जिसके थमते ही,
जीवन है अस्तित्वहीन,
वो संगीत ही है,
जो लेकर जाता है,
उस ईश्वर तक,
तभी तो,
सभी भक्तों ने गाया,
ईश्वर का गुणगान,
अपने- अपने स्वरों में,
सामवेद संगीत से ही तो,
ईश्वर तक पहुँचने का सुझाता है मार्ग,
तो फिर क्यों नहीं समझते,
संगीत की शक्ति,
जो समाई के प्रकृति के कण- कण में,
जीवन के हर पहलू में,
जीवन कुछ और नहीं,
संगीत ही तो है,
कभी सुन कर देखिए ।'
डॉ. श्याम सुन्दर पाठक 'अनन्त'
(कवि उत्तर प्रदेश राज्य कर विभाग, नोएडा में असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं )