रक्षाबंधन पर राखियों से नवाचार का अंकुर फूट रहा है। परंपरागत रूप से रेशमी और सूती धागों से बनी राखियों के साथ अब गाय के गोबर में आयुर्वेदिक गुणों वाले बीज मिलाकर रक्षासूत्र बनाए जा रहे हैं। इससे पौधों के साथ भाई-बहन का स्नेह भी लहलहाएगा। अच्छी बात यह है की देश के कई राज्यों के साथ साथ विदेशों से भी इनकी डिमांड आई है.
शहर के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने ईको फ्रेंडली राखियां बनाकर अनूठी पहल की है। भारतीय जैविक महिला किसान उत्पादक संघ की ओर से इन्हें तैयार करवाया जा रहा है. इस स्वयं सहायता समूह की महिलाएं गाय के गोबर में तुलसी, अश्वगंधा, कालमेघ, किनोवा व अन्य बीज पिरोकर रक्षासूत्र बना रही हैं।
संदेश साफ है कि राखियों को पेड़ों के नीचे रखने या इधर उधर फेंक देने की बजाय के बजाय पौधा ही बना दिया जाए। उन्होंने बताया कि राखियों को गोगा नवमी के दिन गमले में डालकर पौधा अंकुरित किया जा सकता है। इन राखियों को देशभर में भेजा जा रहा है। 20 रुपए लागत से बनी एक राखी को बनाने में 5 मिनट लगते हैं।
राखी की सुंदरता बढ़ाने को मोती, रंग, नगीने, मोली, स्टार्स आदि काम में लिए जाते हैं
24 घंटे में राखी सूखकर तैयार हो जाती है। गोबर में गमींग एजेंट (गौंद), जटामासी, अश्वगंधा, चिरायता, चिया सीड, किनोवा सीड मिलाए जाते हैं। राखी को सुंदर बनाने के लिए मोती, रंग, नगीने, मोली, स्टार्स आदि काम में लिए जाते हैं।
अब देश के साथ साथ विदेशों से भी अच्छी डिमांड आ गयी है
हनिमैन चैरिटेबल मिशन सोसाइटी ने गरीब महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को रोजगार दिलाने के उद्देश्य से राखी बनवाना शुरू किया। खास बात यह है की इनकी अब देश के साथ साथ विदेशों से भी अच्छी डिमांड आ गयी है और गायों के गोबर से बनी रखी को विदेशों में भी इस बार बेचा जा रहा है।