सेलरी इंक्रीमेंट मिलने से खुशी मिलती है। यह आपकी कड़ी मेहनत का ईनाम है। लेकिन, हर बार जब आपकी आय बढ़ती है, तो इससे आपकी टैक्स-योग्य आय भी बढ़ती है, जिसके कारण आखिरकार आपको अधिक टैक्स का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन, आप आयकर अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत उपलब्ध कटौतियों का लाभ उठा कर आप अपनी टैक्स लाएबिलिटी को कम कर सकते हैं। यदि आपके वेतन में हाल ही बढ़ोतरी हुई है, तो अपनी आय, अनुमानित करों की समीक्षा करने और अपने करों को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की आप समीक्षा कर सकते हैं। चालू वित्तीय वर्ष के लिए किस प्रकार से टैक्स प्लानिंग करें, यहां उसके लिए सरल मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। अपने बढ़े हुए वेतन और उपलब्ध कटौतियों पर विचार करें। कटौतियों के बाद आपकी आय पर कर की गणना की जाएगी।
अपने सकल वेतन (ग्रॉस सेलरी) पर विचार करें। मान्य कटौतियों जैसे एचआरए, यात्रा भत्ता, या चिकित्सा रिइम्बर्समेंट्स को कम करें। इसके बाद आपको विभिन्न धाराओं जैसे 80C और 80D के तहत कटौतियां मिलती हैं। सभी कटौतियों को कम करने के बाद शेष राशि टैक्स योग्य आय होती है। हर धारा के तहत कटौती सीमा होती है। यदि आप पूरी सीमा का उपयोग नहीं करते हैं, तो आपको अधिक कर देना होगा।
पता लगाएं कि आप किस टैक्स स्लैब में आते हैं और उसी के अनुसार अपनी टैक्स-बचत योजना तैयार करें। यदि आपकी टैक्स-योग्य आय 2.5 लाख रूपये तक है, तो आपको कोई टैक्स नहीं देना है। उसके बाद, 5 लाख रूपये तक, नई टैक्स व्यवस्था और पुरानी टैक्स व्यवस्था के अंतर्गत आपके टैक्स एक जैसे ही रहते हैं। अब, पुरानी व्यवस्था में 2.5 लाख रूपये से लेकर 3 लाख रूपये के बीच में और नई टैक्स व्यवस्था में 3 लाख रुपए से 5 लाख रुपए के बीच में आपकी टैक्स योग्य आय पर टैक्स की दर 5% है। उसके बाद, टैक्स स्लैब बदल जाता है। पुरानी टैक्स व्यवस्था में, आपको 5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए के बीच में आय पर 20% टैक्स देना पड़ता है। 10 लाख रुपए से अधिक की आय पर 30% टैक्स लगाया जाता है। लेकिन, नई टैक्स व्यवस्था में, 10 लाख रुपए तक दो और टैक्स स्लैब शामिल किए गए हैं। पहला 5 लाख रूपये से 7.5 लाख रूपये के बीच में है, जिस पर 10% टैक्स लगाया जाता है और 7.5 लाख रूपये से 10 लाख रूपये के बीच की आय पर आपको 15% कर देना पड़ता है। अगर यह जानकारी मुश्किल लगती है, तो प्रत्येक व्यवस्था के तहत अपने टैक्स को समझने के लिए ऑनलाइन टैक्स कैलकुलेटर की सहायता प्राप्त करें। ऐसा करने सुगम रहेगा।
आप धारा धारा 80C के तहत 1.5 लाख रुपए और धारा 80D के तहत 1 लाख रुपए तक की कटौती प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप इस छूट का पूरा इस्तेमाल नहीं करते तो आपको अधिक टैक्स देना पड़ेगा। लेकिन, यह याद रखना भी जरूरी है कि टैक्स संबंधी निवेश जरूरी नहीं है तथा यह आपकी मर्जी पर निर्भर करता है। इसके अलावा, यदि आप निम्न आय समूह में आते हैं, तो आपको छूट प्राप्त करने के लिए 1.5 लाख रुपए की पूरी पर्मिसिबल राशि का इस्तेमाल भी नहीं करना पड़ेगा। आप टैक्स बचत इंस्ट्रुमेंट्स में न्यूनतम निवेश कर सकते हैं। लेकिन अगर आपका टैक्स स्लैब टैक्स बचत के सारे उपाय करने के बावजूद भी उच्च है, तो आपको अभी भी अधिक टैक्स देना पड़ेगा। अगर आपकी टैक्स-योग्य आय 5 लाख रुपये से 10 लाख रूपये के बीच में है, तो अपनी टैक्स की राशि को बहुत अधिक कम करने के लिए आपको टैक्स छूट की पूरी सीमा का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। आप टैक्स बचत करने के लिए निम्नलिखित चार निवेश इंस्ट्रुमेंट्स का प्रयोग कर सकते हैं।
इन म्यूचल फंड स्कीमों में आपको धारा 80C के अंतर्गत कर छूट मिलती है, जिसकी पर्मिसिबल सीमा 1.5 लाख रुपए है। तीन वर्ष की लॉक-इन अवधि के साथ, इस प्रकार की स्कीमों को टैक्स छूट प्राप्त करने और इंफ्लेशन से अधिक रिटर्न प्राप्ति का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है।
पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीपी) सरकार द्वारा समर्थित स्कीम है जिसकी लॉक-इन अवधि 15 वर्ष होती है और जिस पर वर्तमान में 7.1% रिटर्न मिलता है। पीपीएफ अकाउंट में किया जाने वाला न्यूनतम निवेश 500/- रूपये है और अधिकतम राशि 1.5 लाख रूपये होती है। चाहे एक मुश्त या फिर अलग-अलग राशि में किए गए निवेश पर धारा 80C के अंतर्गत कर छूट मिलती है।
निवेश का यह जरिया उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो पैसे की सुरक्षा के साथ कर बचत करना चाहते हैं। इसके साथ 5 वर्ष की लॉक-इन अवधि जुड़ी रहती है। टैक्स बचत एफडी निवेश पर धारा 80C के तहत कर छूट मिलती है। लेकिन, प्राप्त होने वाले रिटर्न पर अन्य स्रोतों से आय के तहत टैक्स लगाया जाता है और आप जिस टैक्स स्लैब में आते हैं उसके अनुसार टैक्स लगाया जाता है।
रिटायरमेंट के लिए एनपीएस स्वैच्छिक और दीर्घकालिक निवेश योजना है। इस योजना की लॉक-इन अवधि आपकी रिटायरमेंट तक जारी रहती है। निवेश पर आयकर अधिनियम 80CCD(1) के तहत एनपीएस में हर साल 1.5 लाख रुपए तक की टैक्स कटौती दी जाती है। साथ ही, धारा 80CCD (1B) के तहत 1.5 लाख रुपए की सीमा के बाद यदि आप अपनी तरफ से 50,000/- रुपए का अंशदान करते हैं, तो आपको अतिरिक्त टैक्स छूट भी मिल सकती है।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)