Mutual Funds Investment: म्यूचुअल फंड्स लोकप्रिय निवेश इंस्ट्रूमेंट हैं जिनसे लंबी अवधि में पैसा बढ़ाने में मदद मिलती है। इनसे लंबे समय में मुद्रास्फीति को मात देने वाला रिटर्न मिल सकता है, और इनकी डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो की संरचना सुनिश्चित करती है कि जोखिम का ध्यान रखते हुए बेहतर रिटर्न मिले। आप म्यूचुअल फंड स्कीम में या तो 'रेगुलर' तरीके से निवेश कर सकते हैं जिसमें फंड मैनेजर या डिस्ट्रीब्यूटर आपकी इंवेस्टमेंट कॉल लेने के लिए कुछ शुल्क लेते हैं या फिर आप डायरेक्ट निवेश भी कर सकते है जो कि कम लागत के साथ बेहतर रिटर्न प्रदान करता है।
म्यूचुअल फंड स्कीम में डायरेक्ट निवेश करने से बिचौलिये (इस मामले में डिस्ट्रीब्यूटर) की भूमिका समाप्त हो जाती है, और तब निवेशक बिना डिस्ट्रीब्यूटर की मदद के फंड हाउस में सीधे निवेश कर सकते हैं। यह निवेशक के लिए फायदेमंद लगता है क्योंकि इसमें निवेश से जुड़े व्यय शुल्क कम हो जाते हैं यानी फंड हाउस द्वारा एसेट के प्रबंधन के लिए लिया जाने वाला शुल्क। हालांकि, डायरेक्ट निवेश करना इतना सरल भी नहीं है, और एक निवेशक को चाहिए कि किसी भी गंभीर नुकसान से बचने के लिए वह म्यूचुअल फंड्स और प्रतिभूति बाजार (सिक्योरिटीज मार्केट) से अच्छी तरह वाकिफ हो। यहां म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट निवेश करने के कुछ फायदे और नुकसान दिए जा रहे हैं जिनसे आपको पूरी तरह अवगत होकर कोई विकल्प चुनने में मदद मिलती है।
म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट निवेश के फायदे
कम खर्च: व्यय अनुपात (यानी एक्सपेंस रेशियो) वह शुल्क है जो किसी स्कीम द्वारा निवेशकों के निवेश का प्रबंधन करने के लिए उनसे ली जाती है। आमतौर पर, रेगुलर' इक्विटी-ओरिएंटेड स्कीम के लिए, यह प्रबंधन किए जाने वाले एसेट के 1 प्रतिशत से 2.5% तक होता है। रेगुलर डेब्ट स्कीम के लिए, व्यय अनुपात कम से कम 0.05% से 0.6% तक होता है। रेगुलर स्कीम बिचौलियों के जरिए संचालित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक रेगुलर इक्विटी फंड में आपका निवेश मूल्य 1,000 रुपए है तो आपको शुल्क के रूप में 10 रुपए से लेकर 25 रुपए का भुगतान करना पड़ सकता है। हालाँकि, डायरेक्ट स्कीम में, एक इक्विटी स्कीम का व्यय 1.5% तक कम हो जाता है। इसका अर्थ है कि यदि किसी रेगुलर स्कीम में निवेशकों से 2.5% का शुल्क लिया जा रहा है, तो उसी स्कीम में डायरेक्ट मोड के जरिए किए गए निवेश पर 1% शुल्क लिया जाएगा, इस तरह निवेशकों की लागत में न सिर्फ कटौती हो जाएगी बल्कि ज्यादा रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए निवेशकों की ओर से स्कीम में अधिक धनराशि निवेश की जाती है।
ज्यादा रिटर्न: चूंकि म्यूचुअल फंड्स में निवेश के डायरेक्ट मोड में निवेशकों की लागत कम होती है क्योंकि इसमें कोई डिस्ट्रीब्यूटर शामिल नहीं होता है, तो अंडरलाइंग पोर्टफोलियो में अधिक फंड का निवेश किया जाता है। इससे लंबी अवधि में निवेशकों को बेहतर रिटर्न मिलता है। यह देखा जाता है कि नियमित निवेश की तुलना में प्रत्यक्ष स्कीम में निवेशकों को 1-1.5% ज्यादा रिटर्न मिलता है। हालाँकि 1-1.5% का ज्यादा रिटर्न दिखने में बहुत कम लग सकता है, लेकिन अवधि बढ़ने के साथ आप पैसा बढ़ने में काफी फर्क देख सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि
आपने एक रेगुलर इक्विटी स्कीम में 1.58% के व्यय अनुपात पर 1,000 रुपए की एसआईपी करके पिछले पाँच वर्षों में 60,000 रुपए का निवेश किया है तो आपको 1,04,106 रुपए का रिटर्न मिलेगा। लेकिन यदि आपने प्रत्यक्ष निवेश के जरिए उसी स्कीम में 0.46% के व्यय अनुपात पर समान राशि की एसआईपी की है तो आपको रिटर्न के रूप में 1,07,871 रुपए प्राप्त होंगे। यह अंतर अल्पावधि में कम लग सकता है लेकिन बहुत लंबी अवधि में इसमें कई लाख का फर्क दिख सकता है।
म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट निवेश के नुकसान
प्रदर्शन और शुल्क के मामले में प्रत्यक्ष निवेश बेहतर है। म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट निवेश केवल तभी फायदेमंद है जब निवेशक को तकनीकी जानकारी होने के साथ ही वह बाजार की स्थिति से वाकिफ हो और यह समझता हो कि म्यूचुअल फंड्स कैसे काम करते हैं। ज्ञान की कमी के चलते म्यूचुअल फंड में प्रत्यक्ष निवेश करने वाले निवेशकों से गलतियां होने की संभावना रहती है। भले ही अधिक रिटर्न पाने के लिए प्रत्यक्ष निवेश बेहतर है, लेकिन यह सभी के लिए उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो बाजार में नए हैं। ऐसे निवेशकों को नीचे बताई गई सामान्य गलतियों से बचना चाहिए।
स्कीम चुनने में त्रुटि: भारत में विभिन्न फंड हाउसों द्वारा कई म्यूचुअल फंड स्कीमों की पेशकश की जाती है। उपयुक्त स्कीम का चयन करना कोई आसान काम नहीं है। प्रायः निवेशक भविष्य के अपेक्षित प्रदर्शन को ध्यान में रखे बिना पिछले प्रदर्शन को देखकर ही स्कीम चुन बैठते हैं। इस तरह वे अतीत में बेहतर प्रदर्शन करने वालों में निवेश करके संभावित रिटर्न पाने से वंचित हो जाते हैं, जिसे किसी अन्य स्कीम में निवेश करके प्राप्त किया जा सकता था।
निर्णय लेना: बाजार की स्थिति के आधार पर, न सिर्फ निवेश पोर्टफोलियो की समीक्षा की जानी चाहिए बल्कि नियमित अंतराल पर उसमें उपयुक्त परिवर्तन करते रहना चाहिए। हालाँकि, आमतौर पर यह देखा गया है कि प्रत्यक्ष निवेश करने वाले निवेशक अपनी निवेश अवधि के विभिन्न चरणों में सही निर्णय लेने में विफल रहते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ स्थितियों में फंड से आंशिक निकासी करने, बाजार में मंदी आने पर अतिरिक्त यूनिट्स खरीदने, अन्य स्कीम में स्विच करने की आवश्यकता महसूस हो सकती है, अतः आपको अन्य बातों के साथ हर करेक्शन से घबराने की जरूरत नहीं है। प्रायः इस तरह के निवेश निर्णय नहीं लेने की असमर्थता से निवेशकों का 'पैसा बढ़ने का सफर' प्रभावित होता है।
पूर्वाग्रह: प्रत्यक्ष निवेश करने वाले निवेशक कुछ पूर्वाग्रह बना लेते हैं जो अंततः उनके निवेश पोर्टफोलियो को बिगाड़ देता है। म्यूचुअल फंड में प्रत्यक्ष निवेश करने वाले निवेशकों में एक तरह के फंडों के प्रति या बुनियादी बातों को जाने बिना किसी खास फंड के प्रति सामान्य रुझान देखा जाता है। पूर्वाग्रही निवेश निर्णय में एसेट आवंटन की बुनियादी बातों की उपेक्षा होती है जो कि जोखिम भरा हो सकता है।
निष्कर्ष
म्यूचुअल फंड्स में डायरेक्ट निवेश हमेशा फायदेमंद होता है बशर्ते निवेश से जुड़ी बुनियादी बातों को निवेशक समझता हो। हालांकि, निवेश निर्णय लेने में की गई गलतियां कम शुल्क के लाभ को खराब चक्रवृद्धि रिटर्न के रूप में नकार सकती हैं। सिर्फ इसलिए कि प्रत्यक्ष निवेश का शुल्क कम है, हमें निवेश में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। एक फंड मैनेजर की अच्छी सलाह आपको एक अनुपयुक्त स्कीम चुनने से रोक सकती है और आपको अपना पैसा बढ़ाने की क्षमता उजागर करने में मदद कर सकती है। एक खराब निर्णय आपकी वित्तीय योजना के सफर को पटरी से उतार सकता है।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)