- उपभोक्त संरक्षण कानून 2019 की बड़ी खासियत अब भ्रामक विज्ञापन देने पर होगी कड़ी कार्रवाई
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में शीघ्र न्याय की व्यवस्था
- जिला, राज्य और देश के स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन का गठन
नई दिल्ली। ग्राहक और विक्रेता बाजार के दो महत्वपूर्ण अंग होते हैं। दोनों का एक दूसरे से अटूट रिश्ता है। लेकिन ऐसा देखा गया कि विक्रेता भ्रामक विज्ञापनों या किसी और तरीके से उपभोक्ताओं से साथ मनमानी करते थे। विक्रेता उस स्तर तक ग्राहकों को फायदा नहीं देते थे जो उनका वाजिब हक था। इसी तरह की दिक्कतों को देखते हुए राजीव गांधी की सरकार उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986(consumer protection act 1986) लाई। उस कानून में 1993 और 2002 में संशोधन किए गए। लेकिन जैसे जैसे समय और आगे बढ़ा तो यह पाया गया कि उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 में व्यापक बदलाव की जरूरत है। कई दौर की बैठकों के बाद इसमें बदलाव करते हुए उपभोक्ता संरक्षण एक्ट 2019 (consumer protection act 2019) का नाम दिया गया। यहां हम बताएंगे कि उपभोक्ता संरक्षण कानून 2019 किस तरह 1986 के कानून से अलग है।
कौन है उपभोक्ता
उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या कमर्शियल उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिये किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है।
झूठे या भ्रामक विज्ञापन पर कार्रवाई
झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिये निर्माण करने वाले या विज्ञापन को बढ़ावा देने वाले पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है। अगर कोई कंपनी या शख्स भ्रामक विज्ञापन को बढ़ावा देने में दोषी पाया जाएगा तो जुर्माने की राशि बढ़ कर 50 लाख रुपए तक हो सकती है। मैन्युफैक्चरर को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर पांच वर्ष तक बढ़ सकती है।
भ्रामक विज्ञापनों का प्रचार करने वालो को उस विशेष प्रोडक्ट या सेवा को एक वर्ष तक एन्डोर्स करने से प्रतिबंधित भी कर सकती है। एक बार से ज्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन कुछ अपवाद हैं जब एन्डोर्सर को ऐसी सजा का भागी नहीं माना जाएगा।
वर्तमान कानून से उपभोक्ताओं को यह लाभ होंगे
- वर्तमान में शिकायतों के निवारण के लिये उपभोक्ताओं के पास एक ही विकल्प है, जिसमें अधिक समय लगता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में त्वरित न्याय की व्यवस्था की गई है।
- भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता में भ्रम की स्थिति बनी रहती है तथा उत्पादों में मिलावट के कारण उनके स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भ्रामक विज्ञापन और मिलावट के लिये कठोर सजा का प्रावधान है जिससे ताकि इस तरह के मामलों में कमी आए।
- दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं की ज़िम्मेदारी का प्रावधान होने में उपभोक्ताओं को छान-बीन करने में अधिक समय खर्च करने की ज़रुरत नहीं होगी।
- उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया को आसान बनाया गया है।
- वर्तमान उपभोक्ता बाजार के मुद्दों- ई कॉमर्स और सीधी बिक्री के लिये नियमों का प्रावधान हैं।
उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन( CDRC)
जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों (Consumer Disputes Redressal Commissions) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत की जा सकती है।
- अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का व्यापार।
- दोषपूर्ण वस्तु या सेवा।
- अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना।
- ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिये पेश करना जो जीवन और सुरक्षा के लिये जोखिमपूर्ण हो सकती हैं।
अनुचित अनुबंध के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय CDRCs में फाइल की जा सकती है। जिला CDRC के आदेश के खिलाफ राज्य CDRC में सुनवाई की जाएगी। राज्य CDRC के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय CDRC में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।
जिला स्तर पर CDRC उन शिकायतों के मामलों की सुनवाई करेगा जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक न हो। राज्य CDRC उन शिकायतों के मामले में सुनवाई करेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक हो, लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो। 10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं के संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय CDRC में दाखिल की जा सकेंगी।