क्या कोई इन्वेस्टमेंट टूल पूरी तरह रिस्क-फ्री हो सकता है, या क्या ऐसा मानना गलत है? प्रत्येक इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट में एक या कई तरह के रिस्क होते हैं। इससे इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट के रिटर्न का पता लगाने में काफी मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, अधिकांश इन्वेस्टर्स को पता है कि इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स में अधिक मार्केट-लिंक्ड रिस्क होने पर भी वे लम्बे-समय में मनचाहा रिटर्न के लिए सबसे अच्छे और सबसे बुरे मामले के परिदृश्यों का मूल्यांकन करने के बाद उनमें इन्वेस्ट करते हैं। इसी तरह, फिक्स्ड डिपोजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फंड्स, रियल एस्टेट, और अन्य इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में भी रिस्क होता है, लेकिन अलग-अलग प्रोडक्ट में रिस्क सीमा और रिटर्न क्षमता अलग-अलग होती है।
हालिया डेब्ट फंड गड़बड़ी के कारण कई इन्वेस्टर्स के मन में शक पैदा हो गया है। स्टेबल रिटर्न्स के लम्बे इतिहास के कारण, कई इन्वेस्टर्स भूल गए थे कि डेब्ट फंड्स में भी कुछ रिस्क होता है। यदि आपको किसी प्रोडक्ट में इन्वेस्ट करने से पहले उसकी रिस्क सीमा और रिटर्न सम्भावना के बारे में पता है तो आप एक बेहतर इन्वेस्टमेंट डिसिशन ले सकते हैं। लेकिन इससे यह सच नहीं बदलता है कि डेब्ट फंड्स अभी भी, फाइनेंसियल लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर सकने वाले बेहतरीन इन्वेस्टमेंट टूल्स हैं। आइए देखते हैं कि डेब्ट फंड्स कैसे उपयोगी इन्वेस्टमेंट्स हैं और उनमें इन्वेस्ट करने से पहले आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
टैक्स बेनिफिट्स
डेब्ट फंड्स, लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स का हिसाब लगाते समय इंडेक्सेशन बेनिफिट के माध्यम से महंगाई रिस्क से आपकी रक्षा करता है। तीन साल से ज्यादा समय के लिए किए गए डेब्ट फंड इन्वेस्टमेंट को लॉन्ग-टर्म माना जाता है, और उनके कैपिटल गेन्स को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) कहा जाता है। तीन साल से कम के इन्वेस्टमेंट कैपिटल गेन्स को शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) कहा जाता है। डेब्ट फंड्स पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% LTCG टैक्स लगता है, जबकि STCG टैक्स, इनकम टैक्स स्लैब रेट के अनुसार लगता है। इसलिए, हायर टैक्स ब्रैकेट वाले इन्वेस्टर्स अपने LTCG बेनिफिट के लिए डेब्ट फंड्स में इन्वेस्ट करके ज्यादा टैक्स बचा सकते हैं।
इस पर कोई TDS नहीं लगता
डेब्ट फंड इन्वेस्टर्स की रिस्क उठाने की चाहत अक्सर कम होती है लेकिन वे बैंक FD से बेहतर रिटर्न चाहते हैं। इसलिए, FD और डेब्ट फंड्स की तुलना करने पर सब साफ़ हो जाएगा। एक फाइनेंसियल इयर में FD पर 40,000 से ज्यादा इंटरेस्ट मिलने पर, बैंक उस पर 10% TDS काट लेता है। लेकिन यदि आपकी टैक्स देनदारी कम है, तो आप TDS अमाउंट का रिफंड क्लेम कर सकते हैं। दूसरी तरफ, डेब्ट फंड्स पर TDS नहीं लगता है। डेब्ट फंड्स को रेडीम करने पर इन्वेस्टर की टैक्स देनदारी बढ़ जाती है। FD की तुलना में इंटरेस्ट रेट ट्रेंड डाउनवार्ड होने पर डेब्ट फंड्स ज्यादा रिटर्न देते हैं लेकिन इंटरेस्ट रेट ट्रेंड अपवार्ड होने पर FD ज्यादा रिटर्न देता है। लेकिन, प्रीमैच्योर FD विथड्रॉल पर पेनाल्टी लगती है जबकि इंटरेस्ट रेट गिरने पर FD में भी इन्वेस्टमेंट रिस्क होता है।
डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करते समय ध्यान में रखने लायक बातें
डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करने से पहले, आपको उससे जुड़े विभिन्न रिस्क के बारे में पता होना चाहिए। मार्केट में तरह-तरह के डेब्ट फंड्स हैं और हर प्रोडक्ट में अलग-अलग रिस्क होता है। तो, डेब्ट फंड का चुनाव करते समय किन-किन रिस्क को ध्यान में रखना चाहिए? डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करते समय क्रेडिट रिस्क, लिक्विडिटी रिस्क, इंटरेस्ट रेट रिस्क, और ड्यूरेशन रिस्क जैसे रिस्क पर नजर रखनी चाहिए। इन्वेस्टर्स द्वारा अचानक रेडीम करने की होड़ के कारण क्रेडिट रिस्क पैदा होने और संदिग्ध AMC द्वारा समय पर अपनी होल्डिंग्स न बेच पाने के कारण हालिया डेब्ट फंड गड़बड़ी पैदा हुई है। इन्वेस्टर्स को इंटरेस्ट रेट रिस्क के बारे में भी पता होना चाहिए। इंटरेस्ट रेट बढ़ने पर, डेब्ट फंड्स का NAV गिरता है, जिससे इन्वेस्टर्स का रिटर्न भी गिर जाता है। लम्बे-समय तक होल्ड किए जाने वाले एसेट्स में इन्वेस्ट करने वाले डेब्ट फंड्स में अधिक इंटरेस्ट रेट वोलेटिलिटी रिस्क होता है।
मौजूदा परिस्थिति में, कम-समय के लिए सिक्योरिटीज को होल्ड करने वाले डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करना ज्यादा सुरक्षित होता है। ऐसे फंड्स अधिकतर G-सेक या AAA-रेटेड सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं। बहुत कम-रिस्क उठाने वाले इन्वेस्टर्स, भारत बॉन्ड ETF में भी इन्वेस्ट कर सकते हैं। अब अधिकांश इन्वेस्टर्स को पता चल चुका है कि डेब्ट फंड्स रिस्क-फ्री नहीं होते। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि डेब्ट फंड्स में, रिस्क को इक्विटी फंड्स की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक मैनेज किया जा सकता है। अपने फाइनेंसियल लक्ष्यों और पैसे की जरूरत के अनुसार डेब्ट फंड्स का सही चुनाव और डेब्ट फंड के पोर्टफोलियो एलोकेशन की नियमित निगरानी भी जरूरी है।
इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) (ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)