- ईरान, अफगानिस्तान एवं उज्बेकिस्तान से हर साल 1200 टन हींग का आयात करता है भारत
- अपने आयात बिल में कटौती करना चाहती है सरकार, आत्मनिर्भर बनने का प्रयास
- आईएचबीटी ने शुरू में हींग की खेती के लिए 300 हेक्टेयर भूमि की पहचान की है
नई दिल्ली : भारतीय खान-पान और किचन का हींग अनिवार्य हिस्से की तरह है। शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां हींग की खूशबू न मिले। भारत में हींग का इस्तेमाल खाने में होने के साथ-साथ दवा के रूप में भी इसका उपयोग होता है। देश में इसकी मांग एवं उपयोगिता इतनी है कि सरकार को हर साल 600 करोड़ रुपए के कीमत की हींग का आयात करना पड़ता है। हींग की इस उपयोगिता को देखते हुए सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बॉयरसोर्स, पालमपुर (आईएचबीटी) के वैज्ञानिकों ने इसकी खेती हिमालयी क्षेत्र में करने का फैसला किया है। रिपोर्टों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति वैली स्थित क्वारिंग गांव में हींग की पहली खेती की जा रही है।
ईरान और अफगानिस्तान के हींग मशहूर
हींग का वैज्ञानिक नाम 'फेरूला एसाफोटिडा' है जो कि हर्बल परिवार से आता है। यह बारहमासी पौधा है और इसकी जड़ से आद्र रूप में हींग निकलती है जबकि हींग का अधिकांश हिस्सा एवं पोषक तत्व पौधे की जड़ में रहता है। दुनिया भर में ईरान और अफगानिस्तान का हींग मशहूर है। विश्व भर हींग की आपूर्ति के लिए ये दोनों देश जाने जाते हैं। हींग की खेती के लिए सूखे एवं सर्द मौसम की जरूरत होती है। यूरोपीय देश हींग का इस्तेमाल दवा बनाने में करते हैं।
भारत में अब तक हींग की खेती नहीं होती है
भारत में हींग की खेती नहीं होती है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक भारत ईरान, अफगानिस्तान एवं उज्बेकिस्तान से 600 करोड़ रुपए की लागत में करीब 1200 टन हींग का आयात करता है। एनबीपीजीआर नई दिल्ली का कहना है कि साल 1963 और 1989 के बीच भारत ने एक बार एसाफोटिडा के बीज खरीदने की कोशिश की लेकिन परिणाम के बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आ पाई।
ईरान से हींग के बीज मंगाए गए
साल 2017 में आईएचबीटी हिमालयी क्षेत्र में हींग का उत्पादन करने के उद्देस्य से एक प्रायोगिक प्रोजेक्ट लेकर एनबीपीजीआर के पास पहुंचा। शोध के लिए हींग के बीज ईरान से मंगाए गए। ये बीच एनबीपीजीआर के पास रखे गए। इसके बाद इन बीजों पर प्रयोगशालाओं में नियंत्रित तापमान के अंदर कई शोध हुए। आईएचबीटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं इस प्रोजेक्ट के मुख्य जांचकर्ता अशोक कुमार का कहना है, '20 दिनों के बाद ईरान के अलग-अलग इलाकों से मंगाए गए सभी छह तरह के बीज प्रयोगशाला की नियंत्रित दशाओं में उग गए हैं।'
गत जून में सीएसआईआर ने हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस एमओयू के तहत कृषि विभाग और सीएसआईआर अगले पांच साल तक संयुक्त रूप से इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाएंगे।