- मर्सर सीएफए वैश्विक पेंशन सूचकांक में भारतीय पेंशन प्रणाली को 40वां स्थान मिला है।
- सूचकांक में आइसलैंड पहले स्थान पर है।
- इस साल सूचकांक में चार नए देशों को शामिल किया गया।
बुढ़ापे में आर्थिक तौर पर किसी के ऊपर निर्भर न होना पड़े, इसके लिए नागरिकों के लिए कई पेंशन योजनाएं उपलब्ध हैं। एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय पेंशन प्रणाली 43 प्रणालियों में से 40वें स्थान पर है। वहीं पर्याप्तता उप-सूचकांक में इसे सबसे कम रैंक मिला है। मर्सर सीएफए वैश्विक पेंशन सूचकांक (MCGPI) में कहा गया है कि पेंशन प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए रणनीतिक सुधारों की जरूरत है, ताकि भारत में रिटायरमेंट के बाद पर्याप्त आय सुनिश्चित की जा सके। प्रमुख वैश्विक मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म, मर्सर कंसल्टिंग द्वारा किए गए इस वार्षिक सर्वेक्षण का उद्देश्य प्रत्येक सेवानिवृत्ति आय प्रणाली को बेंचमार्क करना है। इसके लिए 50 से ज्यादा संकेतकों का उपयोग किया गया।
आइसलैंड का समग्र सूचकांक मूल्य सबसे अधिक
इस साल इसमें चार नए देशों को शामिल किया गया- आइसलैंड, ताइवान, संयुक्त अरब अमीरात और उरुग्वे। सूचकांक में पहली बार उपस्थित हुए आइसलैंड ने 84.2 का उच्चतम समग्र सूचकांक मूल्य प्राप्त करने के साथ नीदरलैंड को पछाड़ दिया। थाईलैंड का समग्र सूचकांक मूल्य सबसे कम यानी 40.6 रहा।
43.3 रहा भारत का समग्र सूचकांक मूल्य
सर्वेक्षण के अनुसार, भारत का समग्र सूचकांक मूल्य 43.3 रहा। तीन-उप सूचकांकों के माध्यम से पेंशन व्यवस्था की मजबूती को रेखांकित किया गया। ये उप-सूचकांक हैं- पर्याप्तता, स्थिरता और उपयुक्तता, जिसमें भारत ने क्रमशः 33.5, 41.8 और 61.0 स्कोर किया। पर्याप्तता उप-सूचकांक लाभों की पर्याप्तता को दर्शाता है, स्थिरता उप-सूचकांक दर्शाता है कि वर्तमान प्रणाली भविष्य में लाभ प्रदान करने के लिए सक्षम है। वहीं उपयुक्तता उप-सूचकांक में प्रणाली का समग्र शासन और संचालन को प्रभावित करने वाली विधायी आवश्यकताएं शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, भारत में सामाजिक सुरक्षा का दायरा मजबूत न होने से कार्यबल को पेंशन के लिए खुद ही बचत करनी पड़ती है। देश में प्राइवेट पेंशन व्यवस्था में कवरेज सिर्फ छह फीसदी है। 90 फीसदी से ज्यादा कार्यबल असंगठित क्षेत्र में हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में कार्यबल को पेंशन बचत के दायरे में लाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।