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ज्यादातर सामान भारत में ही बनता है पर कलपुर्जों के लिए अब भी 70% निर्भरता चीन पर 

Updated Jun 29, 2020 | 19:56 IST

कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लायंसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीईएएमए) ने कहा कि ज्यादातर सामान भारत में ही बनता है लेकिन कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता बरकरार है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
कलपुर्जों के लिए अब भी 70% निर्भरता चीन पर
मुख्य बातें
  • सभी ब्रांड पिछले दो-तीन वर्षों में क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत काम किए हैं
  • सभी श्रेणियों में तैयार माल के विनिर्माण के लिए नए संयंत्र लगाए गए हैं
  • कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता अभी भी है और यह 25 से 70 प्रतिशत तक है

नई दिल्ली : उद्योग संस्था सीईएएमए के मुताबिक भारत में बिकने वाले लगभग 95 प्रतिशत उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक और उपकरण स्थानीय स्तर पर ही बनते हैं, लेकिन इनके कलपुर्जों के लिए चीन पर 25 से लेकर 70 प्रतिशत तक निर्भरता अभी बरकरार है, जिसे रातों रात खत्म करना कठिन है। कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लायंसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीईएएमए) ने कहा कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान से पहले ही चीन में कोरोना वायरस महामारी फैलने के दौरान आपूर्ति बाधित होने की वजह से विभिन्न कंपनियों ने वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी थी।

तैयार माल के मैन्युफैक्चरिंग के लिए लगाए गए हैं नए प्लांट 

सीईएएमए के अध्यक्ष कमल नंदी ने बताया कि एक उद्योग के रूप में (सभी ब्रांड) हमने पिछले दो-तीन वर्षों में क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत काम किए हैं। इसके लिए सभी श्रेणियों में तैयार माल के विनिर्माण के लिए नए संयंत्र लगाए गए हैं। अब हम तैयार माल खंड की सभी श्रेणियों में काफी अच्छी स्थिति में हैं। उन्होंने कहा कि एयर कंडीशनर खंड में लगभग 30 प्रतिशत अभी भी आयात किया जाता है, लेकिन इसमें और कमी आएगी, क्योंकि नई क्षमताओं को तैयार किया जा रहा है और अगले सत्र में इसमें बहुत अधिक कमी होगी।

कलपुर्जों के लिए 70 प्रतिशत तक चीन पर निर्भर

भारत में विनिर्माण की मौजूदा स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि हम देश में जो उत्पाद बेचते हैं, उसमें 95 प्रतिशत से अधिक देश में तैयार होते हैं। गोदरेज उपकरणों के मामले में भी ऐसा ही है। नंदी गोदरेज अप्लायंसेज के कारोबार प्रमुख और कार्यकारी उपाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि, कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता अभी भी है और यह विभिन्न श्रेणियों में 25 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक है। सबसे कम वाशिंग मशीन के लिए है और सबसे ज्यादा एयर कंडीशनर के लिए है। उन्होंने कहा कि जब तक हम कलपुर्जों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित नहीं करते हैं, तब तक चीन पर निर्भरता कम करना संभव नहीं है। इसमें समय लगेगा। हमें एक विकल्प तलाशना होगा, जो वैश्विक स्तर पर उपलब्ध हो।

हमें विकल्पों को विकसित करना होगा

नंदी ने कहा कि भारत में भी विकल्प उपलब्ध है लेकिन हमें उन विकल्पों को विकसित करना होगा। इसमें समय लगेगा और हमारा अनुमान है कि देश में कलपुर्जों के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने में दो साल लगेंगे। उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और सरकार चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) जैसी योजनाओं के साथ विनिर्माण को प्रोत्साहित कर रही है।
 
चीन लॉकडाउन से गुजर रहा था तो हमें  कलपुर्जों की कमी महसूस हुई

भारत और चीन के बीच संबंधों में मौजूदा तनाव के मद्देनजर उन्होंने कहा कि भूल जाइए कि अब क्या हो रहा है। यहां तक ​​कि पहली तिमाही में (जनवरी-मार्च) जब चीन लॉकडाउन से गुजर रहा था और हम सभी को कलपुर्जों की कमी महसूस हुई, तभी ‘चीन प्लस वन’ की रणनीति तैयार हो गई थी। उन्होंने बताया कि इसके लिए थाईलैंड, वियतनाम और कोरिया जैसे देशों पर विचार हुआ।

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