- उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर राज्यों से रोप-वे प्रोजेक्ट के लिए प्रस्ताव मिले हैं।
- रोप-वे प्रोजेक्ट से एक घंटे में 6000-8000 यात्रियों को ले जाया जा सकता है।
- 2022-23 में 60 किलोमीटर की लंबाई वाले 8 रोपवे परियोजनाओं का कार्य शुरू किए जाएंगे।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जब बुधवार को उत्तराखंड में चुनावी रैली के दौरान पर्वतमाला प्रोजेक्ट (Parvatmala Projects) की बातें कर रहे थे, तो निश्चित तौर पर उनके निशाने पर चीन की सीमा पर स्थित गांव (Border Villages at China Border) भी रहे होंगे। उनका कहना था देश के हिमालयी राज्यों में 'पर्वतमाला प्रोजेक्ट' से बहुत फायदा होगा। और सीमावर्ती गांवों में बुनियादी सुविधाओं का विकास होने के साथ ही सड़कों का जाल बिछाएगा जाएगा।
इस समय पर्वतीय राज्यों से पलायन सुरक्षा और जनसांख्यिकी की सबसे बड़ी चुनौती है। पलायन की बड़ी वजह पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में बुनियादी ढांचों का विकास नही होना है। यानी वहां पर सड़क की कनेक्टिविटी, स्कूल, अस्पताल सहित अहम सुविधाएं की कमी होना है।
क्या है पर्वतमाला प्रोजेक्ट
वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने वर्ष 2022-23 के बजट में पीपीपी मॉडल के आधार पर रष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम "पर्वतमाला" परियोजना शुरू करने का ऐलान किया था। यह परियोजना दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक सड़कों के स्थान पर परिवहन का एक स्थायी विकल्प होगा। परियोजना का उद्देश्य दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने के अलावा, यात्रियों के लिए संपर्क और सुविधा में सुधार करना है।
परियोजना में भीड़भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सकता है, जहां पारंपरिक सामान्य परिवहन प्रणाली संभव नहीं है। इसी के तहत वर्ष 2022-23 में 60 किलोमीटर की लंबाई वाले 8 रोपवे परियोजनाओं का कार्य शुरू किए जाएंगे। परियोजना उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों जैसे क्षेत्रों में शुरू की जाएगी।
क्या मिलेगा फायदा
घटेगी लागत- रोपवे परियोजनाएं पहाड़ी इलाके में एक सीधी लाइन में बनाई जाती हैं, इस लिए इस परियोजना में भूमि अधिग्रहण की लागत भी कम आती है। इसलिए, सड़क निर्माण की तुलना में रोपवे परियोजनाओं की निर्माण लागत अधिक किफायती हो सकती है।
समय की बचत- रोप-वे हवाई मार्ग से जाते हैं, और सीधी लाइन में बनते हैं, इसलिए पहाड़ों पर दूरी कम हो जाती है। इसलिए समय की बचत होगी।
पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ 3 एस (एक तरह की केबल कार प्रणाली) या उस जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर रोपवे परियोजनाएं प्रति घंटे 6000-8000 यात्रियों को ले जा सकती हैं।
इसके अलावा नदियों, इमारतों, खाई, सड़कों जैसी बाधाओं को आसानी से पार कर सकती है।
इन राज्यों से मिले प्रस्ताव
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से मिली जानकारी के देश में रोपवे के विकास के लिए मेसर्स मैकिन्जे द्वारा एक स्टडी की जारी है। उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (यूटीडीबी) ने उत्तराखंड राज्य में रोपवे के विकास के लिए, सरकार के साथ एक समझौता किया है। शुरू में उत्तराखंड में सात परियोजनाओं को पहचान की गई है। केदारनाथ और हेमकुंड साहिब रोपवे के लिए डीपीआर पर काम चल रहा है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर राज्यों से भी इस तरह के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।
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