- भारत में असमानता की स्थिति पर रिपोर्ट जारी हुई
- पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट में सामने आई अहम बातें
- रिपोर्ट के दो हिस्से हैं- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक पहलू
नई दिल्ली: भारत की गरीबी और अमीरी की असमानता से रेखांकित करती हुई एक सरकारी रिपोर्ट जारी हुई हैं। पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद की यह रिपोर्ट आर्थिक विकास के लिए अपनाए जा रहे दृष्टिकोण की विफलता को उजागर करती है। प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) द्वारा तैयार की गई 'भारत में असमानता की स्थिति' शीर्षक वाली रिपोर्ट इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस द्वारा तैयार की गई थी। इसे ईएसी-पीएम के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने जारी किया।
इन आंकड़ों पर आधारित है रिपोर्ट
यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस), राष्ट्रीय परिवार, स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) और यूडीआईएसई+ से हासिल किए गए आंकड़ों पर आधारित है। पीएलएफएस 2019-20 से खोजे गए आंकड़ों से पता चलता है कि जितनी संख्या में कमाने वाले लोग होते हैं, उनमें से शुरुआती 10% का ही मासिक वेतन 25,000 है जो कुल आय का लगभग 30-35 फीसदी है। शुरुआती 1% कमाने वाले लोग, कुल मिलाकर कुल आय का 6-7% कमाते हैं। जबकि शुरुआती 10% कमाऊ लोग, कुल एक तिहाई आय की हिस्सेदारी रखते हैं।
कौन हैं कमाई करने वाले
रिपोर्ट के दो हिस्से हैं- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक पहलू। 2019-20 में भिन्न रोजगार वर्गों में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी स्वरोजगार कर्मियों (45.78%), नियमित वेतनकर्मी (33.5%) और अनौपचारिक कर्मचारी (20.71%) की थी। सबसे कम आय वाले वर्ग में भी स्वरोजगार वाले कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा है। देश की बेरोजगारी दर 4.8% (2019-20) है और कामगार-आबादी का अनुपात 46.8% है। रिपोर्ट में रोज़गार की प्रकृति के अनुसार वेतन पाने वालों को 3 श्रेणियों - नियमित वेतनभोगी, स्व-नियोजित और आकस्मिक श्रमिकों में वर्गीकृत किया गया है। जुलाई-सितंबर 2019 में नियमित वेतन पाने वालों का औसत मासिक वेतन ग्रामीण पुरुषों के लिए 13,912 रुपये और शहरी पुरुषों के लिए 19,194 रुपये था। जबकि, ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं ने समान अवधि में 12,090 रुपये कमाए।
दिए गए हैं सुझाव
रिपोर्ट में कुछ सुझाव भी दिए गए है जिनमें- आय का वर्गीकरण; जिससे संबंधित वर्ग की जानकारी भी मिलती है, सार्वभौमिक बुनियादी आय, नौकरियों के सृजन, खासतौर पर उच्च शिक्षित लोगों के लिए और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजट बढ़ाने का सुझाव शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया क 'ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में श्रम शक्ति भागीदारी दर के बीच अंतर को देखते हुए यह हमारी समझ है कि मनरेगा जैसी योजनाओं को शहरी क्षेत्र में भी लागू किया जाना चाहिए।