- भारत में खुदरा महंगाई पिछले छह महीने के उच्च स्तर पर आ गई है
- वेजिटेबल ऑयल और दाल की बढ़ी कीमतों से आम आदमी परेशान
- खाद्य तेल पर आयात शुल्क में कटौती करने की सोच रही सरकार
नई दिल्ली : खाद्य तेल एवं दाल की आसमान छूती कीमतों ने पिछले कुछ महीनों से घर के किचन का हाल बिगाड़ दिया है। ये कीमतें कब कम होंगी इसके बारे में अभी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन आम आदमी जेब पर पढ़े अतिरिक्त बोझ से परेशान है। वनस्पति तेल (वेजिटेबल ऑयल) का आयात करने वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। वनस्पति तेल की कीमत में ज्यादा वृद्धि होने के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह का अभी माहौल उसे देखते हुए भारत को आने वाले समय में ज्यादा कीमत देकर वनस्पति ऑयल खरीदना पड़ सकता है। हालांकि, खाद्य तेल पर बढ़ी कीमतों पर जनता को राहत देने के लिए सरकार उपाय कर रही है। सरकार आयात शुल्क में कटौती करने के विचार कर रही है।
सनफ्लावर तेल की कीमत में 50 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि
पिछले 12 महीनों की अगर बात करें तो सनफ्लावर तेल की कीमत में 50 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। कोलकाता जैसे महानगर में इसकी कीमत 77 फीसद तक बढ़ी है। जबकि सरसों के तेल, पॉम आयल और अन्य खाने योग्य तेल में 30 प्रतिशत की ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। दालों की कीमत में भी तेजी देखी जा रही है। पिछले दिनों में चना और तुअर दाल के दाम में 25 से ज्यादा का इजाफा हुआ है। देश भर में खाने योग्य तेल और दाल की कीमत आसमान छू रही है और इससे आम लोग काफी परेशान हैं।
खुदरा महंगाई मई महीने में अपने छह महीने के उच्च स्तर पर
सोमवार को जारी हुआ आंकड़ा बताता है कि खुदरा महंगाई मई महीने में अपने छह महीने के उच्च स्तर 6.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इसकी वजह ईंधन की कीमत और खाद्य कीमतों में वृद्धि बताई गई है। महंगाई की यह दर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए भी चुनौती बनी हुई है। इस दर को देखते हुए आरबीआई को आने वाले समय में अपनी ब्याज दरों में कमी करना एक मुश्किल काम होगा। आंकड़े के मुताबिक इस महीने तेल एवं मैदा के दाम में 30.8 प्रतिशत की वृद्धि जबकि दाल एवं उत्पादों की कीमत में वार्षिक 9.4 फीसदी का इजाफा हुआ है।
सरकार पर बढ़ रहा दबाव
खाद्य तेल एवं दाल की कीमतों में हो रही वृद्धि ने अर्थशास्त्रियों को चौंका दिया है। खास बात यह है कि तेल एवं दाल के अलावा महंगाई दर में वृद्धि हो रही है। ईंधन की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं इससे सरकार पर दबाव बढ़ रहा है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि लॉकडाउन के प्रतिबंध पूरी तरह से हटने के बाद खाद्य वस्तुओं की कीमत में कमी आएगी। इसके अलावा उम्मीद के अनुरूप होने वाली मानसून की बारिश से भी खाद्य कीमतों पर असर पड़ेगा।
बॉयोडीजल के निर्माण में हो रहा वनस्पति तेल का इस्तेमाल
खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि की वजह अंतरराष्ट्रीय बताई जा रही है। दरअसल, कच्चे वनस्पति तेल का इस्तेमाल बॉयोडीजल में किया जा रहा है। इससे वेजिटेबल ऑयल का उत्पादन करने वाले देशों में इसकी मांग ज्यादा हो गई है। अमेरिका और ब्राजील में सूखा पड़ने की वजह से सोया से बनने वाले तेल की कीमत में 70 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ है। अमेरिकी कृषि विभाग का कहना है कि सितंबर तक सोयाबीन के वैश्विक उत्पादन में पांच वर्षों की सर्वाधिक कमी आएगी। इसके 87.9 मिलियन टन पर आने की उम्मीद है।
वेजिटेबल ऑयल के आयात पर 8.5 से 10 अरब डॉलर खर्च करता है भारत
भारत वेजिटेबल ऑयल के आयात पर प्रतिवर्ष औसतन 8.5 से 10 अरब डॉलर खर्च करता है। वेजिटेबल ऑयल की कीमतों में इजाफे से सरकार पर और बोझ पड़ेगा। क्रूड ऑयल एवं सोने के बाद भारत सबसे ज्यादा वेजिटेबल ऑयल का आयात करता है। भारत मं वेजिटेबल ऑयल की खपत एवं मांग को देखते हुए सरकार ने तेल पैदा करने वाली फसलों के उत्पादन पर जोर दिया है। सरकार किसानों को इंसेटिव देने के बारे में भी सोच रही है। वेजिटेबल ऑयल क कीमतों में कमी लाने के लिए सरकार अभी किसी ठोस रणनीति पर आगे नहीं बढ़ी है। वह कीमतों में कमी लाने के लिए आयात शुल्क में कटौती जैसे कदमों पर अभी निर्भर दिख रही है।