- बीमा कंपनियां सिंगल प्रीमियम जीवन बीमा (SPLI) पॉलिसी भी बेचती हैं
- यह पॉलिसी लॉन्ग टर्म के लिए लाइफ कवर प्रदान करती हैं
- नियमित जीवन बीमा पॉलिसियों के समान रिटर्न प्रदान करती हैं
Single premium life insurance policy : भारतीय जीवन बीमा कंपनियां ग्राहकों के लिए एक से बढ़कर एक बीमा पॉलिसी लाती रहती हैं। उसके प्रीमियम महीने-महीने या सालाना भी जमा किए जाते हैं। बार-बार प्रीमियम के झंझट से बचने के लिए बीमा कंपनियां सिंगल प्रीमियम जीवन बीमा (SPLI) पॉलिसी सुविधा भी देती हैं। जीवन बीमा का मतलब यह नहीं है कि आपको हर साल प्रीमियम देना होगा। बीमा कंपनियां सिंगल प्रीमियम जीवन बीमा (SPLI) पॉलिसी भी बेचती हैं, जो लॉन्ग टर्म के लिए लाइफ कवर प्रदान करती हैं और नियमित जीवन बीमा पॉलिसियों के समान रिटर्न प्रदान करती हैं। फिर भी SPLI अधिक लॉन्ग टर्म के लिए होते हैं। इसमें आपके पास पांच साल पूरा होने के बाद मैच्योरिटी से पहले प्लान से बाहर निकलने का विकल्प होता है।
जहां तक टैक्स बेनिफिट्स की बात है। SPLI रेगुलर प्रीमियम जीवन बीमा पॉलिसियों से अलग हैं। जीवन बीमा पॉलिसी होने के नाते, SPLI पॉलिसियां धारा 80C(निवेश के समय) और धारा 10(10D) (मैच्योरिटी टैक्स फ्री) के तहत टैक्स लाभ प्रदान करती हैं। लेकिन धारा 80C और धारा 10 (10 D) के तहत टैक्स लाभ पाने के लिए कुछ शर्तों को पूरा करने की जरूरत है।
SPLI पॉलिसी 1 अप्रैल, 2012 के बाद जारी की गई, मैच्योरिटी की आय धारा 10(10D) के तहत टैक्स फ्री होगी, अगर पूरी पॉलिसी अवधि के दौरान न्यूनतम बीमा राशि सिंगल प्रीमियम का भुगतान कम से कम 10 गुना बनी रहे। इसका मतलब यह है कि अगर आप जो सिंगल प्रीमियम भुगतान करते हैं वह 10,000 रुपए का है तो लाइफ कवर टैक्स फ्री होने के लिए मैच्योरिटी आय प्राप्त करने के लिए कम से कम 1 लाख रुपए होना चाहिए। इसलिए आपको यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि SPLI पॉलिसी खरीदते समय लाइफ कवर कम से कम 10 गुना प्रीमियम हो।
टैक्स एक्सपर्ट का कहना है कि यदि उपरोक्त स्थिति पूरी नहीं की जाती है, तो पूरी मैच्योरिटी प्राप्तियां टैक्स के दायरे में आएंगी। हालांकि, इसमें छूट है। अगर पॉलिसीधारक की मृत्यु होने मैच्योरिटी लाभ का भुगतान किया जाता है, तो मैच्योरिटी राशि प्रीमियम स्तर के बावजूद टैक्स फ्री होगी।
ऐसे मामलों में, बीमाकर्ता मैच्योरिटी राशि से 1% टीडीएस काटता है। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 194DA के अनुसार, बीमा पॉलिसी के तहत एक बीमाधारक से एक एश्योर्ड भारतीय निवासी द्वारा प्राप्त की गई कोई भी राशि 1% के टीडीएस के अधीन होगी, अगर मैच्योरिटी आय धारा 10(10D) के तहत टैक्स फ्री होने के योग्य नहीं है।
उसी तरह, SPLI पॉलिसियों की ओर भुगतान किए गए प्रीमियम पर धारा 80C के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ नियम हैं। अगर भुगतान किया गया प्रीमियम SPLI पॉलिसी के एश्योर्ड राशि के 10% से अधिक है, तो कटौती एश्योर्ड राशि की 10% की सीमा तक होगी। टैक्स एक्सपर्ट के अनुसार, इस राशि से अधिक के प्रीमियम का भुगतान धारा 80C के तहत कटौती के रूप में नहीं किया जा सकता है।
आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं। अगर आपने 1.6 लाख रुपए के प्रीमियम का भुगतान करके 18 लाख रुपए की एश्योर्ड राशि के लिए SPLI पॉलिसी खरीदी है तो धारा 80C के तहत टैक्स छूट 1.5 लाख रुपए होगी क्योंकि धारा 80C के तहत अधिकतम अनुमत छूट 1.50 लाख रुपए है। लेकिन अगर आप 1.6 लाख रुपए के प्रीमियम का भुगतान करके 10 लाख रुपए की SPLI पॉलिसी खरीदते हैं, तो धारा 80C अधिकतम छूट एक लाख रुपए होगी।
यहां गौर करने योग्य बात यह है कि यदि किसी SPLI पॉलिसी को दो साल के भीतर सरेंडर कर दिया जाता है, तो धारा 80 C के तहत पूर्व में दी गई छूट को उस वर्ष टैक्सपेयर की आय माना जाएगा जिस साल पॉलिसी सरेंडर की जाती है।
(डिस्क्लेमर: ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)