- भारत और रूस में 1953 में रुपये-रूबल डील के तहत लेन-देन शुरू हुआ था।
- S-400 एयर डिफेंस्ट सिस्टम के तहत भारत और रूस ने रुपये-रूबल में लेन-देन का समझौता किया है।
- ईरान पर स्विफ्ट का प्रतिबंध लगने पर भी भारत ने उसके साथ रियाल-रूपये में लेन-देन किया था।
नई दिल्ली: अमेरिका-ब्रिटेन द्वारा रूस पर लगाए गए SWIFT प्रतिबंध का असर दिखने लगा है। रॉयटर्स के मुताबिक देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने प्रतिबंधों को देखते हुए कदम उठाने का फैसला किया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आपस में करीब 8 अरब डॉलर का व्यापार करने वाले भारत और रूस आगे कैसे लेन-देन करेंगे।
क्योंकि भारत जहां रूस से अपनी दो तिहाई रक्षा उपकरणों की जरूरत पूरा करता है। बल्कि उससे न्यूक्लियर उपकरण, फर्टिलाइजर, महंगे रत्न, केमिकल , इलेक्ट्रिक मशीनरी जैसी जरूरतें पूरी करता है। और उसे फॉर्मास्युटिकल्स, कपड़े, चाय, काफी, वाहनों के स्पेयर पार्ट्स आदि की आपूर्ति करता है।
क्या 70 साल पुराना सिस्टम फिर से आएगा काम
भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व सीजीएम सुनील पंत ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल को बताया 'SWIFT सिस्टम के पहले और बाद में भी भारत और रूस , रूबल- रुपये में लेन-देन करते आए हैं। इसके तहत रूस भारत को रूबल में पेमेंट करता है और भारत रूस को रूपये में पेमेंट करते हैं। इसके लिए दोनों देशों करंसी की एक तय वैल्यू फिक्स (Equivalent Value) कर लेते हैं। जिसके आधार पर लेन-देन किया जाता है। इसके तहत बची वैल्यू का पेमेंट डॉलर या दूसरी करंसी में हो जाता है। ' दोनों देशों के बीच रूबल-रुपये की यह व्यवस्था 1953 में शुरू हुई थी।
द सोसायटी फॉर वर्ल्ड वाइड इंटरबैंक फाइनैंशल टेलिकम्युनिकेशन (The Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication)को स्विफ्ट के नाम से जाना जाता है। जो इंटरनेशनल पेमेंट के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस सिस्टम से दुनिया के 200 देश और 11 हजार बैंक जुड़े हुए हैं। जिसका ऑपरेशन बेल्जियम से होता है। यह ठीक उसी तरह काम करता है दैले भारत में घरेलू पेमेंट के लिए NEFT,RTGS का इस्तेमाल होता है। उसी तरह SWIFT का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है।
पहली बार नहीं लगा है रूस पर प्रतिबंध
ऐसा नहीं है कि रूस पर पहली बार प्रतिबंध लगा है। साल 2014 में उसने जब क्रीमिया को कब्जे में लिया था तो उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे। जिसकी वजह से उसकी जीडीपी में 2.5 फीसदी तक गिरावट आई थी। उसके बाद भारत ने S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डील रूस के साथ की थी। 5.2 अरब डॉलर की इस डील में रुपये-रूबल के तहत ही लेन-देन का समझौता हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत और रूस में 2014 और 2019 के बीच रुपये-रूबल से व्यापार में 5 गुना बढ़ोतरी हुई है।
ईरान से ऐसे होता था व्यापार
पंत कहते हैं जब ईरान के ऊपर SWIFT से लेन-देन का प्रतिबंध लगा था तो उस समय दोनों देश रियाल-रूपये के जरिए लेन-देन कर रहे थे। भारत ईरान से कच्चे तेल का प्रमुख रूप से आयात कर रहा था। जबकि ईरान को बासमती, दवाईयां, केमिकल आदि का निर्यात कर रहा था।
SWIFT से ये जोखिम हो जाता है कम
पंत के अनुसार SWIFT का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे जोखिम कम हो जाता है। इसका एक फिक्स फॉर्मेट है। और उसके जरिए सुरक्षित पेमेंट होता है। दूसरी बात यह है कि स्विफ्ट के जरिए पेमेंट तेज होता है। इसके अलावा रूस का एसपीएफएस (सिस्टम फॉर ट्रांसफर ऑफ फाइनेंशियल मेसेजेज ) और भारत का यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) सिस्टम है। जिसके जरिए भी लेन-देन हो सकता है। लेकिन रूस में हैकिंग के बढ़ते मामले को देखते हुए उसका सिस्टम कितना सुरक्षित होगा यह भी बड़ा सवाल है।