इस वर्ष का बजट कई वजहों से अलग रहने वाला है। भारत के इतिहास में पहली बार बजट को प्रिंट नहीं किया जाएगा और यह कोविड-19 महामारी के कारण पेपरलेस होगा। कोविड-19 संकट से निपटने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों के बीच 2021 का बजट पेश किया जाएगा। आम भारतीयों को इस बजट से न सिर्फ बड़ी उम्मीदें हैं बल्कि वे वित्तमंत्री से उन उपायों की घोषणा करने की भी अपेक्षा कर रहे हैं जो विकास को गति देगी।
जहां इस महामारी ने लाखों लोगों को स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से बड़े झटके दिए हैं, वहीं इसने लोगों को अपने पैसे खर्च करने या प्रबंधन करने के तरीके बदलने के लिए भी प्रेरित किया है। इस महामारी से अगर कोई बड़ी सीख मिली है, तो वह है- अप्रत्याशित चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक बचत करना और अपने हाथ में कुछ पैसा बनाए रखना। इस वर्ष के बजट के साथ, सरकार को खर्चों में नई जान भरने और उन रियायतों की घोषणा करने की आवश्यकता है जिससे वेतनभोगी वर्ग के हाथों में अधिक पैसा आ सके। उन अपेक्षाओं की लिस्ट पर एक नजर डालें, जिन्हें हर वेतनभोगी व्यक्ति न सिर्फ पहचान सकता है बल्कि जो लोगों को हाथ में अधिक पैसा रखने की क्षमता दे सकती हैं।
80सी की सीमा को 1.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 3 लाख रुपए करना
धारा 80सी बेहद लोकप्रिय है क्योंकि यह पब्लिक प्रोविडेंट फंड, म्यूचुअल फंड, जीवन बीमा पॉलिसियों के लिए भुगतान की गई प्रीमियम राशि, होम लोन के मूलधन का भुगतान, फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे निवेशों के लिए 1.5 लाख रुपए का टैक्स छूट प्रदान करती है। सरकार को आय में वृद्धि और मुद्रास्फीति के रुझान के अनुरूप इस सीमा को बढ़ाकर 3 लाख रुपए करने पर विचार करना चाहिए। छूट की सीमा बढ़ने से लोग ज्यादा निवेश करने के लिए प्रोत्साहित होंगे, खास तौर पर 80सी के तहत सरकार समर्थित योग्य निवेश योजनाओं जैसे कि पीपीएफ, एनएससी और ईपीएफ में। यह सरकार और करदाताओं दोनों के लिए ही लाभदायक स्थिति होगी। जहां इससे सरकार के खजाने में अधिक पैसा आएगा, वहीं आर्थिक चुनौतियों को मात देने के लिए निवेशक अपने धन को अधिक सुरक्षित और व्यवहार्य विकल्पों में लगाएंगे। इसके अलावा, बच्चों की शिक्षा पर बढ़ती लागत के मद्देनजर सरकार द्वारा उच्च कटौतियों को पेश किया जा सकता है। वर्तमान समय में, बीमा और निवेश को मिलाकर मौजूदा सीमा के तहत इन कटौतियों का पूरा मूल्य प्राप्त करना संभव नहीं है।
होम लोन पर टैक्स कटौती के लिए नई धारा
भारत का संपत्ति बाजार काफी महंगा है। वर्ष 2020 के चुनौतीपूर्ण होने के बावजूद, संपत्ति की कीमतों में वृद्धि जारी है। इस प्रकार, घर खरीदना एक महंगा सौदा है, जिसके लिए घर खरीदारों को बड़ी राशि का होम लोन लेना पड़ता है। बड़े होम लोन का मतलब है- कम डिस्पोजेबल आय, सीमित बचत और तनावपूर्ण आय। सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जो होम लोन लेने वालों को न सिर्फ अधिक टैक्स लाभ प्रदान कर सकें बल्कि उनके हाथ में अधिक पैसा भी दे सके। होम लोन लेने वालों को उनके भुगतान पर ज्यादा छूट मिलनी चाहिए। इससे न केवल डिस्पोजेबल आय में वृद्धि होगी बल्कि यह बढ़ते हुए खर्चों और मुद्रास्फीति के दबावों से निपटने के लिए भी उन्हें सशक्त बनाएगा। होम लोन के लिए उपलब्ध मौजूदा छूट धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपए और धारा 24बी के तहत 2 लाख रुपए है। सरकार को मूलधन और ब्याज के भुगतान पर 5 लाख रुपए की कुल कटौती देने पर विचार करना चाहिए। सरकार ब्याज और मूलधन भुगतान के लिए एक ही धारा के तहत होम लोन से संबंधित सभी टैक्स-कटौतियों को लाने पर भी विचार कर सकती है। वर्तमान समय में, होम लोन लेने वालों को आयकर अधिनियम की धारा 80सी, 24बी, 80ईई और 80ईईए के तहत टैक्स कटौती की सुविधा मिलती है। इन्हें होम लोन की कटौतियों के लिए एक ही धारा में लाया जा सकता है, जो मूलधन और ब्याज के लिए किसी भी उप-सीमा के बिना 5 लाख रुपए तक हो। इससे धारा 80सी, 24बी और 80ईईए के तहत उपलब्ध मौजूदा सीमा के बराबर ही 5 लाख रुपए की कटौती सीमा मिलेगी।
धारा 80टीटीए की सीमा को बढ़ाकर 30,000 रुपए करना
धारा 80टीटीए में करदाताओं को बैंकों, सहकारी बैंकों और डाकघरों में रखे गए बचत खातों पर अर्जित ब्याज के लिए 10,000 रुपए की टैक्स कटौती का दावा करने का विकल्प मिलता है। आगामी बजट में, सरकार को यह सीमा बढ़ाकर 30,000 रुपए करने पर विचार करना चाहिए ताकि लोग घर पर नकदी रखने या छिपाने के बजाय अधिक बचत करने और ब्याज कमाने के लिए प्रोत्साहित हों। महामारी के बाद लोग पूंजी बढ़ाने के बजाय पूंजी सुरक्षा को वरीयता देने लगे हैं, और इसके चलते कई लोगों का ध्यान फिर से बचत खाता की ओर गया है। इसलिए, अब समय आ गया है कि सरकार इस सीमा को बढ़ाए। इस कदम से बैंकों को भी लाभ होगा क्योंकि अधिक बचत से न सिर्फ कैश रिजर्व में बढ़ोतरी होगी बल्कि ऋण-प्रदायगी (लेंडिंग) को भी बढ़ावा मिलेगा।
टर्म इंश्योरेंस के लिए अलग से टैक्स कटौतियां
इस महामारी ने टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी को और महत्वपूर्ण बना दिया है। यह एक सबसे आसान तरीका है जो आपके असामयिक निधन की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में आपके परिवार को किसी भी आर्थिक समस्या से निपटने में सक्षम बनाता है। चूंकि प्रीमियम कम है, तो यह आपके परिवार के आर्थिक भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए सबसे अधिक किफायती तरीकों में से एक है। इन लाभों के बावजूद, कई वेतनभोगी व्यक्ति अभी भी टर्म इंश्योरेंस खरीदने को प्राथमिकता नहीं देते हैं। करदाताओं के बीच इसे अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए, सरकार द्वारा इंश्योरेंस प्रोडक्ट खरीदने के लिए इनकम टैक्स इंसेंटिव प्रदान किया जा सकता है। वर्तमान समय में, धारा 80सी के तहत इंश्योरेंस प्रीमियम के भुगतान पर टैक्स कटौती का लाभ उठाया जा सकता है। सरकार टर्म इंश्योरेंस के लिए एक अलग टैक्स कटौती शुरू करने पर विचार कर सकती है। धारा 80सी को निवेश से संबंधित कटौती के लिए रखा जा सकता है, जबकि टर्म इंश्योरेंस जैसे आवश्यक खर्च के लिए एक अलग धारा पेश की जा सकती है ताकि लोगों को इंश्योरेंस खरीदने और उच्च टैक्स लाभ लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
ईएसओपी का बेहतर टैक्स-निर्धारण
कर्मचारियों को दिए जाने वाले एम्प्लॉयी स्टॉक ऑप्शन प्लान (ईएसओपी) पर डबल टैक्सेसन होता है। अनुलाभ (पर्क्विजिट) के रूप में पहला टैक्सेसन होता है जब कर्मचारी वेस्टिंग अवधि के बाद अपने ईएसओपी का प्रयोग करते हैं (इसकी गणना शेयरों के उचित बाजार मूल्य तथा आवंटन के दिन एक्सरसाइज मूल्य के बीच अंतर पर की जाती है), और दूसरा टैक्सेसन पूंजीगत लाभ पर होता है जब कर्मचारी आवंटित शेयरों को बेचते हैं (इसकी गणना शेयरों के उचित बाजार मूल्य तथा बिक्री मूल्य के बीच मूल्य अंतर पर की जाती है) - अतः इनकी समीक्षा करने की आवश्यकता है। हमारा सुझाव है कि पहले टैक्सेसन को समाप्त किया जाना चाहिए, और टैक्स केवल उसी बिक्री आय (सेल प्रोसीड) पर लगाया जाए जब कर्मचारी उससे लाभ कमाता है। ईएसओपी का विचार प्रतिभा को बनाए रखना और उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करना है। तो सरकार को चाहिए कि वह एक्सरसाइज के समय ईएसओपी पर टैक्सेसन रोकने पर विचार करे। पहले टैक्सेसन को हटाने से कर्मचारियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
अंत में,
इस साल का बजट इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि लोगों को अधिक बचत करने के लिए प्रोत्साहन मिले, साथ ही वेतनभोगी वर्ग को भी ज्यादा टैक्स ब्रेक मिले ताकि वे बढ़े हुए डिस्पोजेबल आय का आनंद ले सकें, संपत्ति खरीद सकें, डिस्क्रेशनरी (विवेकाधीन) खर्च बढ़ा सकें - इन सभी बातों से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।
इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)