नई दिल्ली : पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने सरकार को सुझाव दिया है कि आगामी बजट में नौकरीपेशा और आम लोगों को राहत देने के लिए चार कर दरों का एक सरल आयकर ढांचा लागू किया जाए और विभिन्न उपकरों तथा अधिभार को समाप्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि यह राज्यों के लिये भी न्यायसंगत होगा। गर्ग ने यह भी कहा कि वित्त मंत्री के लिए मुख्य चिंता 2022-23 के बजट में राजकोषीय घाटे को सामान्य स्तर पर लाने के साथ-साथ बढ़ती खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को काबू में लाने की होगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अपना चौथा बजट एक फरवरी को पेश करेंगी। गर्ग ने कहा, 'मौजूदा स्थिति में कर ढांचा जटिल है। कई सारे उपकर, अधिभार, कर की दरें और स्लैब हैं। इसके अलावा छूट के बिना कम दर पर कर देने की सुविधा या छूट के साथ सामान्य दर पर कर के भुगतान की व्यवस्था ने करदाताओं के लिये कर संरचना को जटिल बना दिया है।' उन्होंने कहा, 'ऐसे में यह बेहतर होगा कि सरकार चार दरों का एक सरल आयकर ढांचा लागू करे और उपकरों तथा अधिभारों को समाप्त करे। यह राज्यों के लिये भी न्यायसंगत होगा।'
उल्लेखनीय है कि अभी आयकरदाताओं को स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर के अलावा सालाना 50 लाख रुपये से अधिक आय पर अधिभार भी देना होता है। साथ ही उपकर और अधिभार से प्राप्त राजस्व राज्यों के बीच विभाजित नहीं होता जिसको लेकर वे समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं।
'कर छूट सीमा बढ़ाने का फिलहाल मामला नहीं'
एक सवाल के जवाब में गर्ग ने कहा कि कर छूट सीमा बढ़ाने का फिलहाल मामला नहीं है, क्योंकि 2019-20 के बजट में किये गये प्रावधान के अनुसार जिन लोगों की भी आय पांच लाख रुपये सालाना से कम है, वे आयकर से मुक्त है। बजट में सरकार के लिये प्राथमिकता के बारे में पूछे जाने पर पूर्व वित्त सचिव ने कहा कि वित्त मंत्री के लिये मुख्य चिंता 2022-23 के बजट में बढ़ती खाद्य, उर्वरक सब्सिडी के साथ मनरेगा पर बढ़े हुए खर्च को काबू में लाने की होगी।
उन्होंने कहा, 'सरकार ने कोविड संकट को देखते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के परिवारों के अंतर्गत आने वाले सभी 80 करोड़ व्यक्तियों को मुफ्त राशन... पांच किलो गेहूं या चावल... देने का प्रावधान किया है। इस निर्णय से खाद्य सब्सिडी बिल करीब 2.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 4-4.25 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। सालाना इसमें 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई है।'
इसी प्रकार, सरकार के उर्वरक लागत और मनरेगा के तहत श्रमिक की मांग पर होने वाले खर्च में वृद्धि का बोझ उठाने के निर्णय का मतलब है कि 1.25 से 1.40 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च। गर्ग ने कहा कि निश्चित रूप से सरकार बजट में 2021-22 के मुकाबले इस बार जल जीवन मिशन, टीकाकरण और स्वास्थ्य संबंधी ढांचागत सुविधाओं पर बजटीय प्रावधान बढ़ाएगी।
क्या होंगी इस बार की बजट चुनौतियां?
बजट में चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा, 'वित्त वर्ष 2021-22 के लिये राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है। यह राजकोषीय घाटे के सामान्य स्तर और वित्तीय बचत दर को देखते हुए ऊंचा है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीने में कर राजस्व के रुख को देखते हुए लगता है कि सरकार कर और गैर-कर राजस्व मद में तीन लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त हासिल कर सकती है। हालांकि, सरकार का खर्च भी बढ़ा है और विनिवेश के मामले में स्थिति इस साल अच्छी नहीं जान पड़ती। ऐसे में सरकार के लिये 6.8 प्रतिशत राजकोषीय घाटा लक्ष्य को हासिल करना चुनौती रहेगा।'
सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की वेबसाइट के अनुसार, अबतक सरकार इस मद में 9,329.90 करोड़ रुपये ही जुटा पायी है। गर्ग ने कहा, 'वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय चुनौती कम होती नहीं दिख रही। इसका कारण खर्च के मोर्चे पर स्थिति राहतपूर्ण नहीं है। ऐसे में वित्त मंत्री के लिये राजकोषीय घाटे को छह प्रतिशत से नीचे लाना मुश्किल हो सकता है।'
उन्होंने कहा, 'वित्त मंत्री के लिये अन्य चुनौतियां पूंजी व्यय को बढ़ाना या उसे बनाये रखने की होगी। इसके अलावा ब्याज भुगतान को सीमित करना (सरकार का कर्ज 1.2 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है और राजकोषीय घाटा ऊंचा बना हुआ है), राज्यों को वित्तीय अंतरण को प्रबंधित करना तथा सकल राज्य घरलू उत्पाद (जीएसडीपी) के तीन प्रतिशत से अधिक कर्ज की अनुमति देने को लेकर भी सरकार के समक्ष चुनौतियां हैं।
'जरूरतमंदों तक नकदी सहायता पहुंचाने की आवश्कयता'
गर्ग ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 में ब्याज अदायगी 10 लाख करोड़ रुपये के पार कर जाने की आशंका है। वित्त वर्ष 2021-22 में सरकार ने इसके 8,09,701 करोड़ रुपये रहने का अनुमान रखा है। यह पूछे जाने पर कि क्या जरूरतमंदों को नकदी सहायता दिये जाने की जरूरत है, उन्होंने कहा, 'किसान सम्मान निधि की तरह आबादी के उन गरीब तबकों को प्रत्यक्ष नकद सहायता का मामला बनता है, जो जीने के लिये कुछ भी कमाने में असमर्थ हैं और जिन्हें कोविड-19 संकट या उसके कारण अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव के कारण नौकरी से हाथ धोना पड़ा है।'
गर्ग ने कहा कि प्रत्यक्ष आय नकदी अंतरण, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना जैसी विभिन्न योजनाओं के तहत दी जाने वाली सहायता से बेहतर है। आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना के तहत नये रोजगार या उन लोगों को फिर से नौकरी देने की स्थिति में कर्मचारी और नियोक्ता के कर्मचारी भविष्य निधि में योगदान सरकार करती है, जिन्होंने कोविड-19 के दौरान अपनी नौकरी गंवाई है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य संकट की चुनौतियों से निपटने के लिये आगामी बजट में स्वास्थ्य संबंधी ढांचागत सुविधाओं के निर्माण पर ध्यान देने की विशेष जरूरत है।