- श्रीलंका ने 14 साल पहले आज के दिन विश्व कप में भारत को 6 विकेट से मात दी थी
- सचिन तेंदुलकर (137) की पारी पर सनथ जयसूर्या (79) की पारी भारी पड़ी थी
- मनोज प्रभाकर का करियर इस मैच के बाद समाप्त हो गया था
नई दिल्ली: क्रिकेट हो या कोई भी खेल, किसी टीम को हार बर्दाश्त नहीं होती। यह कड़वा सच है, जिसे टीम को पचाकर आगे बढ़ना होता है। मगर यह भी सच है कि हार का दर्द बहुत गहरा होता है। फिर हार अगर विश्व कप के मुकाबले में हो तो उसका दर्द भावनाओं में बयां करना और भी मुश्किल हो जाता है। यह भी खेल का ही नियम है कि दो में से कोई एक टीम ही जीतेगी, लेकिन हारने वाली टीम लंबे समय तक इस दर्द को भूल नहीं पाती। क्रिकेट को भारत में धर्म की तरह माना जाता है। सचिन तेंदुलकर को 'क्रिकेट के भगवान' का दर्जा प्राप्त है। अगर तेंदुलकर ने शतक बनाया है, तो वह दिन भारतीय क्रिकेट फैंस के लिए किसी जश्न से कम नहीं होता, लेकिन अगर उनके शतक पर पानी फिर जाए तो फिर वही दिन मातम में पसर जाता है।
आज हम उस मुकाबले के बारे में बताने जा रहे हैं, जिस हार का गम आज भी भारतीय क्रिकेट फैंस को परेशान करता है।
2 मार्च 1996
यह मुकाबला भारत और श्रीलंका के बीच 2 मार्च 1996 को दिल्ली में खेला गया था। यह विश्व कप का मुकाबला था, तो आसानी से समझा जा सकता है कि भारतीय टीम पर उम्मीदों का भार कितना रहा होगा। पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। यह मुकाबला डे/नाइट था और दर्शकों पर इसका जुनून देखते ही बनता था। इस मैच में श्रीलंका के कप्तान अर्जुन रणतुंगा ने टॉस जीता और मोहम्मद अजहरूद्दीन के नेतृत्व वाली भारतीय टीम को पहले बल्लेबाजी के लिए आमंत्रित किया।
सचिन उम्मीदों पर खरे उतरे
सचिन तेंदुलकर के बारे में तो यह सब अच्छे से जानते हैं कि जब भी वह क्रीज पर आते थे, तो देशवासियों की अपेक्षाओं का बोझ उन पर होता था कि दमदार पारी खेलें। तेंदुलकर उस दिन दर्शकों की उम्मीदों पर खरे उतरे और श्रीलंकाई गेंदबाजों की जमकर धुनाई की। टीम इंडिया का स्कोर 27 रन पर पहुंचा था जब पुष्पकुमारा ने मनोज प्रभाकर (7) को गुरुसिन्हा के हाथों कैच आउट कराकर भारत को पहला झटका दिया। इसके बाद तेंदुलकर ने संजय मांजरेकर (32) के साथ दूसरे विकेट के लिए 66 रन की साझेदारी करके भारत का स्कोर 100 रन के करीब पहुंचाया। कुमार धर्मसेना ने मांजरेकर को विकेटकीपर कालूविर्तणा के हाथों कैच आउट कराकर इस साझेदारी को तोड़ा।
कप्तान ने निभाया तेंदुलकर का साथ
सचिन तेंदुलकर एक छोर पर टिककर श्रीलंकाई गेंदबाजों पर कहर बनकर टूट रहे थे। ऐसे में उन्हें कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन (72*) का बखूबी साथ मिला। दोनों ने तीसरे विकेट के लिए 175 रन की साझेदारी करते हुए स्कोर 268 रन पर पहुंचाया। इस बीच तेंदुलकर अपना शतक पूरा कर चुके थे। तेंदुलकर दुर्भाग्यवश रहे और रनआउट होकर पवेलियन लौटे। महान बल्लेबाज ने 137 गेंदों में 8 चौके और पांच गगनचुंभी छक्के की मदद से 137 रन बनाए। अजहर 80 गेंदों में 4 चौके की मदद से 72 रन बनाकर नाबाद रहे। भारत ने 50 ओवर में तीन विकेट खोकर 271 रन बनाए।
आई जयसूर्या की आंधी
272 रन का लक्ष्य उस समय किसी भी टीम के लिए आसान नहीं होता था। मगर श्रीलंका के इरादे कुछ और ही थे। सनथ जयसूर्या (79) और रोमेश कालूविर्तणा (26) दोनों पिच हिटर के रूप में जाने जाते थे। दोनों ने 53 रन की साझेदारी करके श्रीलंका को आक्रामक और दमदार शुरुआत दिलाई। मनोज प्रभाकर का करियर तो इसी मैच के बाद समाप्त हो गया। उनके शुरुआती दो ओवर में श्रीलंकाई बल्लेबाजों ने 33 रन जुटाए। वेंकटेश प्रसाद ने कालूविर्तणा को कुंबले के हाथों कैच आउट कराकर इस साझेदारी को तोड़ा। जयसूर्या ने एक छोर से आक्रामक पारी खेलना जारी रखा और असांका गुरुसिन्हा (25) के साथ दूसरे विकेट के लिए 76 रन की साझेदारी करके श्रीलंका का स्कोर 100 रन के पार पहुंचाया। गुरुसिन्हा के रनआउट होने से यह साझेदारी टूटी।
कुंबले ने दिए तगड़े झटके
सनथ जयसूर्या की आक्रामक पारी पर भारतीय लेग स्पिनर अनिल कुंबले ने विराम लगाया। उन्होंने बाएं हाथ के बल्लेबाज का कैच प्रभाकर के हाथों कराकर भारत को बड़ी सफलता दिलाई। जल्द ही कुंबले ने अरविंद डी सिल्वा (8) को स्टंपिंग कराकर श्रीलंका को बैकफुट पर धकेला।
रणतुंगा और तिलकरत्ने ने दिलाई जीत
श्रीलंका ने 141 रन के स्कोर पर शीर्ष चार विकेट गंवा दिए थे। मगर यहां से कप्तान अर्जुना रणतुंगा (46*) ने हसन तिलकरत्ने (70*) के साथ मिलकर श्रीलंका की नैया पार लगाई। दोनों ने भारतीय गेंदबाजों का डटकर मुकाबला किया और टीम को कोई नुकसान नहीं होने दिया। हसन तिलकरत्ने ने अपनी पारी के दौरान कई आकर्षक शॉट्स भी लगाए। रणतुंगा और तिलकरत्ने ने पांचवें विकेट के लिए 131 रन की अविजित साझेदारी करके श्रीलंका की जीत पर मुहर लगाई। श्रीलंका ने 48.4 ओवर में 4 विकेट खोकर लक्ष्य हासिल किया। मेहमान टीम ने 8 गेंदें शेष रहते भारत को 6 विकेट से मात दी। भारत की तरफ से अनिल कुंबले ने दो जबकि वेंकटेश प्रसाद को एक विकेट मिला।
इस खिलाड़ी का करियर हुआ खत्म!
सनथ जयसूर्या की तूफानी पारी के कारण भारत के मनोज प्रभाकर का करियर खत्म हो गया। जी हां, यह मनोज प्रभाकर के करियर का आखिरी मुकाबला साबित हुआ। प्रभाकर पहले बल्लेबाजी में फ्लॉप रहे और 7 रन बनाकर आउट हुए। फिर गेंदबाजी में उनकी जमकर पिटाई हुई और उन्होंने सिर्फ 4 ओवर किए, जिसमें 47 रन खर्च किए। इसके बाद प्रभाकर को टीम से बाहर कर दिया गया और टूर्नामेंट के बाद क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की।
यह दर्द बहुत गहरा
भारतीय टीम के लिए इस हार का दर्द बहुत गहरा रहा। इसके मुकाबले में हार के बाद भी टीम इंडिया सेमीफाइनल तक पहुंची, लेकिन एक बार फिर उसे श्रीलंका से ही मात मिली। तब भी सचिन तेंदुलकर के रनआउट के कारण विवाद खड़ा हो गया था। भारतीय टीम का सेमीफाइनल में सफर समाप्त हो गया था जबकि श्रीलंका ने इस विश्व कप की ट्रॉफी अपने नाम की थी।