- माइकल बेवन अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं
- माइकल बेवन को सबसे पहले फिनिशर की उपाधि मिली थी
- 1999 और 2003 विश्व कप चैंपियन ऑस्ट्रेलियाई टीम के सदस्य थे बेवन
नई दिल्ली: क्रिकेट जगत में आज ऐसे विशेष खिलाड़ी का जन्मदिन है, जिसने विश्व क्रिकेट को नया शब्द उपयोग करने को दिया। आज हम ऑस्ट्रेलिया टीम के पूर्व दिग्गज ऑलराउंडर माइकल बेवन की बात कर रहे हैं, जो अपना 51वां जन्मदिन मना रहे हैं। माइकल बेवन ही वो शख्स हैं, जिनकी वजह से क्रिकेट में 'फिनिशर' शब्द का परिचय हुआ। बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने दुनिया को यह कला सिखाई कि लक्ष्य का पीछा कैसे करना है। 1994 में श्रीलंका के खिलाफ डेब्यू करने के बाद किसी को शायद ही अंदाजा था कि बेवन क्रिकेट जगत का ऐसा सितारा बनेंगे, जिसने खेल को नयापन दिया हो।
माइकल बेवन की बल्लेबाजी में कुछ अलग था। वह क्रीज पर आकर अपना समय लेते, ज्यादा लंबे शॉट खेलने पर विश्वास भी नहीं रखते। सिंगल, डबल और चौके जमाकर अपनी पारी आगे बढ़ाने पर ध्यान देते। हां, बल्लेबाजी के बेसिक्स पर तगड़ी पकड़ बना रखी थी, तभी खूब सफलता हासिल की। ऑस्ट्रेलिया को 10 साल तक मैच जिताते रहे। चेस मास्टर बने, फिनिशर नाम इजाद कराया। यह तरीका बेवन को सबसे जुदा कर देता है।
अगर किसी टीम ने वनडे क्रिकेट में उस समय पहले बल्लेबाजी करके बड़ा स्कोर बना दिया, तो उसकी जीत तय मानी जाती थी। बड़े लक्ष्य का पीछा करना किसी भी टीम के लिए तब आसान नहीं होता था। मगर माइकल बेवन शायद खेल में कुछ बदलने और कुछ नया लाने के लिए ही बने थे। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को ऐसे फंसे हुए मैचों से निकालकर विजेता बनाया, जिसमें फैंस हिम्मत हार चुके होते थे कि कुछ नहीं हो सकता। बेवन ने एक के बाद एक दमदार पारियां खेलकर फैंस का दिल जीता और मैच खत्म करके लौटने को अपना शौक बनाया, जिससे ऑस्ट्रेलियाई टीम ने अपार सफलता हासिल की।
आलीशान रहा सीमित ओवर करियर
माइकल बेवन का एक फॉर्मूला था, जिसे अपनाकर वह सबसे बड़े फिनिशर बने। बेवन हमेशा कहते थे कि जब तक मैं क्रीज पर हूं, हार नहीं मानूंगा। इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता था और उन्होंने एक दशक तक टीम की नैया पार लगाई। बेवन ने सीमित ओवर क्रिकेट में खूब नाम कमाया। उन्होंने 232 वनडे में 53.78 की शानदार औसत के साथ 6912 रन बनाए। चूंकि वह 67 बार नॉट आउट रहे इस वजह से उनका बल्लेबाजी औसत भी काफी अधिक रहा। वनडे प्रारूप में बेवन ने 6 शतक और 46 अर्धशतक जमाए।
बेवन अपने करियर में ऊंचाइयों पर पहुंच ही रहे थे, लेकिन साथ ही साथ उन्होंने नई पीढ़ी को प्रेरित करना भी शुरू कर दिया था। समय दर समय खेल बदलता गया। इसमें तेजी आई। मगर माइकल बेवन के समान दुनिया को बेहतरीन मैच फिनिशर्स मिले, जिसमें भारत की तरफ से एमएस धोनी और विराट कोहली जैसे दिग्गज खिलाड़ी भी शामिल हैं। बेवन की उपलब्धियों में नगीनों की भूमिका दो विश्व कप खिताब ने निभाई। वह 1999 और 2003 विश्व कप चैंपियन ऑस्ट्रेलियाई टीमों का प्रमुख हिस्सा थे।
काला धब्बा पड़ गया
माइकल बेवन का जितना शानदार प्रदर्शन वनडे क्रिकेट में रहा, उसके बिलकुल उलट उनका टेस्ट करियर रहा। बाएं हाथ के बल्लेबाज को 18 टेस्ट खेलने का मौका मिला, जिसमें वह सिर्फ 6 अर्धशतकों की मदद से 785 रन बना सके। ऑलराउंडर होने के नाते बता दें कि बेवन ने टेस्ट में 29 जबकि वनडे में 36 विकेट झटके थे।
बेवन ने अपने टेस्ट करियर के बारे में कहा था, 'मेरे अंदर कुछ डर बैठा रहा, जिसके चलते मैं सफल नहीं हो सका। ये मेरे निजी विचार हैं। मैंने अपनी पहली टेस्ट सीरीज में दमदार प्रदर्शन किया था, लेकिन फिर इंग्लैंड के गेंदबाजी आक्रमण के सामने मैं कुछ नहीं कर पाया। ऐसे ही मेरा टेस्ट करियर बहुत जल्द समाप्त हो गया।' बेवन का एशेन सीरीज में प्रदर्शन फ्लॉप रहा था। वो 6 पारियों में केवल 81 रन बना पाए थे।
सबसे बड़ी कमजोरी
वैसे, अगर बेवन के खेल को देखा जाए, तो उनकी बल्लेबाजी में शॉर्ट पिच का सामना करने के अलावा कोई कमजोरी नहीं थी। दुनिया को भी बेवन की कमजोरी का पता चल चुका था। अन्य टीमों ने इसका फायदा उठाया और देखते ही देखते बेवन राष्ट्रीय टीम से 2004 में बाहर हो गए। बस फिर तीन साल जब राष्ट्रीय टीम में वापसी नहीं हुई तो उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट से संन्यास ले लिया।