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जानिए 'रेड बॉल' से कैसे अलग है डे-नाइट टेस्ट में इस्तेमाल होने वाली 'पिंक बॉल'

Updated Nov 22, 2019 | 07:40 IST

Differece between Pink ball and Red Ball: जानिए क्या अंतर है पिंक बॉल और रेड बॉल में। पिंक बॉल कैसे डालती है टेस्ट क्रिकेट के पारंपरिक स्वरुप में अंतर।

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Pink ball vs Red Ball

कोलकाता: भारतीय क्रिकेट टीम शुक्रवार को पहली बार सफेद जर्सी में पिंक बॉल के साथ टेस्ट क्रिकेट खेलने उतरेगी। यह भारतीय टीम के खिलाड़ियों के साथ-साथ क्रिकेट प्रेमियों के लिए भी नया अनुभव होगा। अब तक सूरज की रोशनी में लाल गेंद के साथ खेला जाने वाला टेस्ट मैच दूधिया रोशनी में गुलाबी गेंद के साथ खेला जाएगा। आईसीसी ने ये निर्णय लंबी चर्चा के बाद टेस्ट क्रिकेट के मूल स्वरूप और वजूद को बचाए रखने के लिए किया था। भारत और बांग्लादेश की टीमों के लिए ये पिंक बॉल से खेलने का पहला अनुभव है। इससे पहले 11 टेस्ट मैच डे-नाइट फॉर्मेट में खेले जा चुके हैं। ऐसे में आईए जानते हैं पिंक बॉल और पारंपरिक रेड बॉल में क्या अंतर है और खेल पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। 

निर्माण का तरीका और समय 

पिंक बॉल के निर्माण में रेड बॉल की तुलना में अधिक समय लगता है। लेदर को गेंद बनाने के लिए शुरुआत में ही गुलाबी रंग से रंगा जाता है। इसके बाद जब पहली बार कटिंग के लिए वह फैक्ट्री में पहुंचता है उसमें रेड बॉल की तुलना में तकरीबन एक सप्ताह अधिक समय लगता है। गेंद का आकार और वजन दोनों ही गेंदों का 156 ग्राम होता होता है। 

सिलाई के धागे का रंग 

ऐसे में दोनों गेंदों की सिलाई के तरीके में फर्क नहीं है लेकिन उसमें इस्तेमाल होने वाले धागे का रंग बदल जाता है। रेड बॉल में सफेद रंग के धागे से सिलाई की जाती है जबकि पिंक बॉल में काले रंग के धागे से सिलाई की जाती है। इसकी वजह से पिंक बॉल से खेलते वक्त बल्लेबाजों को गेंद के रोटेशन को देखने में परेशानी होती है। 

गेंद की पॉलिश 

रात में दूधिया रोशनी में मैच खेले जाने की वजह से गेंद की विजिबिलिटी को बनाए रखना के लिए रेड बॉल की तुलना में इसमें अधिक पॉलिश की जाती है। जिसकी वजह से ये गेंद ज्यादा समय तक नई और हार्ड रहती है। जिसका फायदा तेज गेंदबाजों को मिलता है। हालांकि भारत में एसजी बॉल का इस्तेमाल होगा जिसकी सीम ज्यादा उभरी हुई होती है। वहीं विदेश में इस्तेमाल होने वाली ड्यूक और कोकोबूरा की पिंक बॉल पुरानी होने के बाद न तो स्पिन गेंदबाजों के लिए मददगार होती है और न ही तेज गेंदबाजों के लिए। ड्यूक और कोकोबूरा की सीम जल्दी खराब हो जाती है। 

रिवर्स स्विंग 

रेड बॉल पारंपरिक टेस्ट में पुरानी होने के बाद रिवर्स स्विंग होती है जिसका असर मैच पर पड़ता है। पिंक बॉल देर से पुरानी होती है और इसकी चमक भी देर से जाती है ऐसे में उसकी रिवर्स स्विंग होने की संभावना बेहद कम होती है। ऐसे में 40 से 50 ओवर के बाद मैच में गेंदबाजों के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है। 

सू्र्यास्त के समय रंग

पिंक बॉल से टेस्ट मैच खेलने के दौरान सबसे बड़ी परेशानी सूर्यास्त के समय होती है। उस वक्त आसमान का रंग भी नारंगी और लाल रंग का हो जाता है। वहीं लाल रोशनी में गेंद नारंगी रंग की दिखने लगती है। ये बल्लेबाजों के लिए मैच के दौरान सबसे मुश्किल समय होता है। जबकि लाल रंग की गेंद का रंग किसी भी समय एक जैसा रहता है। 

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