- नेत्रहीन विश्व कप में भारतीय टीम के सदस्य थे नरेश टुमडा
- नरेश टुमडा की आर्थिक स्थिति सही नहीं, जिसके कारण करना पड़ रही मजदूरी
- नरेश टुमडा को गुजरात के सबसे प्रतिभाशाली क्रिकेटरों में से एक माना जाता है
नई दिल्ली: किसी भी क्रिकेटर के लिए देश के लिए विश्व कप जीतना सबसे खास लम्हों में से एक होता है। यह उनके करियर के सबसे विशेष उपलब्धियों में से एक होती है, जिसका वो कई सालों तक जश्न मनाते हैं। हालांकि, नरेश टुमडा की जिंदगी की कहानी अलग है। टुमडा उस भारतीय नेत्रहीन क्रिकेट टीम का हिस्सा थे, जिसने 2018 में नेत्रहीन विश्व कप में शारजाह में पाकिस्तान को मात देकर खिताब जीता था। विश्व कप जीत के बाद नरेश टुमडा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और अब जीवित रहने के लिए मजदूरी कर रहे हैं।
नरेश टुमडा ने केवल 5 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था और उन्होंने अपनी प्रतिभा दिखाते हुए प्रतिभाशाली क्रिकेटर का तमगा हासिल किया। अपनी खास शैली और शानदार बल्लेबाजी के कारण नरेश को 2014 में गुजरात टीम में जगह मिल गई। जल्द ही टुमडा को राष्ट्रीय टीम से बुलावा आया और उन्हें भारत से खेलने का मौका मिला। दुर्भाग्यवश आर्थिक स्थिति की अनिश्चित्ता के कारण टुमडा को अपना जीवन बिताने के लिए मजदूर के रूप में काम करना पड़ रहा है।
अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर टुमडा ने कई सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन दिया, लेकिन कई से उन्हें जवाब नहीं मिला। इसकी वजह से भारतीय क्रिकेटर ने सरकार से कुछ मदद करने की पेशकश की। टुमडा के हवाले से याहू क्रिकेट ने कहा, 'मैं एक दिन में 250 रुपए कमाता हूं। मैंने सरकार से गुजारिश की है कि मुझे नौकरी दें ताकि मैं अपनी जिंदगी चला सकूं।'
नरेश टुमडा की राह में कई बाधाएं
नरेश टुमडा पर परिवार के पांच लोगों का ध्यान रखने की जिम्मेदारी है। वह अपने घर में कमाई करने वाले अकेले सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि सब्जी बेचने से बचे पैसों से परिवार की जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता है। इसलिए नरेश ने मजदूर बनकर काम करने का फैसला किया और ईट उठाईं। 29 साल के नरेश टुमडा को मजबूती से खड़े होकर इन बाधाओं का सामना करना है क्योंकि उनके माता-पिता उम्रदराज हैं और मदद नहीं कर सकते हैं।
नरेश टुमडा का संघर्ष भारत में विकलांग क्रिकेटरों की स्थितियों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। टुमडा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा था, 'जब भारतीय क्रिकेट टीम विश्व कप जीतती है तो सरकार और कंपनियां उन पर पैसों की बरसात करती हैं। क्या हम कम खिलाड़ी हैं क्योंकि हम नेत्रहीन हैं? समाज को हमारे साथ बराबरी से बर्ताव करना चाहिए।'