- दिल्ली के गांधी नगर इलाके में पांच साल की मासूम हुई थी गैंगरेप का शिकार, निर्भया कांड के सिर्फ चार महीने बाद हुई थी वारदात
- 6 साल के बाद दिसबंर 2019 में निचली अदालत में सुनवाई हुई पूरी
- 57 चश्मदीदों के बयान दर्ज करने में लग गए तीन साल
नई दिल्ली। 16 दिसंबर 2012 की सर्द रात में दिल्ली की सड़कों पर एक ऐसे गुनाह को अंजाम दिया गया जिसने बहुत कुछ बदल दिया था। उस घटना की गूंज सड़क से लेकर सदन तक हुई। कानून में बदलाव किया गया, लड़कियों की हिफाजत के लिए फंड की व्यवस्था की गई जिसे हम सब निर्भया फंड के नाम से जानते हैं। लेकिन 16 दिसंबर 2012 से महज चार महीने बाद दिल्ली एक बार सहमी थी, सिसकी थी और दहली थी। महज पांच साल की मासूम बच्ची गैंगरेप का शिकार हुई। लेकिन उसकी आवाज निर्भया के शोर में दब गई।
एक जैसी घटना, असर हुआ अलग
यूं कहें तो दोनों घटनाएं एक जैसी थीं। लेकिन असर अलग अलग था। निर्भया का मामला पिछले सात वर्षों से सुर्खियों में है, उसके गुनहगार फांसी के तख्ते के काफी करीब पहुंच चुके हैं, ये बात अलग है वो कानूनी दांवपेंच की मदद लेकर बचने की फिराक में हैं। अब एक बार फिन नजर डालते हैं 2013 की उस सनसनीखेज वारदात की जिसमें हवस के पुजारियों को उस मासूम बच्ची में अपनी बहन या बेटी की शक्ल नहीं दिखी। दिल्ली के गांधी नगर इलाके में कुछ दरिंदगों ने उस मासूम बच्ची को नोंच खाया था।उस मामले में शनिवार को फैसला आने की उम्मीद है।
फैसले की कॉपी थी लंबी इसलिए फैसला टल गया
इस मामले को देख रहे एडिश्नल जज नरेश कुमार मल्होत्रा ने बुधवार को फैसला आगे के लिए मुल्तवी कर दिया था क्योंकि फैसले की कॉपी लंबी थी और जज साहब तैयार नहीं थे। निर्भया केस में जहां सिर्फ 10 महीने की ट्रायल में चारों दोषियों को मौत की सजा सुना दी गई, वहीं उस मासूम को अभी भी निचली अदालत से फैसले का इंतजार है। इस केस में पिछले 6 साल में सात जजों मे सुनवाई की और अभियोजन पक्ष की तरफ से 57 गवाह पेश किए गए।
कुछ इस तरह दिल्ली पुलिस ने की जांच
दिल्ली पुलिस की तरफ से 24 मई 2013 को चार्जशीट पेश की गई थी जिसमें मनोज शाह और प्रदीप कुमार को आरोपी बनाया गया। इन दोनों आरोपियों के खिलाफ 2013 में ही जुलाई के महीने में आरोप भी तय हो गए। लेकिन ताज्जुब वाली बात है कि 57 गवाहों के बयानों को रिकॉर्ड करने में पांच साल लग गए। पोक्सो कोर्ट ने 24 जुलाई 2013 से लेकर 26 अक्टूबर 2018 के बीच में गवाहों के बयान दर्ज किए।
घिनौने अपराध को इन दोनों ने दिया था अंजाम
मनोज शाह और प्रदीप कुमार दोनों पर आरोप है कि उन्होंने बच्ची के प्राइवेट पार्ट से छेड़छाड़ की और रेप किया था। दोनों आरोपी उस पीड़ित मासूम को कमरे में मरा हुआ समझ कर फरार हो गए थे। मासूम बच्ची को करीब चालीस घंटे तक मेडिकल परीक्षण में रखने के बाद बचाया जा सका। इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस सक्रिय हुई और आरोपियों को बिहार के मुजफ्फरपुर और दरभंगदा से गिरफ्तार किया गया था।
2014 में मामले ने लिया मोड़
आश्चर्य की बात ये है कि 2014 में इस मामले ने नया मोड़ लिया जब एक अभियुक्त प्रदीप ने अपने आपको नाबलिग बताया और ट्रायल कोर्ट को यह समझने में तीन साल लगे कि वो नाबालिग है या नहीं। आखिरकार 12 अप्रैल 2017 को उसका माला जुवेनाइस जस्टिस बोर्ड के हवाले किया गया और जून में उसे जमानत मिली। इसके बाद पीड़िता की मां ने जुवेनाइस जस्टिस बोर्ड के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया।
फैसले की घड़ी अब आ गई !
2018 में हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि प्रदीप ने जिस समय अपराध किया था नाबालिग नहीं था और उसके मामले को सेशंस कोर्ट के हवाले कर दिया। लेकिन यहां भी दोनों आरोपियों के बयान को दर्ज करने में एक साल लग गया। 5 दिसंबर 2018 से 25 सितंबर 2019 तक अभियोजन और बचाव पक्ष की तरफ से दलीलें पेश की गईं और दिसंबर 2019 में अंतिम तौर पर बहस पूरी हुई।