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Delhi Air Pollution: प्रदूषण का सामना करने के लिए एंटी स्मॉग गन तैयार, हवा को स्वच्छ बनाने की कवायद

Updated Oct 09, 2020 | 16:37 IST

Measures to curb smog: सर्दियों में दिल्ली के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रदूषण की होती है। सर्दी से पहले राज्य सरकार और दूसरी ईकाइयां कमर कस कर तैयार हैं।

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दिल्ली की हवा को स्वच्छ बनाए रखने के लिए एंटी स्मॉग गन
मुख्य बातें
  • दिल्ली में 39 जगहों पर लगेंगे एंटी स्मॉग गन, 33 जगहों पर पहले ही की जा चुकी है तैनाती
  • सर्दियों के समय प्रदूषण से दिल्ली का हाल रहता है बेहाल
  • सीपीसीबी की तरफ से दिल्ली सरकार को दी गई है हिदायत

नई दिल्ली। नवंबर का महीना अब करीब आ रहा है और दिल्ली सरकार के माथे पर बल पड़ रहा है। सरकार ही क्यों हर कोई जो दिल्ली-एनसीआर में रहता है वो पिछले साल की सर्दियों को कैसे भूल सकता है, जब वायु गुणवत्ता इंडेक्स का रंग हरा हुआ ही नहीं है। स्मॉग की रेड तलवार सबके गर्दन पर लटकती रही। प्रदूषण से निपटने के लिए सीपीसीबी के साथ साथ प्रदूषण नियंत्रण रोकथाम ईकाई ने दिल्ली में ग्रेप सिस्टम को 15 अक्टूबर से लागू करने आदेश दिया है। इन सबके बीच दिल्ली सरकार पराली के मुद्दे को उठा रही है और इसके साथ ही कुछ उपायों के बारे में जानकारी भी दी है। 

सीपी और आनंद विहार में लगेगा स्मॉग टॉवर
 प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए, दिल्ली सरकार ने आनंद विहार में आने वाले केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किए जाने वाले स्मॉग टॉवर के अलावा, कनॉट प्लेस में 20 करोड़ रुपये का स्मॉग टॉवर स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह टावर जमीन के पास से ऊपर और छनती हवा को छोड़ कर हवा को सोख लेगा।

दिल्ली में 39 जगहों पर लगेंगे एंटी स्मॉग गन
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि राजधानी में कुल 39 बड़ी जगहों की पहचान की गई है, जहां पर निर्माण कार्य हो रहा है। इनमें से सभी साइट्स पर एंटी स्मॉग गन लगाने के निर्देश दिए गए हैं। अभी तक 33 जगहों पर इन्हें इंस्टाल भी कर दिया गया है। दिल्ली में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए पिछले साल अलग अलग उपायों का ऐलान किया गया था। लेकिन यह पाया गया कि समय पर कार्रवाई न होने की वजह से लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

आखिर पराली कितनी जिम्मेदार
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के लिए दिल्ली सरकार बार बार पड़ोसी राज्यों को जिम्मेदार ठहराती रही है। लेकिन जानकारों का कहना है कि सिर्फ पराली को हो जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। दरअसल बजडे पैमाने पर पराली को अक्टूबर और नवंबर के महीने में जलाया जाता है लेकिन वायु गुणवत्ता इंडेक्स को देखने से पता चलता है कि दिसंबर और जनवरी के महीने में हवा ज्यादा जहरीली हो जाती है। दरअसल उस वक्त हवा की रफ्तार बेहद कम रहती है और निर्माण कार्य की वजहों से धूल के कण वायुमंडल में ठहर जाते हैं। 

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