- दिल्ली सरकार अध्ययन के जरीए पता करेगी यमुना में झाग बनने का कारण
- अध्ययन के बाद तैयार होगी प्रदूषण से निपटने का लघु व दीर्घकालिक योजना
- दिल्ली के सबसे बड़े नजफगढ़ नाले का भी किया जाएगा अध्ययन
Delhi Yamuna News: यमुना नदी में झाग फैलने के कारणों का पता लगाने के लिए दिल्ली सरकार एक खास अध्ययन करने जा रही है। जिसके तहत इसके जिम्मेदार कॉलोनियों और औद्योगिक क्षेत्रों का पता लगाया जाएगा। सरकार के इस अध्ययन का उद्देश्य नदी में बढ़ते प्रदूषण व झाग को कम करना और इससे निपटने के लिए लघु और दीर्घकालिक कार्य योजना बनाना है। इस परियोजना को लेकर योजना तैयार कर टीम भी गठित कर दी गई है। मानसून के बाद इस पर कार्य शुरू हो जाएगा।
बता दें कि दिल्ली के अंदर यमुना के कुछ हिस्सों जैसे आईटीओ और ओखला बैराज के पास झाग बनता है, इसमें लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। खास कर ठंड के समय में यह झाग हर तरफ दिखने लगता है। अधिकारियों के अनुसार, जहरीले फोम के बनने का प्राथमिक कारण अपशिष्ट जल में उच्च फास्फेट सामग्री है। इसके लिए रंगाई उद्योग व घरों में इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट फॉस्फेट मुख्य कारण हैं। अधिक फास्फेट सामग्री वाली अधिकृत कालोनियों और बस्तियों से अपशिष्ट जल बहकर नदी में पहुंचता है और झाग बनने लगता है।
यह है पूरी योजना
दिल्ली सरकार की योजना के अनुसार नजफगढ़ नाले और पूरक नाले में झाग के स्त्रोतों का आकलन और पहचान किया जाएगा। करीब 51 किमी लंबा नजफगढ़ नाला दिल्ली में सबसे बड़ा नाला है। यह अकेले राजधानी से यमुना नदी में छोड़े गए कुल अपशिष्ट जल का लगभग 60 प्रतिशत योगदान देता है। इसमें बहते अपशिष्ट जल का अध्ययन करने के साथ झाग के लिए जिम्मेदार घरेलू उत्पादों के संभावित विकल्पों का भी सुझाव दिया जाएगा। कारणों का पहचान करने के बाद उसके रोक थाम के लिए उपाय व पाबंदियां भी लगाई जाएंगी। साथ ही जरूरत पड़ने पर अपशिष्ट जल को साफ करने के लिए भी उपाय किए जाएंगे। सरकार के एक अधिकारी के अनुसार अब सभी अनधिकृत कालोनियों को सीवर नेटवर्क से जोड़ा जाना भी जरूरी है। बता दें कि दिल्ली में अभी करीब 775 एमजीडी अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है। इन्हें साफ करने के लिए 20 स्थानों पर 34 सीवेज उपचार संयंत्र लगे हैं, जो 570 एमजीडी तक सीवेज का शोधन करते हैं। बाकि का अपशिष्ट जल सीधे नदी में गिरता है।