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Delhi LG Anil Baijal : दिल्ली के एलजी अनिल बैजल ने दिया इस्तीफा, निजी कारणों से लिया फैसला

Updated May 18, 2022 | 18:01 IST

Delhi LG Anil Baijal : दिल्ली के एलजी अनिल बैजल ने 5 साल और 4 महीने से अधिक के लंबे कार्यकाल के बाद निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। उन्होंने नजीब जंग के अचानक इस्तीफे के बाद 31 दिसंबर 2016 को पदभार ग्रहण किया।

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दिल्ली के एलजी अनिल बैजल का इस्तीफा
मुख्य बातें
  • अनिल बैजल ने नजीब जंग के अचानक इस्तीफे के बाद 31 दिसंबर 2016 को दिल्ली के एलजी का पदभार ग्रहण किया था।
  • अनिल बैजल अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह सचिव भी रहे हैं।
  • उनका कई मुद्दों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ टकराव हुआ था।

Delhi LG Anil Baijal : दिल्ली के एलजी अनिल बैजल ने 5 साल और 4 महीने से अधिक के लंबे कार्यकाल के बाद बुधवार (18 मई) को निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा भेज दिया है। बैजल ने दिसंबर 2016 में दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के रूप में पदभार संभाला था। अतीत में कई मुद्दों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ उनका टकराव हुआ था।

उन्होंने नजीब जंग के अचानक इस्तीफे के बाद 31 दिसंबर 2016 को पदभार ग्रहण किया। लेकिन उसके बाद से उनका कई मुद्दों पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ टकराव हुआ था। बैजल 1969 बैच के AGMUT कैडर हैं, जो अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश के लिए आईएएस अधिकारी रहे हैं। उन्होंने दिल्ली में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पूर्व उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है।

बैजल को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गृह सचिव बनाया गया था। उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने शहरी विकास मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। जहां उन्होंने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के 60,000 करोड़ रुपए की योजना और कार्यान्वयन की देखरेख की।

नौकरशाही में अपने 37 साल के करियर के दौरान, बैजल ने इंडियन एयरलाइंस के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर, प्रसार भारती निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, गोवा के विकास आयुक्त और नेपाल में भारत के सहायता कार्यक्रम के सलाहकार प्रभारी के रूप में भी काम किया।

LG की भूमिका दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और केंद्र में वर्षों तक शासन करने वाली बीजेपी के बीच सत्ता संघर्ष के केंद्र में रही है, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने उनकी शक्तियों को और अधिक स्पष्ट रूप से स्पष्ट कर दिया।
 

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