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Lockdown and migrant laborers: प्रवासी मजदूर का छलका दर्द, दिल्ली में नहीं अपने गांव में मरना चाहता हूं

Updated May 08, 2020 | 22:28 IST

migrant workers: कोरोना काल में सड़कों पर प्रवासी मजदूरों को झुंड में चलते हुए देखा जा सकता है। सरकारों के आश्वासन के बाद भी उनमें भरोसा नहीं पैदा हो पा रहा है।

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तस्वीर साभार:&nbspRepresentative Image
लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें बढ़ीं
मुख्य बातें
  • प्रवासी मजदूरों के लिए चलाई जा रही हैं श्रमिक स्पेशल ट्रेनें, सरकारों की मजदूरों से अपील- पैदल न चलें।
  • औरंगाबाद में मालगाड़ी से कटकर 16 प्रवासी मजदूरों की हुई थी मौत, सभी मजदूर मध्य प्रदेश के रहने वाले थे
  • सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अपील किसी भी प्रवासी मजदूर को परेशान होने की जरूरत नहीं

नई दिल्ली। आखिर मरना कौन चाहता है, जवाब शायद कोई नहीं। लेकिन सच यह भी है एक न एक दिन मौत सबकी होनी है, पर मौत बेवजह हो या कुछ खामियों से हो तो कोई भी मरना नहीं चाहेगा। कोरोना वायरस के कहर का सामना पूरी दुनिया के साथ साथ भारत भी कर रही है। 56 हजार से ज्यादा लोग संक्रमण के शिकार हैं तो करीब 35 लाख आबादी को डर इस बात का है कि वो कोरोना से मरे या ना मरें, भूख से जरूर मर जाएंगे और उनकी पहचान इस प्रवासी मजदूर की।

चेहरे अनेक, एक जैसा दर्द
प्रवासी मजदूरों की की इस तरह की पीड़ा किसी खास राज्य से संबंधित नहीं है। कमोबेश हर राज्यों में प्रवासी मजदूरों की पीड़ा एक जैसी है। यहां यह समझना जरूरी है कि केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से तमाम तरह के उपायों को जमीन पर उतारा गया है। लेकिन प्रवासी मजदूरों को भय सता रहा है कि वो भूख से मर जाएंगे। इस तरह का डर किसी एक मजदूर की नहीं है उसकी कोई खास पहचान भी नहीं है। मजदूरों को तो चिंता सिर्फ इस बात की है आगे क्या होगा

दिल्ली की सड़कों पर दर्द का इजहार
दिल्ली की सड़कों पर प्रवासी मजदूरों का एक समूह उत्तर प्रदेश के अलग अलग जिलों के लिए निकल पड़ा। जब उनसे पूछा गया कि वो पैदल क्यों जा रहे हैं जबकि स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है, तो जवाब था कि उन्हें ट्रेनों के बारे में जानकारी नहीं है। इसलिए उन लोगों ने पैदल ही घर जाने का फैसला किया है। वो दिल्ली में नहीं मरना चाहते हैं, वो अपने गांव में मरना चाहते हैं। 

उस हादसे को भुला पाना आसान नहीं
शुक्रवार की सुबह महाराष्ट्र के औरंगाबाद से दर्दनाक खबर आई। प्रवासी मजदूरों का एक झुंड जालना से मध्य प्रदेश निकलने के लिए रेलवे ट्रैक पर सफर कर रहा था। करीब 36 किमी की दूरी तय करने के बाद पैर थके आंखों मे नींद आई और रेलवे ट्रैक उनके लिए बिछावन बना। लेकिन मौत की मालगाड़ी उनके ऊपर से निकल गई और घर पहुंचने की आस में सांस हमेशा हमेशा के लिए थम गई। मालगाड़ी के ड्राइवर ने बचाने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा। महाराष्ट्र सरकार ने दुख जताते हुए भरोसा दिया तो मध्य प्रदेश की सरकार मे मुआवजे का मरहम लगा दिया। मामला रेल मंत्रालय का था तो उसने जांच बैठा दी। लेकिन उन मजदूरों के परिवारों का भविष्य अंधकारमय हो गया। 

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