- लॉकडाउन के चलते अपने गृह राज्य जाने के लिए बाध्य हुए प्रवासी मजदूर
- वर्षों से शहरों की बुनियादी जरूरतें पूरी करते आए हैं ये प्रवासी मजदूर
- सरकार के सामने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की है चुनौती
कोविड-19 के प्रकोप की वजह से बंद देश अब धीरे-धीरे खुलने लगा है। डेढ़ महीने से ज्यादा समय तक बंद पड़ी गतिविधियां शुरू होने लगी हैं लेकिन शहरों का प्रवासी मजदूर वर्ग अपने गृह राज्य जाने लगा है। प्रवासी मजदूरों की एक बड़ी संख्या या तो अपने गृह राज्य पहुंच चुकी है या आने वाले दिनों में ट्रेनों में सवार होकर वह अपने गंतव्य तक पहुंच जाएगी। मतलब यह है कि कोरोना के प्रकोप के बाद शहर छोड़कर वापस गांव जाने की छटपटाहट जो पैदल शुरू हुई थी उसे अब ट्रेन और बस का साथ मिल गया है। जाहिर है कि शहर छोड़ने की यह प्रक्रिया अब और तेज होगी। संभावना है कि शहरों में अब नाम मात्र के मजदूर रह जाएंगे।
शहरों में करीब 13.9 करोड़ प्रवासी मजदूर
शहर छोड़कर गांव का रुख करने वालों ऐसे मजदूरों की संख्या ज्यादा है जो यह मानकर जा रहे हैं कि उन्हें दोबारा वापस नहीं आना है। या लंबे समय के बाद वे अपनी वापसी के बारे में सोचेंगे। आर्थिक सर्वे 2017-18, 2019-20 के मुताबिक भारत में प्रवासी मजदूरों की संख्या करीब 13.9 करोड़ है जो कि देश के कुल श्रमशक्ति का 30 प्रतिशत है। वर्षों से इतनी बड़ी प्रवासी मजदूरों को शहर अपने अंदर समेटे हुए हैं। यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित करोड़ों की संख्या में मजदूर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और राज्यों की राजधानियों में अपने परिवार के साथ गुजर-बसर करते आए हैं।
शहरों में खुश थे प्रवासी मजदूर
ग्रामीण इलाकों से आए इस मजदूर वर्ग को इन शहरों ने अपनाया। सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा की गारंटी मिलने के बाद वे भी शहरों के हो गए लेकिन गांवों से इनका नाता टूटा नहीं। शहरों में इनकी कमाई से गांव का इनका परिवार चलता था। दोनों खुश थे। लेकिन लॉकडाउन के दौरान शहरों में जिस तरह की इन्हें दिक्कत झेलनी पड़ी है उसे याद करते हुए ज्यादातर मजदूर फिलहाल शहर वापस आने के लिए तैयार नहीं दिखते हैं। रोजी-रोटी की तलाश में वर्षों से बड़े शहरों में अपना आशियाना बनाने वाले मजदूर संकट की घड़ी में अपने साथ हुए बर्ताव से खुश नहीं हैं।
बुनियादी जरूरतें करते हैं पूरी
शहरों के विकास में इन प्रवासी मजदूरों का बहुत बड़ा हाथ है। कल-कारखानों एवं फैक्ट्रियों में लगने वाले श्रम की आपूर्ति ग्रामीण लोग करते आए हैं। फल, सब्जी, दूध, रिक्शा, ऑटो सेवा और वे समस्त कार्य जो कुलीन वर्ग एवं मध्यम वर्ग नहीं करता वे सारे कार्य इनके हिस्से आते हैं। इनकी महेनत की बदौलत शहर की जिंदगी सरपट दौड़ती आई है। सवाल है कि ये प्रवासी मजदूर अगर वापस लौट कर वापस नहीं आए तो फिर शहरों का कामधाम कैसे चलेगा। फैक्ट्रियों में मजदूरों की संख्या कम होने से उत्पादन कम होगा और जब उत्पादन कम होगा तो वस्तुओं की किल्लत होगी। मजदूरों की इस कमी की वजह से शहरों की बुनियादी जरूरतें पूरी होने में दिक्कत आएगी और इसका असर आमजीवन से लेकर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
गांवों में क्या करेंगे मजदूर
गांवों में आजीविका का साधन न मिलने की वजह से ये मजदूर शहर आए लेकिन अब ये शहरों से गांव पहुंचने लगे हैं। इतनी बड़ी आबादी गांव में अब क्या करेगी, यह सबके लिए चिंता का विषय होना चाहिए। क्या ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था इन मजदूरों का बोझ उठा पाएगी। इन मजदूरों को गांवों में काम चाहिए। सरकार को इस दिशा में अब सोचना होगा। कृषि में अर्थव्यवस्था में अभी अपार संभावनाएं हैं। सरकार को चाहिए कि ब्लॉक या तहसील स्तर पर खाद्यान्न प्रोसेसिंग यूनिट लगाए।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करे सरकार
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद आगे आकर कृषि की नई विधियां किसानों को सिखाए। यह समय किसानों को वैज्ञानिक खेती की तरफ ले जाने वाला है। भारतीय कृषि यदि वैज्ञानिक एवं आधुनिक तरीके से हो तो उसमें रोजगार देने की अपार संभावनाएं हैं। किसानों के उत्पादों की मार्केटिंग एवं खरीद का एक तंत्र विकसित किए जाने पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और इससे गांव स्तर पर लोगों को रोजगार मिलेगा। इससे किसान एवं मजदूरों दोनों की आर्थिक हालत में सुधार होगा।