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Punjab Elections 2022 : पंजाब चुनाव में अस्तित्व और वर्चस्व की लड़ाई, किसके हाथ आएगी सत्ता?

रंजीता झा | SPECIAL CORRESPONDENT
Updated Feb 18, 2022 | 14:53 IST

Punjab Assembly Elections 2022 : इस बार का पंजाब विधानसभा चुनाव का प्रचार सभी राजनीतिक दलों के लिए एक नए प्रयोग की तरह रहा। कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा एक दलित मुख्यमंत्री पर दांव खेल रही है।

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पंजाब विधानसभा की 117 सीटों के लिए 20 फरवरी को पड़ेंगे वोट।

Punjab Assembly Elections 2022: पंजाब विधानसभा चुनाव के प्रचार का आज आखिरी दिन है। सभी राजनीतिक दलों ने प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार पंजाब विधानसभा चुनाव में चतुष्कोणीय मुकाबला हो रहा है। एक तरफ जहां कांग्रेस के लिए चरणजीत सिंह चन्नी अगुवाई में सत्ता में वापसी करने की चुनौती है। तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के लिए अपने दूसरे प्रयास में पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर सरकार बनाने का सुनहरा मौका है।

अकाली दल के सामने वजूद की लड़ाई
वहीं, अकाली दल के लिए पंजाब की सियासत में सालों से चले आ रहे हैं अपने सियासी वर्चस्व को बचाए रखने और वजूद की लड़ाई है। इस बार पंजाब विधानसभा का चुनाव बीजेपी अकाली दल से अलग होकर पहली बार लड़ रही है। बीजेपी को कांग्रेस से बाहर हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींडसा जैसे पुराने अकाली नेता का साथ मिल रहा है। साथ ही भगवा पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह सहित पार्टी के अपने कई नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए उतार दिया है।

बयानों से मुश्किल में आईं पार्टियां
आज चुनाव प्रचार का आखरी दिन है और पंजाब की 117 सीटों के लिए 20 फरवरी को वोट डाला जाएगा। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के बयान ने कई बार पार्टी के लिए मुश्किल भी खड़ी की...कांग्रेस के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को बिहार-यूपी के प्रवासी मजदूरों के लिए भैया वाले बयान पर सफाई देनी पड़ रही है। वही आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे कुमार विश्वास के बयान ने आप की मुश्किलें बढ़ा दी है। हालांकि अब केजरीवाल सफाई देते फिर रहे है।

मतदाताओं को सभी दलों ने लुभाया
विवादों के अलावा हर राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से मतदाता को लुभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह देश भर के 40 सिख समुदाय के प्रमुख लोगों से मुलाकात की है। वहीं, कांग्रेस पार्टी चुनाव से महज दो दिन पहले आज अपना मेनिफेस्टो जारी कर रही है। आम आदमी पार्टी दिल्ली मॉडल को पंजाब में लागू करना चाहती है। जिसके लिए आप पंजाब की जनता से एक मौका केजरीवाल का नारा दे रही है।

नए प्रयोग की तरह है इस बार का पंजाब चुनाव
बहरहाल इस बार का पंजाब विधानसभा चुनाव का प्रचार सभी राजनीतिक दलों के लिए एक नए प्रयोग की तरह रहा। कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा एक दलित मुख्यमंत्री पर दांव खेल रही है। तो बीजेपी पहली बार अकाली की बैसाखी के बिना चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही है। आम आदमी पार्टी ने भी आखिरकार केजरीवाल की जगह भगवंत मान को सीएम चेहरा बनाकर संदेश दिया है की पंजाब को कोई बाहरी नही चलाएगा। अंत में पंजाब की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल के लिए अस्तित्व की लड़ाई है।

किन नेताओं के लिए ये चुनाव अग्निपरीक्षा

चरणजीत सिंह चन्नी
कैप्टन अमरेंद्र सिंह के CM पद से हटाने के बाद दलित कार्ड खेलते हुए कांग्रेस ने चन्नी को  बड़ा मौका दिया लेकिन इसके साथ ही चुनौती इस बात की भी है कि अगर चन्नी के नेतृत्व में दलितों का एक बड़ा वोट बैंक कांग्रेस के पक्ष में नही जाता है तो ये प्रयोग असफल रहेगा।

कैप्टन अमरेंद्र सिंह
2017 में कांग्रेस को सत्ता दिलाने वाले कैप्टन अमरेंद्र सिंह के लिए ये चुनाव प्रतिष्ठा और सम्मान की लड़ाई है। कांग्रेस से अपमानित होकर बाहर निकले कैप्टन ने इस बात की घोषणा उसी वक्त कर दी थी कि उनकी पार्टी जीतने के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस को हराने के लिए चुनाव लड़ेगी और हर समझौता करेगी। कैप्टन ने बीजेपी से हाथ मिलाकर किया भी ऐसा ही,आज कैप्टन के सामने दो चुनौती है। पहली पटियाला में अपनी राजनीतिक विरासत बचाना और दूसरी सूबे में कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकना।

भगवंत मान
आम आदमी पार्टी के CM चेहरे भगवंत मान के लिए राजनीतिक तौर पर खुद को साबित करने का आखिरी मौका है। जहां आम आदमी पार्टी को को सत्ता में लाना और अपने विरोधी को उन पर निजी हमले का मुंहतोड़ जवाब देना है।

नवजोत सिंह सिद्धू
कैप्टन को नॉकआउट करने के बाद सिद्धू की राजनीतिक राह आसान लग रही थी लेकिन चन्नी की एंट्री ने सिद्धू के राजनीतिक महत्वाकांक्षा पर ब्रेक लगा दिया। मजीठिया के अमृतसर से चुनाव लड़ने के कारण अब सिद्धू को अपना घर बचाना भी मुश्किल हो रहा है।

लांबी से चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल पंजाब के सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी के मुखिया है। उनके सामने चुनौती राज्य की राजनीति में अकाली दल के दखल और सियासी अस्तित्व को बचाए रखने की है।