- पांच राज्यों के चुनाव में सबसे बड़ा दांव भारतीय जनता पार्टी का है। क्योंकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की सरकार है।
- तीसरे मोर्चे का भविष्य और ममता-शरद पवार और केसीआर की उम्मीदें भी नतीजों पर टिकी हैं।
- नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के राजनीतिक करियर के लिए यह चुनाव बेहद अहम है।
Assembly Elections 2022: अब वो घड़ी बेहद नजदीक है, जब 5 राज्यों के चुनावी नतीजों से भारतीय राजनीति की अगले दो साल की दिशा तय होने वाली है। 10 मार्च को उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे। इन नतीजों से यह तय होगा कि भाजपा मजबूत होती है, या फिर विपक्ष को 2024 के लिए नई संजीवनी मिलेगी। क्योंकि इसी के आधार पर अगले दो साल में कई राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आएंगे।
किसका क्या लगा है दांव
पांच राज्यों के चुनाव में सबसे बड़ा दांव भारतीय जनता पार्टी का है। क्योंकि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा की सरकार है। ऐसे में उसके लिए इन राज्यों में फिर से जीत हासिल करना बेहद जरूरी है। उसमें भी उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि अगर पार्टी इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करती है, तो उसके लिए 2024 में (लोकसभा चुनाव) बेहद आत्मविश्वास के साथ लड़ना आसान होगा। वहीं अगर पार्टी खराब प्रदर्शन करती है, तो उसके लिए एनडीए कुनबे को बचाकर रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
इन 5 राज्यों में कांग्रेस के लिए पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सत्ता में फिर से वापसी की चुनौती है। अगर वह जीतती है तो राहुल गांधी के नेतृत्व को मजबूती मिलेगी और भाजपा के खिलाफ विपक्ष की लड़ाई में कांग्रेस, स्थिति मजबूती से रख सकेगी। और अगर हार होती है तो कांग्रेस से दूरी बना रहे राजनीतिक दलों के लिए 2024 में कांग्रेस के बिना गठबंधन बनाने का रास्ता मिल जाएगा। साथ ही पार्टी का कई बड़े नेता साथ छोड़ सकते हैं।
आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब का चुनाव बेहद अहम है। अगर वह सरकार बनाती है तो राष्ट्रीय राजनीति में उसका कद बढ़ेगा। और वह 2024 के लिए विपक्षी दल उसे नकार नहीं सकेंगे।
समाजवादी पार्टी अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा को सत्ता से दूर कर देती है तो अखिलेश यादव का कद, ममता बनर्जी की तरह राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ जाएगा। और वह 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य की अगुआई करते दिखेंगे। जिसका उन्हें 2024 की लड़ाई में फायदा मिलेगा। लेकिन अगर हार होगी तो यह संदेश भी जाएगा कि उनमें चुनाव जीतकर सरकार बनाने की क्षमता नहीं है।
इन चुनावों में बसपा प्रमुख मायावती और उनकी पार्टी की साख भी दांव पर है। अगर पार्टी खराब प्रदर्शन करती है तो मायावती के राजनीतिक करियर पर सवाल उठने लगेंगे। और दलित राजनीति के नए नेतृत्व की बात भी उठेगी। लेकिन अगर वह 2017 के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करती हैं तो उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता पर सवाल उठाने वालों के मुंह बंद हो जाएंगे।
इसी तरह पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के राजनीतिक करियर के लिए यह चुनाव बेहद अहम है। क्योंकि नतीजों से यह तय हो जाएगा कि राज्य की राजनीति में इन तीनों की प्रासंगिकता कितनी कायम रहेगी।
राष्ट्रपति चुनाव
देश के अगले राष्ट्रपति का चुनाव, जुलाई 2022 में होना है। और 5 राज्यों के नतीजों से राज्यसभा के सीटों से लेकर विधानसभा सीटों पर सीधा असर होगा। जिनका राष्ट्रपति चुनाव में असर दिखेगा। अगर भाजपा इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसके लिए अपने उम्मीदवार को जिताना कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा। इसके अलावा अगस्त तक 65 से ज्यादा सीटों पर राज्यसभा के चुनाव होने वाले हैं। अगर भाजपा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करती है तो वह राज्य सभा में अपनी संख्या मजबूत करेगी। लेकिन अगर उसका 2017 के मुकाबले प्रदर्शन खराब रहता है तो उसके लिए राज्यसभा का समीकरण थोड़ा मुश्किल हो जाएगा।
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तीसरे मोर्चे का भविष्य
पिछले कुछ महीनों से तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार से लेकर टीआरएस प्रमुख कें.चंद्रशेखर राव लगातार तीसरे मोर्चे की कवायद कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि गैर भाजपाई दलों को एक-जुट कर भाजपा के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाया जाय। इस कवायद में वह कांग्रेस के बिना विकल्प बनने की तलाश में भी हैं। अगर 5 राज्यों के चुनावी नतीजे भाजपा के खिलाफ जाते हैं, तो तीसरे मोर्चे को संजीवनी मिलेगी और कई राजनीतिक दल उनके साथ जुट सकते हैं।
आर्थिक सुधारों पर असर
जिस तरह 5 राज्यों के चुनाव को देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून को वापस लेने का फैसला किया, वह ब्रांड मोदी के लिए झटका था। क्योंकि नरेंद्र मोदी की छवि आर्थिक सुधारों के लिए सख्त कदम उठाने के लिए जाना जाता रहा है। ऐसे में अगर नतीजे भाजपा के लिए अनुकूल आते हैं, तो आने वाले वाले दिनों में श्रम सुधार से लेकर जीएसटी कर ढांचे में कई अहम सुधार किए जा सकते हैं। लेकिन अगर भाजपा को हार मिलती है, तो नए आर्थिक सुधारों जैसे नेशनल मोनेटजाइजेशन पाइपलाइन आदि की रफ्तार भी धीमी हो सकती है।