- चुनावों में भाजपा के कई बागियों ने पार्टी से किनारा कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा है।
- चुुनाव से ठीक सात महीने पहले सत्ता मिलने के बावजूद धामी सरकार के प्रदर्शन ने दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया।
- उत्तराखंड के फैसले का असर यूपी में योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट में भी दिख सकता है।
Pushkar Dhami : क्या हुआ कि खुद का चुनाव हार गए, लेकिन उनके ही नेतृत्व में भाजपा ने दूसरी बार दो-तिहाई बहुमत लाकर मिथक तोड़ा है। और यह कारनामा तब करके दिखाया जब आखिरी साल में उत्तराखंड में दो मुख्यमंत्री बदलने वाली भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी रूझान कम नहीं था। उस पर से राज्य के तराई इलाके में किसान आंदोलन भी अपने रंग में था। इसके बावजूद न केवल भाजपा को विधानसभा चुनावों में 47 सीटें मिली बल्कि कांग्रेस सब-कुछ करके भी 2017 के मुकाबले केवल 9 सीटों का इजाफा कर 19 सीटों तक पहुंची। ऐसे में इस बेहतरीन जीत का सेहरा, आलाकमान ने पुष्कर सिंह धामी को पहना दिया है। और वह दोबारा मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।
2024 को देखकर फैसला
जाहिर है पुष्कर सिंह धामी ने जिस तरह विपरीत परिस्थितियों में पार्टी को एकजुट कर बड़ी जीत दिलाई है। वह उनके दोबारा मुख्यमंत्री बनने में सबसे ज्यादा कारगर रहा है। क्योंकि सत्ता विरोधी लहर और आपसी गुटबाजी को रोकने के लिए भाजपा को मार्च 2021 में त्रिवेंद सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को जिस तरह मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। उससे साफ था कि पार्टी सत्ता विरोधी लहर को कम करना चाहती है। लेकिन तीरथ सिंह रावत का दांव भी काम नहीं कर पाया और 2 महीनों बाद संवैधानिक बाध्यता की वजह से उन्हें भी कुर्सी छोड़नी पड़ी। और उस समय धामी को चुनाव से महज 7 महीने पर सत्ता मिली। इसके बावजूद धामी के नेतृत्व में जिस तरह सफलता मिली । आलाकमान 2024 के लोकसभा चुनाव तक राज्य में कोई गुटबाजी नहीं चाहता है। और इन परिस्थितियों में उसके लिए पुष्कर सिंह धामी ही सबसे मुरीद चेहरा हैं।
असंतुष्ट हुए साइडलाइन
चुनावों में भाजपा के कई बागियों ने पार्टी से किनारा कर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। इसमें प्रमुख रूप से भाजपा सरकार में मंत्री रहे यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य थे, जिन्होंने कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा। यशपाल आर्य तो चुनाव जीत गए लेकिन उनके बेटे चुनाव हार गए। इसी तरह भाजपा से कांग्रेस में शामिल होने वाले मालचंद को भी मतदाताओं ने नकार दिया। इसके अलावा दिग्गज नेता डॉ. हरक सिंह रावत चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए और अपनी पुत्र वधू अनुकृति को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़वाया। लेकिन वह भी अपनी पुत्र वधू को चुनाव नहीं जिता पाए। इन नेताओं के पार्टी से किनारा करने और फिर मिली हार ने धामी के आगे की राह आसान कर दी है।
धामी कहां से लड़ेंगे चुनाव
इन चुनौतियों से निपटने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी खुद अपना चुनाव खटीमा से हार गए। ऐसे में अब जब वह 23 मार्च को दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि धामी कहां से चुनाव लड़ेंगे। क्योंकि उन्हें 6 महीने के अंदर विधानसभा का सदस्य बनना होगा। हालांकि उनके लिए सीट छोड़ने की पेशकश करने वाले विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इस समय ऐसी खबरें हैं कि जागेश्वर, लालकुंआ,चंपावत, रुड़की, खानपुर सीटों से चुनाव जीतने वाले विधायकों ने अपनी सीट छोड़, धामी को चुनाव लड़ने की पेशकश की है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि धामी डीडीहाट से चुनाव लड़ सकते हैं। क्योंकि न केवल वह सीट सुरक्षित है बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेता बिशन सिंह चुफाल वहां से चुनाव जीत कर आए हैं। ऐसे में इस बात की संभावना है कि पार्टी बिशन सिंह की वरिष्ठता का ध्यान रखते हुए उन्हें राज्यसभा भेज सकती है और वहां से धामी चुनाव लड़ सकते हैं।
आलाकमान के फैसले से इनकी भी खुली राह !
हारने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी सौंपने से साफ है कि पार्टी आलाकमान ने अपनी नीति में बदलाव कर दिया है। क्योंकि इसके पहले 2017 में हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे लेकिन पार्टी को जीत हासिल हुई थी। लेकिन हार की वजह से धूमल मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे। हालांकि धामी के साथ ऐसा नहीं हुआ है। ऐसे में इस फैसला का असर उत्तर प्रदेश में भी दिख सकता है। जहां उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए हैं। ऐसे में लगता है कि उन्हें हार के बावजूद योगी कैबिनेट में जगह मिल जाएगी।
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