नई दिल्ली : यूपी के चुनावी अखाड़े में शह-मात का खेल तेज हो चुका है। वोटों का गणित एवं सियासी समीकरण साधने के लिए जोर-आजमाइश जारी है। राजनीतिक दल अपने विरोधी को पटखनी देने के लिए चुनावी दांव चल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बड़ा दांव चलते हुए पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री एवं कांग्रेस के दिग्गज नेता आरपीएन सिंह को अपने पाले में कर लिया है। आरपीएन सिंह की गिनती पूर्वांचल के बड़े नेताओं में होती है। कुशीनगर के पूर्व सांसद सिंह सैंथवार समाज से आते हैं हालांकि उन्होंने कभी इस बात का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन नहीं किया है।
चुनावी विश्लेषक मानते हैं कि सिंह के भाजपा में आने से भगवा पार्टी को इलाके में फायदा पहुंचेगा। स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से भाजपा को पूर्वांचल के एक विशेष क्षेत्र में वोट बैंक के नुकसान की जो आशंका बनी थी उसकी भरपाई काफी हद तक आरपीएन सिंह से हो जाएगी। इसका एक बड़ा कारण गोरखपुर मंडल के सभी चार जिलों गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर एवं महराजगंज में सैंथवार समाज की आबादी है। वैसे सैंथवार समाज परंपरागत रूप से भाजपा का वोट बैंक रहा है लेकिन बीते चुनावों में ऐसे कई मौके भी आए जब इस समाज ने दूसरे दल के सैंथवार उम्मीदवारों के लिए मतदान किया।
कुशीनगर (पडरौना) जिला, जहां से आरपीएन सिंह आते हैं, इस जिले में विधानसभा की सात सीटें-खड्डा, पडरौना, रामकोला, कुशीनगर, हाटा, फाजिलनगर एवं तमकुहीराज हैं। इन सभी सीटों पर बड़ी तादाद में सैंथवार मतदाता हैं। हाटा विधानसभा क्षेत्र में करीब एक लाख 25 हजार, कुशीनगर में 65 हजार, पडरौना में 52 हजार, रामकोला में 55 हजार, सेवरही में 32 व खड्डा में करीब 33 हजार मतदाता कुर्मी-सैंथवार बिरादरी के हैं। इन सीटों पर सैंथवार समाज का झुकाव जिस पार्टी की तरफ होता है, उसकी जीत की राह आसान हो जाती है।
अपने समाज से आने वाले नेता को जिताने के लिए यह समाज एकजुट होकर मतदान करता आया है। रामकोला एवं हाटा विधानसभा क्षेत्र में सैंथवार मतदाता जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिता निभाते आए हैं। कल्याण सिंह की सरकार में गन्ना मंत्री रहे अंबिका सिंह रामकोला विधानसभा सीट से कई बार चुने गए। अंबिका सिंह सैंथवार समाज से आते थे। सिंह को चुनाव जीताने में हर बार सैंथवार समाज की बड़ी भूमिका रही। हाटा विस सीट का चुनावी नतीजा भी सैंथवार मतदाता तय करते आए हैं।
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कुशीनगर के अलावा पूर्वांचल के अन्य जिलों महराजगंज, गोरखपुर एवं देवरिया की अलग-अलग विधानसभा सीटों पर भी सैंथवार आबादी कहीं ज्यादा तो कहीं कम है। गोरखपुर की सहजनवा एवं महराजगंज की पनियरा सीट ऐसी है जहां इस समाज के लोग ज्यादा हैं। कुल मिलाकर इन चार जिलों की करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां पर सैंथवार मतदाता चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। भाजपा की कोशिश कुर्मी वोटरों के साथ-साथ सैंथवार समाज को को अपने पाले में गोलबंद करने की है।
आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद पडरौना का चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया है। पडरौना आरपीएन सिंह का गढ़ है। मौर्य इस सीट पर मौजूदा विधायक हैं। तो आरपीएन सिंह पडरौना से विधायक रह चुके हैं। सिंह इस सीट से चुनाव लड़ेंगे कि नहीं अभी यह स्पष्ट नहीं है। इस सीट पर सिंह का व्यक्तिगत वोट इतना ज्यादा है कि अन्य दलों को उससे पार पाने में मुश्किल होती आई है। अब आरपीएन सिंह भाजपा में हैं।
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जाहिर है कि इसका लाभ भाजपा यहां उम्मीदवार को मिलेगा। भाजपा ने इस सीट पर मौर्य की एक तरह से घेराबंदी कर दी है। मौर्य पडरौना सीट से यदि चुनाव लड़ते हैं तो यहां मुकाबला काफी रोमांचक एवं दिलचस्प होगा। हालांकि, इलाके के लोग कहते हैं कि मौर्य पडरौना सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे, वह अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश कर रहे हैं।