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यूपी छठा चरण: दल-बदलुओं की साख दांव पर, हारे तो डूब सकता है राजनीतिक करियर

Updated Mar 03, 2022 | 12:31 IST

UP Assembly Election 2022: छठें चरण में कई दल-बदलू मैदान में हैं। जिसमें स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर सुरेंद्र सिंह तक का नाम शामिल है। 2022 का चुनाव इन नेताओं के राजनीतिक करियर के लिए बेहद अहम हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
यूपी में छठे चरण में 57 सीटों पर वोटिंग
मुख्य बातें
  • सबसे ज्यादा पाला बदलकर समाजवादी पार्टी में नेता शामिल हुए हैं।
  • अखिलेश यादव को इन नेताओं के जरिए ओबीसी और ब्राह्मण वोट में सेंध लगाने की उम्मीद है।
  • भाजपा ने पिछले बार छठें चरण की 57 सीटों में से 46 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में छठें दौर की वोटिंग जारी है। इस चरण में 675 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होगा। लेकिन इन उम्मीदवारों में कई ऐसे है, जिनके लिए यह चुनाव करो या मरो वाला बन गया है। असल में इन उम्मीदवारों या राजनीतिक दलों ने 2022 के चुनावों के लिए पाला बदल कर नया दांव खेला है। उनका यह दांव काफी जोखिम भरा है क्योंकि अगर वह चुनाव हारते हैं तो उनके राजनीतिक करियर पर भी आंच आ सकती है। लेकिन अगर वह चुनाव जीतते हैं तो वह किंगमेकर की भूमिका में होंगे। जिसका उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में भी बड़ा फायदा मिलेगा।

स्वामी प्रसाद मौर्य

2022 के चुनावों में पाला बदलने वाले नेताओं में सबसे बड़ा नाम स्वामी प्रसाद मौर्य का रहा है। वह योगी सरकार में कद्दावर मंत्री थे। और पार्टी के लिए ओबीसी का चेहरा भी थे। लेकिन चुनावों के ठीक पहले उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ समाजवादी पार्टी का हाथ थाम लिया। वह 2017 में पडरौना सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। उसके पहले वह बसपा के भी कद्दावर नेता रह चुके हैं। और मायावती के कैबिनेट में भी मंत्री रह चुके थे। इस बार वह फाजिल नगर से चुनावी मैदान में हैं। पडरौना के प्रमुख नेता आरपीएन सिंह का कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने से मौर्य के लिए नई चुनौती बढ़ गई है। अखिलेश यादव ने उन्हें ओबीसी वोटरों को समाजवादी पार्टी के साथ जोड़ने के लिए सपा में शामिल करने का दांव चला है। ऐसे में अगर स्वामी प्रसाद मौर्य 2022 में ओबीसी वोटरों को सपा के पाले में लाने में सफल होते हैं, तो उनका कद काफी बढ़ जाएगा। और अगर मौर्य ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उनके राजनीतिक करियर पर सवाल उठने लगेंगे। खास तौर पर यह देखते हुए कि वह अपने बेटे का राजनीतिक करियर अभी तक नहीं बना पाए हैं।

लालजी वर्मा

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के समय से पार्टी से जुड़े रहे और मायावती के भी बेहद करीबी लालजी वर्मा ने इस बार पार्टी बदल दी है। वह समाजवाजी पार्टी के टिकट पर अंबेडकरनगर जिले के कटेहरी सीट से चुनावी मैदान में हैं। राजभर 1993 में पहली बार बसपा के टिकट पर विधायक बने। तब से उनकी जीत का सिलसिला जारी है। वह पांच बार विधायक रह चुके हैं। और 2017 की भाजपा लहर में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। लेकिन मायावती ने उन्हें पंचायत चुनावों में पार्टी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाकर बसपा से निष्कासित कर दिया था। अगर लालजी वर्मा फिर से अपनी सीट बचा लेते हैं और ओबीसी वोटों को सपा की ओर खींचने में सफल होते हैं। तो वह भी चुनाव बाद बेहद मजबूत स्थिति में होंगे। 

राम अचल राजभर

लालजी वर्मा की तरह राम अचल राजभर का बसपा से पुराना नाता रहा है। वह पिछले 35 साल से बसपा से जुड़े हुए थे। वह बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। मायावती ने उन्हें भी लालजी वर्मा की तरह पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में बसपा से निष्कासित कर दिया था। और इसके बाद राम अचल राजभर ने सपा का दामन थाम लिया। राम अचल अपनी परंपरागत अंबेडकर नगर सीट से इस बार भी मैदान में हैं। वह 5 बार विधायक रह चुके हैं। 2017 की तरह इस बार भी वह पार्टी से ज्यादा अपनी साख पर चुनाव लड़ रहे हैं। और ओबीसी, मुस्लिम वोटों के समीकरण से जीत की उम्मीद कर रहे हैं।

विनय शंकर तिवारी

अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर और उसके आस-पास के क्षेत्र में सेंध लगाने के लिए सबसे ब्राह्मण दांव  पूर्वांचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी के परिवार पर लगाया है। हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी इस बार सपा के टिकट से चिल्लूपार में चुनावी मैदान में हैं। विनय शंकर तिवारी बसपा से सपा में शामिल हुए हैं। अखिलेश यादव इनके जरिए ब्राह्मण वोटों में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। उनकी जीत हार से यह भी तय होगा कि तिवारी परिवार ब्राहम्ण वोटरों को साधने में कितना कारगर है।

सुरेंद्र सिंह

भाजपा से पाला बदलने वालों बलिया के सुरेंद्र सिंह पर भी नजर है। वह बैरिया विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक थे। लेकिन इस बार उनका पार्टी ने टिकट दिया और उनकी जगह यूपी सरकार के मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को उम्मीदवार बना दिया। टिकट से नाराज सुरेंद्र सिंह वीआईपी पार्टी से चुनावी मैदान में हैं। उनकी जीत भाजपा के लिए बड़ा झटका होगी। और हार से उनके राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठेंगे।

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