- लखीमपुर खीरी में शहरी मतदाता सिर्फ 10 फीसद
- किसान और किसानी लखीमपुर का मुख्य मुद्दा
- 2017 में सभी 8 सीटों पर बीजेपी का था कब्जा
नेपाल सीमा के सबसे क़रीब लखीमपुर खीरी (lakhimpur kheri election 2022) उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, लखीमपुर खीरी में है और यह उत्तर प्रदेश का एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान है।लखीमपुर खीरी जिले में आठ सीटें हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में जिले की इन आठों विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी(BJP) ने अपना परचम लहराया था। इस बार के विधानसभा चुनाव में पिछले रिकॉर्ड की परीक्षा होनी है। इस बार सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। लिहाजा लड़ाई दिलचस्प है। बीजेपी ने आठ में से सात सीटों पर सिटिंग एमएलए को टिकट दिया है। आठवीं सीट (घौरहरा) से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी सपा में चले गए तो उनकी जगह पर एक कार्यकर्ता विनोद अवस्थी को बीजेपी ने मौका दिया है। खीरी में सियासत किस करवट जाएगी, इस पर सबकी नजर है।
हर दल की अलग-अलग गणित
इस चुनाव में बीजेपी ने आठ में से सात सीटों पर अपने विधायकों के चेहरों पर ही दांव लगाया है। सपा ने इस बार चार पुराने और चार नए चेहरों के साथ चुनाव में ताल ठोंकी है। इसमें चार पूर्व विधायक हैं। बसपा भी आठों सीटों पर प्रत्याशी उतार चुकी है। हालांकि बसपाई खेमे में इस बार सपा और बीजेपी के बागियों को भी जगह मिली है।
लखीमपुर सदर-सदर में भाजपा ने विधायक योगेश वर्मा तो सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा को मैदान में उतारा है। बसपा ने मोहन वाजपेयी पर दांव लगा दिया है। इससे मुकाबला और दिलचस्प हो चला है।
पलिया-इस सीट पर भाजपा ने रोमी साहनी को उम्मीदवार बनाया है तो सपा ने पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रीतेंद्र सिंह काकू के चेहरे पर भरोसा जताया है। बसपा भी यहां डॉ. जाकिर के रूप में नए चेहरे के साथ उतरी है।
मोहम्मदी-यहां भी कांटे की लड़ाई होनी है। भाजपा ने विधायक लोकेंद्र सिंह पर दांव लगाया है तो सपा ने पूर्व सांसद दाउद अहमद को उम्मीदवार बनाया है। दाउद इसी सीट पर पिछले चुनाव में बसपा के हाथी निशान के साथ थे। बसपा ने यहां शकील अहमद सिद्दीकी को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने रितू सिंह को।
गोला-बेहद प्रतिष्ठापूर्ण सीट गोला में भाजपा ने चार बार के विधायक अरविंद गिरि को टिकट दिया है तो सपा ने पूर्व विधायक विनय तिवारी पर भरोसा जताया है। बसपा ने यहां कुर्मी समाज की महिला व जिला पंचायत सदस्य शिखा वर्मा को उम्मीदवार बनाया है।
धौरहरा-यह सीट भाजपा विधायक बाला प्रसाद अवस्थी के पार्टी छोड़ने से दिलचस्प हो गई है। यहां सपा ने पूर्व मंत्री यशपाल चौधरी के बेटे वरुण को टिकट दिया है तो भाजपा ने कार्यकर्ता विनोद अवस्थी पर दांव लगाया है। वहीं बसपा ने भाजपा छोड़कर आए आनंद मोहन त्रिवेदी को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर एक ब्राह्मण चेहरे की बगावत और दो के मैदान में होने से स्थिति दिलचस्प हो गई है। बाला प्रसाद सपा से टिकट नहीं मिलने के कारण फिर भाजपा खेमे में वापस आ गए हैं।
श्रीनगर-इस सुरक्षित सीट पर भाजपा ने विधायक मंजू त्यागी, सपा ने पूर्व विधायक रामसरन को उतारा है तो बसपा ने सपा की ही बागी मीरा बानो को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में मीरा बानो दूसरे स्थान पर थीं।
निघासन-तिकुनिया कांड के बाद यह सीट चर्चित है। यहां भाजपा ने विधायक शशांक वर्मा, सपा ने पूर्व बसपा प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को इस बार उतारा है। जबकि बसपा ने मनमोहन मौर्य को टिकट दिया है।
कस्ता-कस्ता सुरक्षित सीट पर भाजपा से विधायक सौरभ सिंह सोनू, सपा से पूर्व विधायक सुनील कुमार को उतारा है। बसपा से सरिता वर्मा हैं।
क्या कहती हैं मुद्दों की हवाएं
● बाढ़ और कटान रोकने के लिए ठोस कार्ययोजना बने
● जिले में गन्ना शोध संस्थान की स्थापना हो
● नए उद्योगों की स्थापना की दिशा में कदम बढ़े
● किसानों को गन्ना मूल्य का समय से भुगतान हो
● ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों की दशा सुधारी जाए
कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर
जिले के नेताओं को बड़ा मुकाम हासिल है। इनमें से एक केंद्र सरकार के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी हैं। जबकि दूसरी धौरहरा की सांसद रेखा अरुण वर्मा, जिनको भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का ओहदा दिया है। इस चुनाव में भले ही दोनों सांसद मैदान में ना हों, लेकिन उनकी प्रतिष्ठा जरूर दांव पर है। यही नहीं, भाजपा सरकार के मौजूदा मंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का भी यह क्षेत्र रहा है। वह यहां के धौरहरा सीट के सांसद रहे हैं। उनका प्रभाव जिले में हैं।
सिर्फ दस फीसदी शहरी मतदाता
यह जिला ग्रामीण आबादी वाला क्षेत्र ही माना जाता है। यहां सिर्फ 10. 8 फीसदी शहरी मतदाता हैं, जबकि करीब 90 फीसदी ग्रामीण जनता रहती है। गांव की जनता ही परीक्षा परिणाम लिखती रही है। इस लिहाज से गांव के मतदाताओं की सोच और उनके मुद्दे ज्यादा अहम हो जाते हैं। जिले की पांच विधानसभा सीटों पर तो बाढ़ की तबाही ही बड़ा मुद्दा है।
सबकी नजर किसान व किसानी पर
तराई की इस गन्ना बेल्ट में सबकी नजर किसान और किसानी के मुद्दों पर है। जिले में किसानों का अपना एजेंडा है। इसमें गन्ना मूल्य का भुगतान जोर पकड़ता रहा है। किसान पिछले दिनों दो महीनों तक आंदोलन की राह पर रहे। किसान चीनी मिलों को गन्ना देते हैं, लेकिन उसकी कीमत उनको समय से नहीं मिल पा रही है। हालात यह है कि चुनावी सीजन में भी पिछले 30 दिनों तक किसान गोला में धरने पर बैठे रहे। इससे पहले किसान तीन चीनी मिलों के लिए गन्ना रोककर उन्हें नो केन भी कर चुके हैं। दूसरा दर्द आवारा जानवरों का है। यह पूरे जिले का मुद्दा है। किसान इस कदर नाराज हैं कि जानवरों को कभी रेलवे के अंडर पास में बन्द करते हैं तो कभी कॉलेजों में। यह चुनाव किसानी के मुद्दों और जाति की राजनीति के बीच का इम्तिहान भी साबित होने वाला है।
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