गोरखपुर शहरी सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनावी मैदान में उतरने से यह सीट राज्य की सबसे हाई प्रोफाइल सीट बन गई है। योगी के खिलाफ सपा के बाद बसपा ने भी अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। गत शनिवार को बसपा ने ख्वाजा शमसुद्दीन को इस सीट पर अपना उम्मीदवार बनाया। इस सीट पर चुनावी अखाड़े की तस्वीर अब साफ हो गई है। सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। गोरखपुर शहरी सीट पर भाजपा का करीब तीन दशकों से दबदबा रहा है। इस सीट पर गोरक्षनाथ मंदिर का प्रभाव इतना है कि यहां कोई भी जातिगत समीकरण काम नहीं करता। मंदिर के प्रति लोगों की आस्था सारे जातिगत समीकरणों को ध्वस्त कर देती है।
कौन हैं ख्वाजा शमसुद्दीन
गोरखपुर शहरी सीट पर बसपा के उम्मीदवार बने शमसुद्दीन ठेकेदार हैं। वह बसपा से बीते 20 सालों से जुड़े हैं। अभी तक वह पार्टी के कई पदों पर अपनी सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में वह गोरखपुर प्रभाग के प्रभारी हैं। शमसुद्दीन पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर बसपा कभी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाई है। शमसुद्दीन के जरिए वह मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती है। ब्राह्मण समुदाय को लुभाने के लिए वह 'प्रबुद्ध सम्मेलन' करती आई है। बसपा को लगता है कि इस सीट पर मुस्लिम, दलित और ब्राह्मण वोटों के जरिए वह चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकती है।
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तीन दशकों से इस सीट को जीतती आई है भाजपा
इस सीट पर बीते तीन दशकों से ज्यादा समय से भाजपा उम्मीदवार भारी मतों से विजयी होते रहे हैं। भाजपा की इस जीत के पीछे सबसे बड़ी वजह मंदिर का आशीर्वाद एवं समर्थन रहा है। साल 2002 में मंदिर का समर्थन भाजपा उम्मीदवार शिव प्रताप शु्क्ला को नहीं था, इसका नतीजा यह हुआ कि शुक्ला चुनाव हार गए। अखिल भारत हिंदू महासभा के टिकट पर राधा मोहन दास अग्रवाल चुनाव मैदान में थे। अग्रवाल को मंदिर एवं योगी आदित्यनाथ का समर्थन मिला और उन्होंने भाजपा प्रत्याशी शुक्ला को चुनाव में पटखनी दे दी। बाद में अग्रवाल भाजपा में शामिल हो गए।
सीट पर करीब करीब 4.50 लाख वोटर
गोरखपुर शहरी सीट पर करीब 4.50 लाख वोटर हैं। जिनमे सबसे अधिक कायस्थ वोटर की संख्या है। यहां कायस्थ 95 हजार, ब्राहम्ण 55 हजार, मुस्लिम 50 हजार, क्षत्रिय 25 हजार, वैश्य 45 हजार, निषाद 25 हजार, यादव 25 हजार, दलित 20 हजार इसके अलावा पंजाबी, सिंधी, बंगाली और सैनी कुल मिलाकर करीब 30 हजार वोटर हैं। लेकिन सभी जातियों के वोटर चुनाव में जाति को देखकर नहीं बल्कि गोरखनाथ मंदिर यानी योगी आदित्यनाथ के नाम पर वोट देते हैं। 2017 के चुनाव नतीजे की अगर बात करें तो इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी अग्रवाल विजयी हुए। उन्होंने कांग्रेस के राणा राहुल सिंह को हराया। राणा सपा और कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार थे।
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इस बार हो सकता है रिकॉर्ड मतदान
इस बार समाजवादी पार्टी ने सुभावती शुक्ला को इस सीट पर अपना उम्मीदवार बनाया है। सुभावती की राजनीतिक पृष्ठभूमि भाजपा की रही है। आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर भी चुनाव मैदान में है और वह शहर में अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। कुल मिलाकर इस सीट पर भाजपा का दबदबा इस कदर है कि कोई भी राजनीतिक दल भगवा पार्टी को चुनौती देने की स्थिति में नहीं आ पाता। यह सीट भाजपा के अभेद्य किले के रूप में जानी जाती है। इस बार तो यहां से खुद योगी मैदान में हैं। इसे देखते हुए मतदाता यहां रिकॉर्ड संख्या में मतदान कर सकते हैं।