दिग्गज अभिनेता कपूर खानदान के सबसे हैंडसम बेटे माने जाते थे। उनके लिए लड़कियों की दीवानगी ठीक वैसे ही थी जैसे किसी दौर में देव आनंद साहब और राजेश खन्ना के लिए थी। शशि कपूर बेहद चार्मिंग थे और यही वजह थी कि लड़कियां उनकी जबरदस्त फैन थीं। फिल्मों की हीरोइनें उनके साथ एक बार काम करने को तरसती थीं तो शूटिंग के बाहर उनकी एक झलक के लिए लड़कियां पलकें बिछाए बैठी रहती थी।
भारतीय फिल्म जगत में शशि कपूर उन अभिनेताओं में थे जिन्होंने रोमांटिज्म, एक्शन और कॉमेडी को सिने पर्दे पर बहुत ऊंचाई दी। शशि कपूर की आभा ऐसी थी कि बॉलीवुड अदाकारा शर्मिला टैगोर भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाईं। शशि कपूर से जब पहली बार शर्मिला टैगोर की मुलाकात हुई तो उनके पैर कांपने लगे थे।
चुंकि शर्मिला टैगोर शशि कपूर की बहुत बड़ी फैन हैं। वह उनसे मिलना चाहती थीं और आखिर यह चाहत पूरी हुई 1965 में। शर्मिला को शशि कपूर के साथ फिल्म वक्त में पहली बार काम करने का मौका मिला। जब इस फिल्म का पहला सीन शूट हो रहा था, तो शर्मिला टैगोर शशि कपूर के सामने खड़ी थीं। अपने चहेते सितारे को सामने पाकर सीन करते वक्त उनके पांव डगमगा रहे थे। शर्मिला की हालत को देखकर डायरेक्टर ने शूटिंग बंद कर दी, चुंकि नौबत बदहवासी तक आ गई थी।
बता दें कि शशि कपूर साठ और सत्तर के दशक के चर्चित अभिनेताओं में से एक थे। उनका रोमांटिज्म फिल्मी पर्दे पर जिस तरह साकार हुआ वह 'जब जब फूल खिले' से लेकर 'सत्यम शिवम सुंदरम' तक अपनी भाव भंगिमाओं के साथ है। इन फिल्मों में शशि कपूर में एक स्वप्निल सा नायक अपनी मासूमियत के साथ दिखा, लेकिन वही अदाकार 'दीवार' में एक अलग अंदाज में दिखा।
शशि कपूर की खासियत यही थी कि वह अपने रोल में पूरी तरह रम जाते थे। यह उनका अपना हुनर था कि वह उस दौर में व्यस्ततम कलाकारों में से एक थे। वो कभी खाली नहीं होते थे। फिल्म की तारीखें लगी रहती थीं। इस स्तर पर कि राजकपूर उन्हें मजाक में टैक्सी अभिनेता कहा करते थे क्योंकि उन्हें एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो टैक्सी से ही जाया करते थे।