Geetkar Ki Kahani Majrooh Sultanpuri: मजरूह सुल्तानपुरी, एक ऐसा गीतकार जो कभी मरीजों को दवा दिया करता था लेकिन एक मुशायरे ने उसे गीतकार बना दिया। उसके बाद उनकी कलम से निकले ऐसे सदाबहार गीत जो आज भी अमर हैं। चाहे फिल्म बुढ्ढा मिल गया का गाना 'रात अकेली एक ख्वाब में आई' हो, या कालिया फिल्म का गाना 'जहां तेरी ये नजर है' हो, सीआईडी फिल्म का गाना 'लेके पहला पहला प्यार' हो, या हम किसी से कम नहीं फिल्म का गीत 'क्या हुआ तेरा वादा' हो, मजरूह सुल्तानपुरी ने ऐसे नगमे लिखे जो आज भी उतने ही प्यार के साथ सुने जाते हैं।
दिग्गज गायक मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोसले, शमशाद बेगम के वह प्रिय गीतकार थे। इन गायकों ने मजरूह सुल्तानपुरी के गानों को खूब आवाज दी है। मोहब्बत के गीत लिखने के लिए मजरूह सुल्तानपुरी मशहूर थे और बात में उदित नारायण, साधना सरगम ने भी उनके गीत गाए। जो जीता वही सिंकदर फिल्म का फेमस गाना- पहला नशा, जिसे उदित नारायण, साधना सरगम ने आवाज दी, मजरूह सुल्तानपुरी ने ही लिखा था। वह ऐसे गीतकार थे जिनके गीतों ने मोहब्बत की गहराई बताई और हर इश्क करने वाले को उसे बयां करने की जुबां दी।
एक अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश सुल्तानपुर में एक पुलिस अधिकारी के यहां पैदा हुए मजरूह सुल्तानपुरी का उर्दू भाषा से बहुत लगाव था। मजरूह एक राजपूत परिवार में पैदा हुए थे, लिहाजा खानदानी परंपरा के तहत उन्हें भी स्कूली शिक्षा से दूर रखा गया और दीनी तालीम के लिए मदरसे भेजा गया। मदरसे से मजरूह ने अरबी और फारसी की तालीम पाई। इसके बाद लखनऊ कूच कर गए और हिकमत (यूनानी मेडिसिन) की पढ़ाई शुरू की। कुछ समय तक उन्होंने मरीजों को दवाइयां भी दीं। लेकिन उनकी कलम को दिलों के दर्द की दवा देने को बेताब थी।
मुशायरे ने बनाया गीतकार
साल 1945 में मजरूह सुल्तानपुरी जिगर मुरादाबादी के साथ वह मुशायरे में शामिल होने मुंबई चले गए। मुशायरे में फिल्म जगत की तमाम हस्तियां पहुंची थीं। इन्हीं थे राशिद कारदार। मजरूह साहब मंच पर आए और ऐसी शायरी पढ़ी कि हर कोई उनका दीवाना हो गया। मुशायरे के बाद राशि कारदार ने जिगर मुरादाबादी से अपनी फिल्म शाहजहां के लिए गीत लिखने की पेशकश की तो जिगर ने मजरूह से लिखवाने की बात कह दी। फिल्म शाहजहां 1946 में रिलीज हुई और इसमें मजरूह साहब का पहला गाना 'जब दिल ही टूट गया...हम जी के क्या करेंगे...' शामिल हुआ। इस गीत का संगीत नौशाद ने दिया और इसे आवाज दी थी के.एस सहगल ने। सहगल ने कहा था कि जब वह मरें तो उनके अंतिम संस्कार में यही गीत बजे, हुआ भी ऐसा ही।
फुटबॉल खेलने पर लगा फतवा
मजरूह को फुटबॉल खेलने का शौक था और इसी के चलते उन पर फतवा लगा था। इल्म देने वालों को उनका फुटबॉल खेलना पसंद नहीं आया। देश आजाद होने के बाद पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बने। अपनी एक कविता में उन्होंने नेहरू के खिलाफ टिप्पणी की और इसकी सजा ये मिली कि करीब 2 साल के लिए उन्हें मुंबई की जेल में डाल दिया गया। जिन पंक्तियों के लिए वह जेल गए वही थीं-
मन में जहर डॉलर के बसा के
फिरती है भारत की अहिंसा
खादी के केंचुल को पहनकर
ये केंचुल लहराने न पाए
अमन का झंडा इस धरती पर
किसने कहा लहराने न पाए
ये भी कोई हिटलर का है चेला
मार लो साथ जाने न पाए
कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू
मार ले साथी जाने न पाए
नाम के साथ खूब मिले सम्मान
मजरूह सुल्तानपुरी के गानों को जितना लोगों ने दिल में जगह दी उतना ही उनके काम को सम्मान भी मिला। मजरूह पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के सम्मान दिया गया। फिल्म दोस्ती के गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, फिर भी कभी अब नाम को तेरे..आवाज मैं न दूंगा..' के लिए दिया गया था। फिल्म दोस्ती के गाने 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ-सवेरे' के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किश था। 'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया...' जैसे शेर लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी 'रहें न रहें हम....महका करेंगे...बनके कली, बनके सबा...बाग़-ए वका में...' जैसे गीत लिखकर इस दुनिया से 24 मई, 2000 को 80 साल की उम्र में रुख्सत हो गए।