Geetkar Ki kahani Bollywood Throwback Shakeel Badayuni : अदब के इतिहास में अपने गीतों और गजलों से शकील बदायूंनी अमर हो गए। 13 साल की उम्र में पहली गजल लिखी और फिर ऐसा जुनून सवार हुआ कि हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक नगमों से सजा दिया। दुलारी फिल्म के गाने 'सुहानी रात ढल चुकी है' से लेकर कोहिनूर फिल्म के गाने 'मधुबन में राधिका नाचे रे' तक, फिल्म मुगल-ए-आजम के गाने 'जब प्यार किया तो डरना क्या' से लेकर चौदहवीं का चांद फिल्म के गाने 'चौदहवीं का चांद हो' तक, शकील बदायूंनी की कलम से ऐसे ही जादूई गाने निकले।
उनका नाम जुबां पर आते ही संगीत प्रेमी उनके गाने गुनगुनाने लगते हैं। वह ऐसे गीतकार थे, जिन्हें सिनेमा में एक्टर जैसी तरजीह मिली। शकील की शायरी और गीतों में ने जिंदगी की हकीकत दिखती थी और गुजरे पलों की झलकियां आंखों के सामने नाचती थीं। भारतीय फिल्मों का सबसे लोकप्रिय कृष्ण भजन 'मन तड़पत हरि दर्शन को आज' भी उन्हीं की कलम का नायाब नमूना है।
लगातार तीन साल फिल्मफेयर
शकील बदायूंनी को 1961 में फिल्म चौदहवीं का चांद में गीत चौदहवीं का चांद के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला तो उसके अगले ही साल वह दोबारा इसी पुरस्कार से नवाजे गए। इस बार गाना था 1962 में आई फिल्म घराना का 'हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं'। 1963 में एक बार फिर उन्हें बीस साल बाद फिल्म के गाने कहीं दीप जले के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया।
ऐसे चला कारवां
बचपन से ही शेरों-शायरी में मशगूल रहने वाले शकील बदायूंनी अगस्त 1916 में उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर में पैदा हुए। उनका असली नाम गफ्फार अहमद था। 13 साल की उम्र में उन्होंने जो गजल लिखी उसे 'शाने हिन्द' अखबार में जगह मिली। इसके बाद लेखक का यह सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि उम्र के आखिरी पड़ाव तक चला।
1936 में वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आए और यहां पढ़ाई के साथ मुशायरों में जाने लगे। पढ़ाई पूरी हुई तो आपूर्ति विभाग दिल्ली में आपूर्ति अधिकारी की नौकरी लग गई। सरकारी नौकरी में उनका मन नहीं रमा और वह 1944 में मुंबई पहुंचे। संगीतकार नौशाद साहब का साथ मिला तो उनकी किस्मत चमक उठी। नौशाद के कहने पर शकील ने ‘हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे' गीत लिखा।
नन्हा मुन्ना राही हूं...
दिलीप कुमार की सफलता में शकील साहब का खासा योगदान था। शकील बदायूंनी ने गजलें भी खूब लिखीं। उनकी गजलें पंकज उदास ने खूब सुनाईं। 20 अप्रैल 1970 को शकील बदायूंनी ने आखिरी सांस ली और शेरों-शायरी की दुनिया में अमर हो गए।