Geetkar Ki kahani Bollywood Throwback Naqsh Lyallpuri: बंटवारे के दौरान 1947 में शरणार्थियों के एक काफिले के साथ उस पार के पंजाब से भारत में पैदल दाखिल हुए एक गीतकार ने हिंदी सिनेमा को प्रेम गीतों से भर दिया। इस गीतकार ने बंटवारे का दर्द झेला लेकिन कभी उस दर्द को अपनी लेखनी में नहीं आने दिया। उसकी लेखनी से तो बस प्रेम की ही बात निकली। 1979 में आई फिल्म खानदान के गाने 'ये मुलाकात एक बहाना है' से लेकर 1981 में आई फिल्म दर्द के गाने 'प्यार का दर्द है मीठा मीठा प्यारा प्यारा' तक और 1974 की फिल्म कॉलगर्ल के गाने 'उल्फत में जमाने की हर रस्म को ठुकराओ' से लेकर 1978 की फिल्म लाल कोठी के गाने 'क्या कहूं कौन हूं मैं' तक, इस गीतकार ने एक के बाद एक लगभग 450 गाने लिखे।
हिंदी सिनेमा के इस महान गीतकार का नाम है नक्श लायलपुरी। नक्श लायलपुरी ने अपने करियर में 132 संगीत निर्देशकों और गायकों के साथ काम किया। इनमें नौशाद, शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, बप्पी लाहिड़ी, जगजीत सिंह और ख्याम जैसे कई सारे नाम है। लाललपुरी रूमानियत वाले गीत लिखने के लिए मशहूर थे। यही वजह थी कि एक दौर में वह बेहद लोकप्रिय थे।
1951 के दौरान उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रूफ रीडर की नौकरी भी की। लायलपुरी को गीतकार के रूप में पहला ब्रेक साल 1952 में मिला था, लेकिन साल 1970 के दशक तक उन्हें खास सफलता नहीं मिल पाई थी। भारत आकर उन्होंने डाक विभाग में भी काम किया साथ ही वह मुशायरों में शामिल होते थे। गीतकार के रूप में उन्हें बुलंदी बीआर इशारा की फिल्म ‘चेतना’ से मिली और इस फिल्म में उनका गीत ‘मैं तो हर मोड़ पर तुमको दूंगा सदा' ने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।
फिल्म काला सूरज से हुए हिट
साल 1985 में आई फिल्म काला सूरज के लिए उनकी कलम से एक ऐसा गीत निकला जो हमेशा हमेशा के लिए मशहूर हो गया। यह गीत है 'दो घूंट पिला दे साकिया बाकी मेरे दे रोड दे'। सुलक्षणा पंडित और राकेश रोशन की इस फिल्म का यह गाना जबरदस्त हिट हुआ और हर शादी पार्टी की पहचान बन गया। नरेंद्र चंचल की आवाज में इस गाने ने खूब परचम लहराया था।
असली नाम था कुछ और...
24 फरवरी 1928 को लायलपुर (अब पाकिस्तान का फैसलबाद) में पैदा हुए नक्श साहब का असली नाम जसवंत राय था। जब वह शायरी करने लगे तो उन्होंने अपना नाम नक्श लायलपुरी रख लिया। हिंदी सिनेमा भी उन्हें इसी नाम से जानने और पहचानने लगा। 22 जनवरी 2017 को उन्होंने मुंबई में आखिरी सांस ली।