Manoj Muntashir Birthday: जिनकी फ़ितरत है मस्ताना और क़लम की स्याही में भरा है इश्क। जिनके प्रेम गीत लबों पर चढ़ जाते हैं और सीधे दिल में बस जाते हैं। 'बाहुबली कलम’ जिनकी पहचान है, ऐसे हर दिल अज़ीज़ गीतकार, शायर, संवाद लेखक मनोज मुंतशिर का आज जन्मदिन है। 'देवसेना को किसी ने हाथ लगाया तो समझो बाहुबली की तलवार को हाथ लगाया' और 'औरत पर हाथ डालने वाले का हाथ नहीं काटते, काटते हैं उसका गला' जैसे शानदार डायलॉग्स को अपनी कलम से लिखने वाले जाने माने गीतकार मनोज मुंतशिर आज युवाओं के दिलों पर राज करते हैं।
27 फरवरी 1976 को यूपी के अमेठी के गौरीगंज में पैदा हुए मनोज मुंतशिर ने हरदम औकात से बड़े सपने देखे। वह कहते हैं- "जूते फटे पहन कर आकाश पर चढ़े थे सपने हर दम हमारी औकात से बड़े थे!" 1997 में इलाहाबाद आकाशवाणी में काम करने के लिए पहली सैलरी लगी और सैलरी के रूप में 135 रुपए मिले थे। - पिता किसान थे, मां प्राइमरी स्कूल में टीचर। मां की सैलरी महज 500 रुपए थी, लेकिन मनोज को उन्होंने कॉन्वेंट में पढ़वाया।
1999 में अनूप जलोटा के लिए उन्होंने भजन लिखा था और पहली बार 3000 रुपये मिले थे। मुंबई में फुटपाथ पर कई रात बिताने वाले मनोज ने साल 2005 में कौन बनेगा करोड़पति के लिए लिरिक्स लिखे। वह बताते हैं कि स्टार टीवी के एक अधिकारी ने मेरा काम देखा था, एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया और पूछा कि अमिताभ बच्चन से मिलोगे। वो मेरे संघर्ष के दिन थे, तो मुझे लगा कि मजाक हो रहा। फिर वो मुझे एक होटल ले गए, जहां मेरी मुलाकात अमिताभ बच्चन से हुई।
मनोज मुंतशिर मानते हैं कि उनके गानों में कविताएं होती हैं, जोकि गानों को सदाबहार बनाने में मदद करती हैं। जिन गानों में कविताएं नहीं होतीं, शब्द अच्छे नहीं होते वह लंबे समय तक सुनने वालों के दिल में नहीं रह पाते। तेरी गलियां, कौन तुझे यूं प्यार करेगा जैसे गानों को अपनी कलम से सजाने वाले मनोज मुंतशिर ने ही केसरी, हाफ गर्लफ्रेंड, एमएस धोनी, नोटबुक, सनम रे जैसी फिल्मों के गीत लिखे हैं।
2 रुपये की किताब ने बदली जिंदगी
मनोज मुंतशिर को बचपन से ही लिखने का शौक था, 7 या 8 क्लास में थे तो दीवान-ए-ग़ालिब किताब पढ़ी लेकिन उर्दू नहीं आती थी, इसलिए उस किताब को समझना मुश्किल था। गाना लिखने के लिए उर्दू जानना जरूरी था। वह पंडित परिवार से थे और उर्दू सीखना मुश्किल था। फिर एक दिन मस्जिद के नीचे से 2 रुपए की उर्दू की किताब खरीदी, उसमें हिंदी के साथ उर्दू लिखी हुई थी। इसके बाद मनोज शुक्ला हमेशा के लिए मनोज मुंतशिर हो गए। मनोज मुंतशिर के पिता को जब पहली बार पता चला की उनके लाडले बेटे ने अपना नाम बदल लिया है तो घर में मानो मातम छा गया था। जब उन्होंने ठान लिया कि उन्हें फिल्मों में गाने लिखना है तो उनके फैसले को खुद उनके पिताजी भी बदल न पाए।
ऐसे बदला नाम
मनोज मुंतशिर ने हाल ही में 'जिंदगी विद ऋचा' शो में बताया था- 'साल 1997 में एक सर्द रात मैं अपने घर से चाय की तलाश में निकला और एक टपरी पर पहुंच गया। टपरी पर रेडियो बज रहा था और उस पर पहली बार एक शब्द सुना “मुंतशिर।” बस यह नाम मनोज को भा गया और चाय की आखरी चुसकी के साथ ही मनोज मुंतशिर नाम कर लिया। अब समस्या थी कि पिता जी को कैसे बताया जाए। इसके लिए एक तरकीब निकाली और घर की नेम प्लेट पर मनोज मुंतशिर लिखवा दिया। पिता जी को लगा कि कहीं मनोज ने धर्म परिवर्तन तो नहीं कर लिया।