- उजड़ा चमन में सनी सिंह की समस्या उनके उम्र से पहले झड़ते बाल हैं
- फिल्म में अपने लिए एक अच्छी दुल्हन की तलाश में हैं
- ये फिल्म बाहरी सुंदरता के लिए समाज के तानों पर तंज कसती है
इन दिनों सनी सिंह की उजड़ा चमन और आयुष्मान खुराना की बाला काफी चर्चा में हैं। दोनों के पोस्टर और सब्जेक्ट कुछ-कुछ एक जैसे होने से इन पर काफी विवाद भी हो रहा है। इसी के चलते उजड़ा चमन की रिलीज डेट बदलकर एक हफ्ते पहले यानि 1 नवंबर 2019 कर दी गई है। उजड़ा चमन सनी सिंह की कहानी है। इस फिल्म को अभिषेक पाठक ने डायरेक्टर किया है। अगर वीकेंड में आप भी इस फिल्म को देखने का सोच रहे हैं तो इससे पहले उजड़ा चमन का रिव्यू पढ़ लें।
कहानी
उजड़ा चमन चमन कोहली (सनी सिंह) की कहानी है, जो दिल्ली के रहने वाले हैं और अपने लिए दुल्हन ढूंढ़ रहे हैं। लेकिन उनका उम्र से पहले उनके बाल उड़ जाने से उन्हें दुल्हन नहीं मिल पा रही है। साथ ही उनके साथ एक और समस्या ये है कि उन्हें सिर्फ एक साल में ही दुल्हन ढूंढ़नी है, अगर ऐसा नहीं होता है तो उनके ज्योतिषी (सौरभ शुक्ला) के मुताबिक उन्हें कुंवारा ही रहना पड़ जाएगा। चमन प्रोफेसर हैं और उनके माता-पिता चाहते हैं कि उनके बेटे की जल्द से जल्द शादी हो जाए। तभी उनकी जिंदगी में मानवी गागरू आती है। इसके बाद चमन की जिंदगी में बहुत कुछ होता है, जो जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
एक्टिंग
चमन के रूप में सनी सिंह ने काफी अच्छी एक्टिंग की है। शादी के लिए परिवार और रिश्तेदारों के प्रेशर से होने वाली हालत को उन्होंने बखूबी दिखाया है। सनी ने अपने परफॉर्मेंस में कई इमोशंस लाने की कोशिश की है और ज्यादातर वे सफल रहे हैं। उनकी एक्टिंग आपको भी उनके दर्द का अहसास करवाएगी। लेकिन उनके एक्सप्रेशंस सिर्फ तभी बदलते हैं कि जब उन्हें लगता है कि उन्हें पार्टनर मिलने वाली है। ये एक वक्त के बाद थोड़ा नीरस लगने लगता है। फिल्म के सेकंड हाफ में मानवी गागरू की अप्सरा बत्रा के रूप में एंट्री होती हैं। वे बिल्कुल चमन के किरदार से उलट है। अप्सरा पॉजिटिव और कॉन्फिडेंस से भरपूर होती है। अपने किरदार को मानवी ने बखूबी निभाया है।
डायरेक्शन
फिल्म में डायरेक्टर अभिषेक चमन से लेकर सपोर्टिंग कास्ट चमन की कलीग एकता (ऐश्वर्या सखुजा) और उनके माता-पिता तक किसी भी किरदार की गहराई को पूरी तरह से नहीं दिखा पाए हैं। फिल्म को देखकर लगता है कि इसमें सिर्फ सतही काम किया गया है, गहराई को छोड़ दिया गया है। फिल्म का सब्जेक्ट काफी अच्छा है, लेकिन इसे पूरी तरह भुनाया नहीं गया है। फिल्म के सेकंड हाफ में कई ऐसे सीन है, जिनसे आप जुड़ाव महसूस नहीं करेंगे और वे बिना वजह के लगेंगे। डायरेक्टर फिल्म का संदेश दर्शकों तक पहुंचाने में पूरी तरह से कामयाब नहीं हुए हैं। उम्र से पहले बाल झड़ जाने की समस्या में कई फनी सीन्स और पंचलाइन्स हो सकती थी, लेकिन फिल्म में इसकी कमी दिखाई दी।
हालांकि फिल्म में मिडिल क्लास परिवार की विचारधारा बहुत अच्छी तरह से दिखाई गई है। खासकर कि उस सीन में जहां चमन और अप्सरा के माता-पिता एक-दूसरे से ऐसे मिलते हैं, जैसे में बच्चों के होने वाले सास-ससुर हो। इन्हें देखकर आपको शादी के लिए होने वाली मीटिंग के किस्से याद आ जाएंगे।
फिल्म का एक डायलॉग 'दिलों की बात करता है जमाना, पर आज भी मोहब्बत चेहरे से ही शुरू होती है' इसकी कहानी को बखूबी बयां करता है। कुल मिलाकर फिल्म का सब्जेक्ट अच्छा है। भले ही कुछ सीन्स खींचे हुए लगे, लेकिन अगर आप बॉलीवुड मसाला फिल्मों से कुछ अलग देखना चाहते हैं तो उजड़ा चमन को एक बार देखा जा सकता है।