- दिव्यांका त्रिपाठी को एक वक्त काम मिलना बंद हो गया था।
- दिव्यांका ने बताया कि बनूं तरी दुल्हन के बाद हो रही थीं रिजेक्ट।
- दिव्यांका के मुताबिक वह सामान बांधकर लौटने वाली थी घर।
मुंबई. एक्ट्रेस दिव्यांका त्रिपाठी टीवी की आज सबसे पॉपुलर एक्ट्रेस में से एक हैं। दिव्यांका पिछले 15 साल से इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। टीवी सीरियल ये हैं मोहब्बतें में डॉक्टर इशिता के किरदार ने उन्हें पहचान दिलाई थी। इससे पहले वह सीरियल बनूं मैं तेरी दुल्हन में नजर आई थीं। दिव्यांका ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें सीरियल बनूं मैं तेरी दुल्हन के बाद काम मिलना बंद हो गया था।
पिंकविला से बातचीत में दिव्यांका त्रिपाठी दाहिया ने कहा, 'मैंने हमेशा एक ही चीज समझी है। अगर मुझे किसी भी प्रोजेक्ट में नहीं लिया गया, तो शायद इसीलिए नहीं लिया होगा क्योंकि वहां पर मेरी डिमांड नहीं होगी। शायद उन्हें ऐसे लोग चाहिए होते हैं जो मुझसे अलग ढंग से परफॉर्म करें, क्योंकि मैं कोई आलू तो हूं नहीं के हर सब्जी में घुल जाओं। मेरे अंदर अपनी कुछ खासियत है। कई बार एजेंट्स और कास्टिंग डायरेक्टर बिना सोचे-समझे कोई भी स्क्रिप्ट मुझे भेज देते थे। आपसे उम्मीद की जाती थी कि आप किसी भी स्क्रिप्ट पर एक्ट करें। लेकिन, मैंने कभी रिजेक्शन को खराब तरीके से नहीं लिया।'
काम मिलना हो गया था बंद
दिव्यांका आगे कहती हैं, 'देखिए आप तब रिजेक्ट होते हैं जब आपको ऑडिशन मिल रहे होते हैं, लेकिन जब आपको ऑडिशन के लिए बुलाया ही न जाए तब? सीरियल बनूं मैं तेरी दुल्हन के बाद एक ऐसी छवि बन गई थी विद्या और दिव्या (दिव्यांका के किरदार) की। वो तुलसी (क्योंकि सास भी कभी बहू थी) और पार्वती (कहानी घर-घर की) वाले जो रोल्स थे उसके बाद विद्या आई थी। प्रोड्यूसर ने मुझे कास्ट करना बंद कर दिया। वह कहते थे तुलसी और पार्वती के बाद तुम्हारी छाप पड़ गई है तो हम तुम्हें दोबारा कास्ट नहीं कर सकते। कोई तुम्हें नहीं देखेगा।'
वापस जाना चाहती थीं घर
दिव्यांका त्रिपाठी बातचीत में कहती हैं, 'उस दौर में हमारे पास इतने मौके नहीं होते तो खुद पर शक होने लगता था। मन में सवाल आता था क्या एक्टर होने के नाते केवल मैं इन्हीं किरदार तक सीमित हूं? जब लोग कहने लगते थे कि तुम तो बहनजी टाइप हो।
बकौल एक्ट्रेस, 'कई कहते कि तुम भाभी, बहन या बीवी के किरदार मं ही अच्छी लगती हो। मुझे ऐसे ही रोल मिल रहे थे। हां कई बार लगता था कि अपना सामान बांधकर भोपाल वापस लौट जाऊं। लेकिन, कुछ चीज ने मुझे रोके रखा। शायद ये अलौकिक ताकत थी। भगवान मुझे यहां पर चाहते थे।'