- 29 जनवरी से शुरू हो रहा है संसद का बजट सत्र
- 17 राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के बहिष्कार का लिया फैसला
- कृषि कानूनों को विपक्षी दलों ने बनाया मुद्दा
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का आंदोलन जारी है, यह बात अलग है कि 26 जनवरी की घटना के बाद कुछ किसान संगठनों ने आंदोलन से किनारा कस लिया है। दिल्ली पुलिस की तरफ से उन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है जिन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से ट्रैक्टर परेड निकालने का वादा किया था।इन सबके बीच 17 विपक्षी दलों ने कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने का फैसला किया है।
17 राजनीतिक दलों ने बहिष्कार का लिया फैसला
कांग्रेस, NCP, JK नेशनल कॉन्फ्रेंस, DMK, AITC, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, RJD, CPI (M), CPI, IUML, RSP, PDP, MDMK, केरल कांग्रेस (M और AIUDF) संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेंगे। संयुक्त बयान के अनुसार, तीन कृषि कानूनों के विरोध में 29 जनवरी को होने वाले अभिभाषण का बहिष्कार किया जाएगा। विपक्षी दलों का कहना है कि मौजूदा केंद्र सरकार जिस तरह से विरोध की आवाज को सम्मान नहीं दे रही है वैसे में सरकारी क्रियाकलापों में शामिल होने का मतलब नहीं रह जाता है।
बहिष्कार की राजनीति
कांग्रेस नेता गुलामनबी आजाद का कहना है कि हम 16 राजनीतिक दलों से एक बयान जारी कर रहे हैं कि हम राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार कर रहे हैं जो कल संसद में दिया जाएगा। इस निर्णय के पीछे प्रमुख कारण यह है कि विधेयकों (फार्म कानून) को विपक्ष के बिना, सदन में जबरन पारित किया गया था। इसके साथ ही आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि हमने तीन काले खेत कानूनों के खिलाफ विरोध किया है और ऐसा करना जारी रखेंगे, यही वजह है कि AAP राष्ट्रपति के भाषण का बहिष्कार करेगी। हम तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं, यह किसानों के मृत्यु वारंट पर हस्ताक्षर है।
ममता बनर्जी ने इस तरह साधा निशाना
हम किसानों के साथ हैं और हम इन कानूनों को वापस लेना चाहते हैं। खेत कानूनों को जबरन पारित कर दिया गया है ।मोदी सरकार ने दिल्ली की स्थिति को बुरी तरह से संभाला है और वहां जो कुछ हुआ था उसके लिए भाजपा जिम्मेदार है। दिल्ली से निपटने के बाद बंगाल के बारे में सोचें।दिल्ली की स्थिति से पुलिस नहीं निपट पाई। अगर यह बंगाल होता तो अमित भैया कहते, "क्या हुआ?" हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। हम चाहते हैं कि इन तीन कानूनों को निरस्त किया जाए। या तो आप कानून वापस ले लें या कुर्सी छोड़ दें।