यूपी में रहने वाला 17 साल का नाबालिग लड़का अपने पिता को लीवर दान करने के लिए तैयार है, उसका कहना है कि मामले में जल्द फैसला लेने की जरूरत है, इस बावत उसने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है कि उन्हें बीमार पिता को लिवर दान करने की अनुमति दी जाए।कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए यूपी सरकार से जवाब मांगा है।
नाबालिग लड़के के वकील ने पीठ को बताया कि उसके पिता की हालत बेहद गंभीर है और यही उनकी जान बचाने का एकमात्र हल है, गौर हो कि मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के अनुसार, भारत में केवल बालिग व्यक्तियों और मृत नाबालिगों के अंग ही दान किए जा सकते हैं।
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लेकिन बताते हैं कि अपवाद स्वरूप कोर्ट ने असाधारण परिस्थितियों में इससे छूट भी दी है। इस लड़के की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के सीनियर हेल्थ अधिकारी को तलब किया है, लड़के ने यूपी के स्वास्थ्य सचिव को भी इस मामले में पत्र लिखा था, मगर कुछ खास हुआ नहीं।
कानून के अनुसार, डोनर को वयस्क होना चाहिए
अंगदान के विषय में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 लागू होता है। इसके अनुसार, केवल वयस्क और मृत नाबालिगों के अंगों को ही दान में दिया जा सकता है। बेटा अपना लिवर देने को तैयार है मगर कानून के अनुसार, डोनर को वयस्क होना चाहिए। अभी तक अदालतें असाधारण परिस्थितियों में ही नाबालिगों को अंगदान की अनुमति देती आई हैं।
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कानून किसी नाबालिग को सीधे तौर पर अंगदान की परमीशन नहीं देता
कानून किसी नाबालिग को सीधे तौर पर अंगदान की परमीशन नहीं देता मानव अंग दान एवं प्रत्यारोपण अधिनियम में लिखा है कि कोई करीबी रिश्तेदार किसी को अंग दान कर सकता है प्रशासन से इसके लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है लेकिन अधिनियम की धारा 1(1बी) में नाबालिगों को अपवाद बनाया गया है।
... तो लिवर प्रत्यारोपण के जरिए उस व्यक्ति को बचाया जा सकता है
लिवर अगर किसी शख्स का पूरी तरह से डैमेज हो जाता है तो लिवर प्रत्यारोपण के जरिए उस व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है, बताते हैं कि ज्यादातर लोग जिन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है, वे मृत दाता से अंग दान के लिए लंबे समय तक इंतजार करते रहते हैं वहीं लिवर प्रत्यारोपित व्यक्ति 4-6 हफ्तों में पहले की तरह ही काम करने लगता है।