नई दिल्ली: निर्भया के चारों दोषियों को 7 साल 3 महीने बाद फांसी हो गई है। आज सुबह 5:30 बजे दोषियों को फांसी पर लटकाया गया। लेकिन इससे पहले फांसी पर रोक लगाने की हरसंभव कोशिश की गई। गुरुवार रात को पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने 3 दोषियों की याचिका को खारिज किया, बाद में फांसी से चंद घंटे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पवन गुप्ता की याचिका को खारिज कर दिया। पवन ने राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका खारिज करने के खिलाफ अपील की थी और फांसी पर रोक की मांग की थी।
जस्टिस आर बानुमथी, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस ए एस बोपन्ना की तीन जजों वाली खंडपीठ ने माना कि इस अदालत का लगातार मानना है कि दया याचिकाओं में राष्ट्रपति के फैसले की समीक्षा की गुंजाइश बहुत सीमित है।
पवन के वकील एपी सिंह ने अदालत को स्कूल सर्टिफिकेट, स्कूल रजिस्टर और पवन का उपस्थिति रजिस्टर दिखाया और दावा किया कि अपराध के समय वो नाबालिग था। इस पर जस्टिस भूषण ने कहा कि ये दस्तावेज उनके द्वारा पहले ही अदालतों में दायर किए जा चुके थे। न्यायमूर्ति भूषण ने पूछा कि एपी सिंह दया याचिका की अस्वीकृति को किस आधार पर चुनौती दे रहे हैं? न्यायमूर्ति भूषण ने आगे कहा कि एपी सिंह उन आधारों को उठा रहे हैं जिन पर पहले से ही बहस हो चुकी है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एपी सिंह के तर्कों पर आपत्ति उठाई। उन्होंने सुनवाई और याचिकाओं का एक अपडेट चार्ट प्रस्तुत किया। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि एपी सिंह ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष यह दलील दी है जिसने इसे योग्यता पर खारिज कर दिया, हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और फिर एसएलपी और समीक्षा याचिका खारिज कर दी गई।
परिवारों को दोषियों से मिलने देने की अपील
एपी सिंह ने फिर तर्क दिया कि मंडोली जेल के खिलाफ पवन गुप्ता की प्राथमिकी लंबित है, उसके बयान को फांसी होने से पहले दर्ज किया जाना चाहिए। पवन के सिर पर 14 टांके आए। किस प्रकार का मानव अधिकार है? सुनवाई के दौरान एपी सिंह ने यह भी कहा, 'मुझे पता है कि उन्हें फांसी दी जाएगी लेकिन क्या यह दो-तीन दिनों तक पवन के बयान को दर्ज करने के लिए रोक दिया जा सकता है।' उन्होंने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि दोषियों के परिवार के सदस्यों को आखिरी बार 5-10 मिनट के लिए उनसे मिलने की अनुमति दी जाए।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता इसको देखेंगे। इस पर बाद में मेहता ने कहा कि जेल के नियम इसकी अनुमति नहीं देते हैं और यह दोनों पक्षों के लिए दर्दनाक है। शीर्ष अदालत ने बाद में इस संबंध में कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया और मामले को सॉलिसिटर जनरल पर छोड़ दिया।
सिंह ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि अक्षय के आठ साल के बच्चे को उससे मिलने की अनुमति दी जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चे का यह न देखना ही बेहतर है।