- लोकसभा में पेश हुआ है नागरिकता संशोधन विधेयक, विपक्ष ने किया विरोध
- विपक्ष का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है यह प्रस्तावित विधेयक
- पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को मिलेगी भारतीय नागरिकता
नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए 964 वैज्ञानिकों एवं विद्वानों ने एक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं। विद्वानों ने विधेयक में पड़ोसी देशों से प्रताड़ित होकर आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय को नागरिकता देने के सरकार के प्रयास का स्वागत किया है लेकिन नागरिकता की योग्यता के लिए धर्म को 'मानदंड' बनाए जाने को 'काफी परेशान' करने वाला बताया है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों ने सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग की है।
पत्र में अलग-अलग क्षेत्र एवं संस्थाओं के विद्वानों ने याद दिलाया है कि स्वतंत्रता आंदोलन से भारत एक ऐसे देश के रूप में उभरा जो 'सभी आस्था के लोगों का बराबर सम्मान' करने वाला था। बयान के मुताबिक, 'प्रस्तावित विधेयक में नागरिकता के मानदंड के लिए धर्म का इस्तेमाल करना इतिहास के साथ अलगाव पैदा करेगी साथ ही यह संविधान के बुनियादी ढांचे से मेल नहीं खाएगा।' पत्र में शामिल नामों को पढ़ने के लिए क्लिक करें
पत्र में आगे कहा गया है, 'हमें भय है कि, खासतौर से, विधेयक के दायरे से मुस्लिम को बाहर रखने से देश के बहुलवादी ताने-बाने में दरार आएगी।' बता दें कि प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक रूप से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को नागरिकता प्रदान करेगा। इनमें गैर- मुस्लिम समुदायों में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और बौद्ध शामिल हैं। इन तीन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने के लिए सरकार नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन कर रही है।
गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पर चर्चा के लिए इसे लोकसभा में पेश किया है। सोमवार को चर्चा के दौरान शाह ने कहा कि विधेयक के पीछे सरकार का कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। उन्होंने कहा कि विपक्ष की आशंकाएं निर्मूल हैं। बता दें कि कांग्रेस सहित राकांपा, टीएमसी, सपा, डीएमके और वाम दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद-14 की मूल भावना के खिलाफ है। यह अनुच्छेद सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है।