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'किशोरों के वैक्‍सीनेशन का प्रधानमंत्री का फैसला अवैज्ञानिक', AIIMS के  महामारी रोग विशेषज्ञ ने क्‍यों कहा ऐसा

Updated Dec 26, 2021 | 18:17 IST

एम्स के वरिष्ठ महामारी रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय के राय ने 15-18 साल की उम्र के किशोरों के वैक्‍सीनेशन के सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्‍होंने इसे 'अवैज्ञानिक' करार देते हुए कहा कि इससे कोई भी लक्ष्‍य हासिल नहीं होता।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
'किशोरों के वैक्‍सीनेशन का प्रधानमंत्री का फैसला अवैज्ञानिक', AIIMS के  महामारी रोग विशेषज्ञ ने क्‍यों कहा ऐसा

नई दिल्ली : देशभर में ओमिक्रोन के खतरे और कोविड- 19 की तीसरी लहर की आशंका के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार देर रात राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन में 15-18 साल की उम्र के किशोरों के लिए भी वैक्‍सीनेशन का ऐलान किया और कहा कि वैक्‍सीनेशन को लेकर कोई भी फैसला वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श के आधार पर ही लिया जाता है। लेकिन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के वरिष्ठ महामारी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संजय के. राय ने सरकार के इस फैसले को 'अवैज्ञानिक' करार देते हुए कहा कि इससे कोई अतिरिक्त फायदा नहीं होगा।

एम्स में वयस्कों और बच्चों पर 'कोवैक्सीन' टीके के परीक्षणों के प्रधान जांचकर्ता और 'इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन' के अध्यक्ष डॉ. राय ने अमेरिका सहित बच्चों का वैक्‍सीनेशन शुरू कर चुके देशों के आंकड़ों का भी विश्लेषण करने पर जोर दिया।

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PMO को टैग कर किया ट्वीट

डॉक्टर संजय के. राय ने इस संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को टैग करते हुए ट्वीट भी किया, जिसमें उन्‍होंने लिखा, 'मैं राष्ट्र की नि:स्वार्थ सेवा और सही समय पर सही निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा प्रशंसक हूं। लेकिन मैं बच्चों के टीकाकरण के उनके अवैज्ञानिक निर्णय से पूरी तरह निराश हूं।'

इस संबंध में अपना दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट करते हुए उन्‍होंने कहा कि वैक्‍सीनेशन का मकसद या तो कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम है या मरीज के गंभीर स्थिति में पहुंचने अथवा संक्रमण की वजह से उसकी मृत्यु को रोकना है। वैक्‍सीन के बारे में हमारे पास अभी जो जानकारी है, उसके मुताबिक वैक्‍सीन संक्रमण के मामलों में कोई महत्‍वपूर्ण कमी लाने में समर्थ नहीं हैं। दुनिया के कई देशों में वैक्‍सीन का बूस्‍टर डोज लगवाने के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं।

ब्रिटेन का दिया उदाहरण

ब्रिटेन का उदहारण देते हुए उन्‍होंने कहा कि यूरोप के इस देश में बड़ी संख्‍या में वैक्‍सीनेशन के बाद भी रोजाना संक्रमण के 50 हजार से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं। इससे साबित होता है कि वैक्‍सीनेशन कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने में मददगार नहीं है, लेकिन यह संक्रमण की वजह से मरीज के गंभीर स्थिति में पहुंचने और इसकी वजह से उसकी मृत्‍यु को रोकने में प्रभावी है।

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बच्‍चों में कोविड-19 के संक्रमण को लेकर उन्‍होंने कहा कि ऐसे मामलों में गंभीरता बहुत कम केस हैं। जो आंकड़े उपलब्‍ध हैं, उसके अनुसार कम उम्र के बच्‍चों व किशोरों में कोविड-19 के संक्रमण के कारण प्रति 10 लाख की आबादी पर दो मौतों का रिकॉर्ड है, जबकि अतिसंवेदनशील आबादी में यह आंकड़ा कहीं अधिक है। यहां प्रति 10 लाख की आबादी पर 15,000 लोगों की मौत का रिकॉर्ड है। वैक्‍सीनेशन के माध्यम से इनमें से 80-90 प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता है, जिसका अर्थ है कि प्रति 10 लाख की आबादी पर 13,000 से 14,000 मौतों को रोका जा सकता है। ऐसे में जब जोखिम और लाभ का विश्‍लेषण किया जाता है तो उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर किशोरों के वैक्‍सीनेशन के फैसले में लाभ की बजाय जोखिम अधिक नजर आता है और इसलिए बच्चों का टीकाकरण शुरू करने से कोई भी उद्देश्‍य हासिल नहीं होता।

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