- योग, आयुर्वेद बनाम एलोपैथ में शाब्दिक जुगाली शुरू
- एलोपैथ से हजारों साल पुराना है कि आयुर्वेद का इतिहास
- हाल ही में बाबा रामदेव के बयान के बाद विवाद बढ़ा
नई दिल्ली। क्या मेडिकल जगत की सभी विधाएं एक दूसरे की विरोधी हैं या पूरक यह बहस के दायरे में है। अगर भारतीय चिकित्सा शास्त्र को देखें तो किसी भी बीमारी के इलाज में जड़ी बूटियां कारगर मानी जाती थीं। इसके साथ ही शरीर को निरोग रखने में आसनों के महत्व को समझा गया। करीब तीन हजार साल तक योग अलग अलग रूपों में फलता फूलता रहा। लेकिन जब देश अंग्रेजों का गुलाम हुआ तो तस्वीर बदली। उस दौर में एलोपैथ ने जगह बनानी शुरू की जिसे अंग्रेजी हुकुमत का समर्थन भी मिला। एलोपैथ को सरकारी समर्थन भले ही मिला हो योग अपने रूप में जिंदा रहा भले ही दायरा सीमित हो गया हो। लेकिन 20वीं सदी में एक शख्स बाबा रामदेव ने योग को घरों तक पहुंचाया और उसका असर यह हुआ कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाने लगा। लेकिन इन सबके बीच एक बार फिर योग, आयुर्वेद और एलोपैथ की लड़ाई सामने आ चुकी है।
योग, आयुर्वेद बनाम एलोपैथ
हाल ही में बाबा रामदेव ने एलोपैथ पर बयान दिया जिस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई और उन्हें क्षमा मांगना पड़ा। लेकिन एलोपैथ के लंबरदारों ने जिस तरह से योगा को कठघरे में खड़ा किया उसके बाद यह सवाल उठने लगे कि क्या एलोपैथ अब जानबूझकर किसी खास शख्स नहीं बल्कि चिकित्सा शास्त्र की एक विधा पर सवाल उठा रहा है। मसलन आईएमए ने जब पूछा कि क्या कपालभाति, अनुलोम विलोम से ब्ल्ड प्रेशर, सूगर की समस्या दूर हो जाती है। अगर ऐसा है तो लोग दवाई क्यों खाते हैं, यह सवाल ऐसे थे कि जिसका जवाब रामदेव ने यह कहकर दिया कि क्या एलोपैथ की दवा खाने से ब्लड प्रेशर, सूगर या कोई और दिक्कत दूर हो जाती है। इसके बाद बहस का दायरा और बढ़ गया।
पतंजलि के उत्पादों पर उठे थे सवाल
ताजा मामला कोरोना महामारी के दौर में पतंजलि के उत्पादों को लेकर थी। मसलन जब रामदेव ने यह कहना शुरु किया कि कोरोनील, कोरोना बीमारी में रामबाण है तो सवाल उठा कि बिना किसी रिसर्च या वैश्विक स्तर पर जब कोरोना वायरस के स्वरूप को पूरी तरह नहीं समझा गया है तो बाबा रामदेव इस तरह का दावा कैसे कर सकते हैं। इस तरह के विवादों के बीच उन्होंने कहा कि पतंजलि ने यह नहीं कहा कि उनकी दवा कोरोना के इलाज के लिए बनी है, बल्कि यह कहा कि वो तो इम्यूनिटी को बढ़ावा देने का काम करती है।
आम और खास लोगों का क्या है कहना
अब इस विषय पर लोगों और जानकारों की राय को समझना भी जरूरी है। सबसे पहले लोग क्या कहते हैं। लोगों का कहना है कि भारत का एक शख्स अब पूरी अंग्रेजी दवा उद्योग को चुनौती दे रहा है तो ऐसे में एलोपैथ की खीज समझी जा सकती है। यह बात सच है कि योग से किसी बीमारी का 100 फीसद इलाज संभव नहीं हैं लेकिन योग आज लोगों की जीवन पद्धति का हिस्सा बन चुकी है जिसका नजारा देश के अलग अलग हिस्सों में देखा जा सकता है। इसके साथ ही जानकार कहते हैं कि सच यह है कि रामदेव की कोशिशों के बाद योग और आयुर्वेद का उद्योग अब संगठित रूप ले रहा है जिसे एलोपैथी उद्योग खासतौर से कंपनियां अपने लिए खतरा देख रही हैं ऐसे में आने वाले समय में यह विवाद और गहराएगा और योग को कई परीक्षाएं देनी होंगी।