- नागरिकता संशोधन कानून देश में 10 जनवरी 2020 से लागू है। लेकिन पिछले 2 साल में कानून के लिए नियम नहीं बन पाए हैं।
- सीएए के विरोध में शाहीन बाग आंदोलन सुर्खियों में रहा था।
- कई राज्यों में चुनाव को देखते हुए सीएए का मुद्दा फिर से गरमा सकता है।
Amit Shah in Assam and West Bengal: पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बंगाल और असम के दौरे पर थे। वैसे तो यात्रा सरकारी और पार्टी के कामों के लिए थी। लेकिन इस दौरान, शाह ने दो से तीन मौके पर ऐसे बयान दिए हैं। जिससे आने वाली राजनीति के संकेत मिलते हैं। जिस तरह उन्होंने यह दावा किया कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) कोविड स्थितियां सामान्य होने के बाद लागू किया जाएगा और फिर उन्होंने ममता बनर्जी सरकार को बंग्लादेशी घुसपैठ को लेकर घेरा । उससे साफ है कि देश की राजनीति आने वाले समय में किस दिशा में आगे बढ़ेगी।
क्या बोले अमित शाह
सबसे पहले अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में एक रैली में 5 मई को कहा कि ममता दीदी, आप तो यही चाहती हो कि घुसपैठ चलती रहे, मगर कान खोलकर तृणमूल वाले सुन लें, सीएए वास्तविकता था, वास्तविकता है और वास्तविकता रहने वाला है। तृणमूल कांग्रेस सीएए के बारे में अफवाहें फैला रही है कि सीएए जमीन पर लागू नहीं होगा। मैं आज कहकर जाता हूं, कोरोना की लहर समाप्त होते ही सीएए को हम जमीन पर उतारेंगे।
इसके बाद असम में भाजपा सरकार के एक साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर बीते मंगलवार को भारत में होने वाली घुसपैठ को लेकर अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि बंगाल की सरकार केन्द्र के साथ सहयोग नहीं कर रही है, वहीं असम सरकार केन्द्र के साथ पूरी तरह से खड़ी है और समस्या से मजबूती से लड़ रही है। जिसकी वजह से घुसपैठ में बड़ी संख्या में कमी आई है। जाहिर है अमित शाह घुसपैठ की समस्या को लेकर ममता बनर्जी पर निशाना साध रहे थे।
इन बयानों का क्या है मतलब
अमित शाह के दोनों बयानों में निशाने पर तृममूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी थी। असल में जिस तरह मई 2021 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी मजबूत हुई हैं और भाजपा में भगदड़ मची है। वह भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना गया है। ऐसे में आने वाले पंचायत चुनाव और लोकसभा चुनाव को देखते हुए सीएए और घुसपैठ एक ऐसा मुद्दा है। जो भाजपा को पश्चिम बंगाल में संजीवनी दे सकता है। इसके अलवा पूर्वोत्तर भारत में भी उसकी स्थिति को मजबूत कर सकता है। साल 2023 में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने हैं। और यहां पर भाजपा के लिए ये मुद्दे मुफीद साबित हो सकते हैं।
देश की राजनीति पर भी दिखेगा असर
जिस तरह गृह मंत्री अमित शाह यह दावा कर रहे हैं कि कोरोना से स्थिति सामान्य होने के बाद सीएए को जमीन पर उतारेंगे। वह साफ करता है कि एक बार फिर यह मुद्दा गरमाएगा। और उसका असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ने वाला है। क्योंकि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, में भी 2022 और 2023 में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अगर सीएए को जमीन पर उतारा गया तो निश्चित तौर पर इन विधानसभा चुनावों में सीएए का असर दिखेगा। सीएए के विरोध में शाहीन बाग आंदोलन सुर्खियों में रहा था। और यह भी दावा किया जाता है कि दिल्ली दंगे भी उसी आड़ में किए गए।
सीएए की क्या है स्थिति
असल में नागरिकता संशोधन कानून देश में 10 जनवरी 2020 को से लागू है। लेकिन पिछले 2 साल में कानून के लिए नियम नहीं बन पाए हैं। सरकार बार-बार नियम बनाने के लिए समय बढ़ा रही है। और जब तक कानून से संबंधित नियम नहीं बन जाएंगे। तब तक कानून को जमीन पर उतारा नहीं जा सकेगा। और यही बात अमित शाह ने रैली में कही है कि सीएए हकीकत है और कोविड से स्थिति सामान्य होने के बाद उसे जमीन पर उतारा जाएगा।
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नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलने का प्रावधान किया गया है। कानून के अनुसार नागिरकता के लिए वह लोग पात्र होंगे जो जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में बस चुके हैं। हालांकि इस कानून का शुरू से ही विरोध होता रहा है। क्योंकि इसमें मुस्लिम लोगों के लिए नागिरकता का प्रावधान नहीं है। जिसके आधार पर विपक्ष का दावा है कि सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है और जानबूझ कर मुस्लिमों को कानून से बाहर रखा गया है। जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि जिन देशों से आए लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है, वहां पर हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी अल्पसंख्यक हैं और उन्हें सताया जाता है।