- सर्जिकल स्ट्राइक के हीरो ने संभाली NTRO की कमान
- इस खुफिया एजेंसी ने बालाकोट हवाई हमले में निभाई थी अहम भूमिका
- NTRO देश को तकनिकी रूप से सहायता देकर उसे इस क्षेत्र में मजबूत बनाता है
नई दिल्ली: तकनीकी रूप से देश को मजबूत सुरक्षा देने वाला NTRO यानी राष्ट्रीय तकनीकी खुफिया एजेंसी जितनी मजबूत होगी देश दुश्मनों पर उतना ही भारी पड़ेगा। कुछ समय से चीन सीमा पर बंदरों की तरह बहुत उछलकूद मचा रहा है. उसे भूल गया है कि उसके जिगरी दोस्त पाक की क्या दशा की थी हमारे जवानों ने। ये वही NTRO है, जो बालाकोट हवाई हमले में एक-एक खुफिया जानकारी देश तक पहुंचाई थी। चीन की इस उछलकूद पर लगाम लगाने के लिए ही अनिल धस्माना को सरकार की तीसरी आंख NTRO का अध्यक्ष बनाया गया था।
क्या है NTRO ?
राष्ट्रीय तकनिकी खुफिया एजेंसी यानी NTRO देश की एक तकनीकी खुफिया एजेंसी है, जो प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अधीन काम करती है। इसे साल 2004 में स्थापित किया गया। भारत-चीन सीमा विवाद पर नजर रखने के लिए NTRO अहम भूमिका निभा रहा है।
कैसे काम करता है NTRO ?
NTRO पूरी तरह से तकनीक पर निर्भर है। यह देश को तकनिकी रूप से सहायता देकर उसे इस क्षेत्र में मजबूत बनाता है। दुश्मनों की हरकतों पर ये सेटलाइट के माध्यम से नजर रखता है। देश की सीमा को सुरक्षित रखने के लिए ये हमेशा ड्रोन, सेटलाइट से अपनी पैनी नजर बनाए रखता है। कहां क्या हरकत हो रही है, उसपर NTRO की नजर हमेशा बनी रहती है। देश को यह एजेंसी खुफिया जानकारी पहुंचाने का काम करती है। युद्ध से संबंधित हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की सुरक्षा भी इसी के जिम्मे होती है। बालाकोट एयर स्ट्राइक के समय NTRO ने खुफिया जानकारियों और सेटलाइट से ली गई तस्वीरों के जरिए ही तीन सौ से अधिक आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया था।
कौन हैं धस्माना ?
अनिल धस्माना 1981 बैच के IPS अधिकारी हैं। जन्म हुआ उत्तराखंड में और पढ़ाई और नौकरी क्रमशः इन्होनें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में की। खासतौर पर सीमा पर चीन की नापाक हरकत को देखते हुए एक बार फिर से सरकार को अपने इस काबिल अधिकारी को मैदान पर उतारना पड़ रहा है। पुलवामा हमले में शहीद हुए 40 CRPF जवानों की शहादत का बदला लेने वाले बालाकोट हवाई हमले की योजना का नेतृत्व अनिल धस्माना ने ही किया था।
पाक की सिट्टी-पिट्टी क्यों हो जाती है बंद ?
1981 बैच के भारतीय पुलिस अधिकारी अनिल धस्माना का नाम सुनते ही पाकिस्तान की सिट्टी पिट्टी बंद हो जाती है। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पाक में बैठे आतंकवादियों के आकाओं के मुंह से भी निकल जाता है कि चुप हो जाओ वरना अनिल धस्माना आ जाएगा। अनिल धस्माना से यूंही पाकिस्तान नहीं कांपता। असल में अनिल धस्माना पाकिस्तान से जुड़े मामलों के विश्लेषक हैं। पाकिस्तान की एक-एक करतूत के बारे में उन्हें बारीकी से पता रहता है। पाकिस्तान का अगला कदम क्या होगा और वो कितने कदम आगे चलेगा इसकी भनक पाक की चाल से पहले ही धस्माना को चल जाती है।
पाकिस्तानी की रूह भी अनिल धस्माना के नाम से कांपती है। यही नहीं धस्माना का कार्यक्षेत्र बहुत विशाल रहा है। बलूचिस्तान, अफगानिस्तान के साथ कई विदेशी शहरों में रहकर काम कर चुके हैं धस्माना। आतंकवाद और इस्लाम से जुड़ी हर कड़ी को सेकंड भर में सुलझाते हैं। जब-जब देश को खास अधिकारियों की आवश्यकता होती है, तो अनिल धस्माना जैसे अधिकारी हाजिर रहते हैं। देश की खुफिया एजेंसियां देश की सुरक्षा को मजबूत करने के साथ ही दुश्मन पर हमलावर होने में सेना की बहुत मदद करती हैं।