नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। 2015 में 70 में से 67 सीट जीतने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस बार 62 सीटों पर जीत दर्ज की है। बीजेपी ने इस बार अपनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ा, लेकिन वो केजरीवाल को रोक नहीं पाए। आप ने जिस रणनीति के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा, उससे वो दिल्लीवासियों के दिल पर जगह बनाने में सफल हुई। यहां ये देखना जरूरी है कि आखिर केजरीवाल और उनकी टीम ने कौन सी रणनीति बनाई, जो काम कर गई, क्योंकि ऐसा नहीं है कि केजरीवाल हमेशा सफल रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों को छोड़ बाकी चुनावों में उन्हें काफी बुरी हार का सामना करना पड़ा है।
आप की पूरी रणनीति को देखते हुए कहा जा सकता है कि उन्होंने 'मोदी मॉडल' से ही बीजेपी को मात दे दी। AAP ने उन्हें रणनीतियों को अपनाया, जो अक्सर बीजेपी अपनाती है।
विकास का मॉडल
आप का पूरा प्रचार विकास पर ही केंद्र रहा। देश या दिल्ली में और भी चीजें हो रही थीं, लेकिन आप विकास के मुद्दे से नहीं भटकी। आप कहती रही कि हमने 5 साल काम किया है तो हमें वोट दें अगर नहीं किया है तो ना दें। केजरीवाल बिजली, पानी, सड़क से लेकर हर क्षेत्र में अपने काम को गिनाते रहे। वहीं बीजेपी ने शाहीन बाग को केंद्र में रखकर आप और केजरीवाल को घेरा, लेकिन वो फंसे नहीं। आप का कहना था कि ये चुनाव तो काम पर है। बाकी मुद्दों के आगे केजरीवाल ने विकास के मुद्दे को कमतर नहीं होने दिया।
2014 में जब बीजेपी मोदी के चेहरे पर लोकसभा चुनाव लड़ रही थी, तब उसने गुजरात मॉडल को ही आगे रखा था। मोदी को विकास पुरुष के रूप में पेश किया गया। लोगों ने उनके काम पर भरोसा किया और उन्हें प्रचंड बहुमत देकर प्रधानमंत्री बना दिया।
कोई विकल्प नहीं
दिल्ली में आप ने तीनों विधानसभा चुनाव अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर लड़े। 2015 की जीत के बाद केजरीवाल का चेहरा इतना बड़ा हो गया कि दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस के पास उसके समकक्ष कोई नहीं था। 2015 में बीजेपी ने किरण बेदी को आगे खड़ा किया, लेकिन ये प्रयोग पूरी तरह फेल रहा। इस बार बीजेपी ने बिना किसी चेहरे के दिल्ली चुनाव में उतरने का फैसला किया। केजरीवाल और आप इसी को लेकर बीजेपी को घेरती रही और सवाल करती रही कि दिल्ली में वो किसको मुख्यमंत्री बनाएंगे ये बताएं।
बीजेपी के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो गया। वो केंद्र में मोदी सरकार के काम के दम पर दिल्ली चुनाव लड़ती रही। 2019 में जब मोदी एनडीए और बीजेपी के चेहरे थे तब वो भी विपक्ष से पूछा करते थे कि मोदी के सामने कौन। उस समय विपक्ष मोदी के सामने कोई चेहरा पेश नहीं कर पाया और इसका फायदा बीजेपी को हुआ। वो 2014 से भी ज्यादा बड़ा बहुमत लेकर सत्ता में आई।
मोदी नाम पर मौन
एक समय ऐसा था जब केजरीवाल पीएम मोदी को सुबह-शाम कोसा करते थे। विरोध करते-करते 2014 में उनके खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ लिया। 2015 में दिल्ली में सरकार बनने के बाद भी हर बात के लिए मोदी को घेरते थे। कई बार भाषा की भी मर्यादा को लांघ गए। लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव के बाद उनके व्यवहार में जबरदस्त बदलाव देखा गया। अब केजरीवाल के मुंह से लोग मोदी नाम सुनने को तरस गए हैं। दिल्ली चुनाव में मोदी नाम लेकर उन्होंने शायद ही बीजेपी या केंद्र सरकार पर निशाना साधा हो। इसका उन्हें सीधा-सीधा लाभ हुआ। बीजेपी और उसके समर्थक केजरीवाल के खिलाफ ज्यादा नहीं बोल सके।
यहां भी केजरीवाल ने मोदी के ही तरीके को अपनाया। 2014 में जब केजरीवाल वाराणसी से चुनाव लड़ रहे थे तब मोदी ने एक बार भी उनका नाम अपने विरोधी के रूप में नहीं लिया। मोदी ने एकाध मौके को छोड़कर केजरीवाल पर सीधा निशाना नहीं साधा।
अपनी ताकत पर लड़ा चुनाव
केजरीवाल और आप ने पूरा चुनाव अपनी ताकत पर लड़ा। बीजेपी ने उन्हें आतंकवादी तक कहा। शाहीन बाग प्रदर्शन को लेकर उन्हें जिम्मेदार ठहराया। उन्हें देशद्रोही के रूप में पेश किया गया। इसके बावजूद केजरीवाल बहुत ज्यादा आक्रमक नहीं हुए और कहा कि जवाब दिल्ली की जनता देगी कि मैं आतंकवादी हूं या उनका बेटा। शाहीन बाग के सवाल को भी उन्होंने केंद्र पर डाल दिया। जब उन्हें हिंदू विरोधी कहा गया तो उन्होंने खुद को कट्टर हनुमान भक्त कह दिया। हनुमान चालीसा गाकर, मंदिर जाकर इसका सबूत भी पेश कर दिया। केजरीवाल वहीं टिके रहे, जहां वो मजबूत थे।